बिहार में एनडीए की जीत के बाद चर्चा डिप्टी सीएम के पद को लेकर भी चल रही है। अब तक बिहार बीजेपी के बड़े चेहरे सुशील कुमार मोदी राज्य के उपमुख्यमंत्री थे। लेकिन अब ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि सुशील मोदी की कुर्सी जा सकती है। जी हां, कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा कहा जा रहा है कि नई सरकार में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। इस बदलाव के तहत सुशील कुमार मोदी की कुर्सी जा सकती है और पार्टी के नेता कामेश्वर चौपाल डिप्टी सीएम का पद संभाल सकते हैं।
नए डिप्टी सीएम को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है और इसपर कामेश्वर चौपाल ने कहा है कि ‘पार्टी का कार्यकर्ता हूँ, पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी मुझे स्वीकार है ,कामेश्वर चौपाल को उपमुख्यमंत्री का पद मिलने जा रहा है।’
सुपौल जिले के रहने वाले कामेश्वर चौपाल के बारे में बताया जाता है कि मधुबनी में पढ़ाई-लिखाई के दिनों में वो संघ के संपर्क में आए थे। दरअसल जिस अध्यापक से कामेश्वर चौपाल पढ़ते थे वो अध्यापक खुद संघ के कार्यकर्ता थे और अपने शिक्षक के जरिए ही वो संघ के संपर्क में आए। बताया जाता है कि स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो संघ की सेवा में लग गए और उनके लगन को देखते हुए संघ ने उन्हें मधुबनी जिले का जिला प्रचारक बना दिया था।
कामेश्वर चौपाल की सबसे खास पहचान यह है कि जब 90 के दशक में राम मंदिर को लेकर आंदोलन चल रहा था तब कामेश्वर चौपाल काफी सक्रिय रहे थे। RSS ने उन्हें प्रथम कार्यसेवक का दर्जा किया है। यह दर्जा उन्हें एक बेहद ही खास काम की वजह सें मिला था। दरअसल साल 1989 के राम मंदिर आंदोलन के समय हुए शिलान्यास में कामेश्वर चौपाल ने ही राम मंदिर की पहली ईंट रखी थी। मंदिर निर्माण के लिए पहली ईंट रखने की वजह से ही उन्हें पहले कार्यसेवक का दर्ज दिया गया है।
इस पहचान के अलावा दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कामेश्वर चौपाल की एक और पहचान है। कामेश्वर चौपाल दिवगंत नेता रामविलास पासवान के खिलाफ कभी चुनाव भी लड़ चुके हैं। साल 1991 में उन्होंने रामविलास के खिलाफ चुनावी मैदान में ताल ठोका था। हालांकि इस चुनाव में कामेश्वर चौपाल को हार का सामना करना पड़ा था।
हिंदुओं के भगवान कहे जाने वाले ‘श्री राम’ में मान्यता रखने वाले कामेश्वर चौपाल ने खुद एक बार एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘हम लोग जब बड़े हो रहे थे तब राम को अपना रिश्तेदार मानते थे। मिथिला इलाके में शादी के दौरान वर-वधू को राम-सीता के प्रतीकात्मक रूप में देखने की प्रथा है। ऐसा इसलिए क्योंकि मिथिला को सीता का घर कहा जाता है।’