भारतीय जनता पार्टी ने जब नूरपुर विधानसभा से अवनी सिंह को टिकट दिया तो पार्टी को उम्मीद थी कि सहानुभूति लहर में वह आसानी से सीट जीत जाएंगीं। लेकिन इस बार के चुनावी समीकरणों की वजह से बीजेपी से यह सीट छीन गई। बता दें कि नूरपुर के विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद इस सीट पर उपचुनाव करवाये गये थे। अवनी सिंह लोकेन्द्र चौहान की पत्नी हैं। 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लोकेन्द्र सिंह ने सपा के नईमुल हसन को 10 हजार वोटों से हराया था। लेकिन इस बार अवनी सिंह अपने पति से 10 हजार वोट ज्यादा पाकर भी चुनाव हार गईं। 2017 में अवनी सिंह के पति लोकेन्द्र सिंह चौहान को 79 हजार 172 वोट मिले थे। वहीं सपा के नईमुल हसन को 66 हजार 436 वोट हासिल हुए थे। पिछले बार इस सीट पर बसपा भी चुनाव लड़ी थी। बसपा को 45 हजार 903 वोट मिले थे। जबकि 31 मई को आए नतीजों के मुताबिक सपा के नईमुल हसन को 94875 वोट मिले। वहीं अवनी सिंह को 89213 वोट मिले। इस तरह से अवनी सिंह अपने पति से 10 हजार ज्यादा वोट लाने के बावजूद चुनाव हार गईं। हालांकि अवनी सिंह को ये हार मात्र 6211 वोटों से मिली।

नूरपुर विधानसभा के आंकड़े दिलचस्प सियासी गोलबंदी की कहानी बताते हैं। बता दें कि ये सीट मुस्लिम बहुल इलाका है। यहां पर 1 लाख 20 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि दलित 40 हजार हैं, इसके अलावा करीब 60 हजार राजपूत वोट हैं। आंकड़ों के लिहाज से 2017 में बीजेपी को जितने वोट मिले, ये वोटर्स आज भी उसकी झोली में हैं। बीजेपी के वोटर्स में इजाफा ही हुआ है। यहां पर सपा की जीत की बड़ी वजह रही, बसपा का उम्मीदवार खड़ा ना करना। 2017 में बसपा को यहां 45 हजार वोट मिले थे। इस बार मोटे तौर पर बसपा के आधे वोट सपा को ट्रांसफर हो गये और पार्टी जीत गई।

बता दें कि 2012 से पहले नूपपुर विधानसभा सीट स्योहारा विधानसभा सीट के नाम से थी। स्योहारा सीट बीजेपी की पारंपरिक सीट रही है। 1991 में बीजेपी के महावीर सिंह ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1993 में हुए मिड-टर्म इलेक्शन में महावीर सिंह फिर से विधायक बने। 1997 में बीजेपी के वेद प्रकाश इस सीट पर काबिज हुए। 2002 में यहां का समीकरण बदला और बसपा के कुतुबद्दीन अंसारी चुनाव जीतकर विधायक बने।