लोकसभा चुनाव में इस बार दिलचस्प मुकाबला रहने वाला है, कई ऐसी सीटें भी सामने आई हैं जहां पर परिवार के ही सदस्य एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। सबसे बड़ा सियासी अखाड़ा इस बार महाराष्ट्र के बारामती में देखने को मिल रहा है जहां पर एक तरफ अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार मैदान में खड़ी हैं तो दूसरी तरफ शरद पवार की पार्टी ने यहां से सुप्रिया सुले को उतार दिया है, यानी कि ननद बनाम भौजाई का मुकाबला होने वाला है।
इस बात की अटकलें तो पहले से ही लगाई जा रही थीं कि इस बार मुकाबला परिवार के ही दो सदस्यों के बीच में रहने वाला है। अब शनिवार को इस बात पर मुहर भी लग गई। पहले अगर अजित पवार ने सुनेत्रा के नाम का ऐलान किया तो बाद में शरद पवार की पार्टी ने भी सियासी पलटवार करते हुए सुप्रिया सुले को आगे कर दिया। वैसे ये सीट सुप्रिया सुले का मजबूत गढ़ मानी जा सकती है।
असल में पिछले साल अजित के नेतृत्व में हुए विभाजन के बाद एनसीपी खुद ही कमजोर हो गई है। शरद पवार पहली बार 1984 में बारामती से जीते थे। 1991 में उनके पसंदीदा उम्मीदवार अजित पवार ने जीता और बाद में अपने चाचा को समायोजित करने के लिए इस सीट को छोड़ दिया। कुछ वर्षों को छोड़कर, जब पवार के करीबी सहयोगी बापूसाहेब थिटे ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, 1996 से बारामती का प्रतिनिधित्व पहले पवार और फिर सुप्रिया सुले ने किया। वह 2009 से सांसद हैं।
चुनाव का पूरा शेड्यूल यहां जानिए
अब जब एनसीपी विभाजित हो गई है और उपमुख्यमंत्री अजित ने बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की मदद से सुले को हराने के लिए जोरदार प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, तब अपनी बेटी की मदद के लिए शरद पवार ने बारामती में अपने पुराने सहयोगियों, प्रतिद्वंद्वियों और विभिन्न समुदायों तक पहुंचना शुरू कर दिया है। वैसे अगर देखा जाए तो इस बार बारामती की सीट पर एक तरफ मोदी की गारंटी देखने को मिलेगी तो दूसरी तरफ शरद पवार की इमोशनल अपील हावी रहेगी। समझने वाली बात ये है कि एनसीपी में जब से दो फाड़ हुई है, जमीन पर समीकरण भी बदल गए हैं।
बारामती सीट एक तरह से दोनों शरद पवार और अजित पवार के लिए एक लिटमस टेस्ट रहने वाला है। इस दो फाड़ का किसे फायदा हो सकता है, इसकी सबसे बड़ी परीक्षा अब होने जा रही है।