चुनाव आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उम्मीदवारों के लिए यह अनिवार्य बनाया जाना चाहिए कि वे नामांकन पत्र भरते समय अपने साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत का खुलासा करें ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सके। चुनाव आयोग ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में भी संशोधन की मांग की ताकि किसी उम्मीदवार को न सिर्फ तब अयोग्य ठहराया जा सके जब उसका सरकार के साथ अनुबंध चल रहा हो, बल्कि तब भी अयोग्य ठहराया जा सके जब उसके परिवार के किसी सदस्य का भी इसी तरह का वित्तीय समझौता हो। उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर हलफनामे में चुनाव आयोग ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि मतदाताओं को उम्मीदवारों और उनके परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत का पता चले। मौजूदा कानून के तहत किसी उम्मीदवार को अपना, अपनी पत्नी और तीन आश्रितों की संपत्तियों और देनदारियों का नामांकन पत्र भरने के दौरान फॉर्म 26 में खुलासा करना होता है लेकिन आय के स्रोत का खुलासा नहीं करना होता है।
आयोग ने कहा, ‘चुनाव हलफनामे का मौजूदा फॉर्मेट उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत के संबंध में कोई सूचना नहीं देता है ताकि मतदाता यह राय बना सकें कि पिछले चुनाव से उम्मीदवार की आय में वृद्धि तर्कसंगत है या नहीं।’ यह दलील एनजीओ लोक प्रहरी की उस जनहित याचिका के जवाब में आई है, जिसमें अदालत से जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करने का निर्देश देने की मांग की गई है ताकि उम्मीदवारों के लिए अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की आय के स्रोत का खुलासा करना अनिवार्य बना दिया जाए।
एनजीओ ने केंद्र को यह भी निर्देश देने की मांग की है कि वह कानून में संशोधन लाए ताकि वैसे विधि निर्माताओं को अयोग्य ठहराया जा सके, जिनका किसी कंपनी में हिस्सा या स्वामित्व है जो सरकार या किसी सार्वजनिक कंपनी के साथ व्यापारिक अनुबंध करती है।
चुनाव आयोग ने कहा, ‘चुनावों में धन बल की बढ़ती भूमिका भी भलीभांति ज्ञात है और यह उन बीमारियों में से एक है जो कभी-कभार चुनाव प्रक्रिया को महज तमाशा बना देता है जब वित्तीय संसाधनों वाले कुछ विशेषाधिकार संपन्न उम्मीदवारों को अन्य उम्मीदवारों की तुलना में फायदे वाली स्थिति में डाल देता है।’ आयोग ने कहा, ‘इस तरीके के चुनाव का नतीजा लोगों की सही पसंद को परिलक्षित नहीं कर सकता। व्यवस्था कभी-कभी योग्य और सक्षम लोगों को जनता का प्रतिनिधित्व करने के अधिकारों से वंचित कर देती है।’ आयोग ने अदालत से यह भी कहा कि कानून में संशोधन करके गलत हलफनामा दायर करने के लिए कारावास की सजा बढ़ाकर दो साल कर दी जानी चाहिए। फिलहाल इसके लिए छह महीने के कारावास की सजा का प्रावधान है। आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि वैसी स्थिति में निर्वाचित प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने के लिए प्रावधान किया जाना चाहिए जब उसके परिवार के सदस्य या उससे जुड़ी किसी कंपनी का सरकार में व्यापारिक हित जुड़ा हो।

