कॉलेज और यूनिवर्सिटीज के फाइनल ईयर के एग्जाम कराए जाएं या नहीं, इस मामले अब फैसला सुप्रीम कोर्ट के पास सुरक्षित है। अदालत में इस मामले में 18 अगस्त को सुनवाई की गई और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। एक बार सुप्रीम कोर्ट में फैसला होने के बाद साफ हो जाएगा कि एग्जाम्स का क्या होना है। दरअसल स्टूडेंट्स का पक्ष रखने वाले वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि जब क्लास ही नहीं हुईं तो फिर एग्जाम कैसे ले सकते हैं। सिंघवी ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा। सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि ये फैसला तो छात्रों के हित में ही दिखाई दे रहा है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए। याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यह राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण था जिसने महामारी के बीच राज्य में परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय 13 जुलाई को लिया था।
मंगलवार की सुनवाई के दौरान, यूजीसी ने अदालत को यह भी बताया कि परीक्षाओं के बिना छात्रों को डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है, और इसलिए परीक्षा तो स्थगित हो सकती है, मगर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की तीन जजों की बेंच ने सभी पक्षों को चार घंटे तक सुना। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला फिलहाल के लिए सुरक्षित रखा।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं
राज्यों ने कहा कि UGC ने फैसला लेने से पहले राज्य सरकारों से बात नहीं की और निर्देश जारी कर दिए। राज्यों के पास स्वास्थ्य संबंधी मामलों में खुद से निर्णय लेने की भी स्वतंत्रता है इसलिए वह परीक्षा रद्द करने के पक्ष में हैं।
महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया जाए कि वह चल रहे महामारी के दौरान लाखों विश्वविद्यालय के छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा का दबाव न बनाए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
अगले दशक में वोकेशनल एजुकेशन को चरणबद्ध तरीके से सभी स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में इंटीग्रेट किया जाएगा। 2025 तक, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% शिक्षार्थियों की वोकेशनल एजुकेशन तक पहुंच होगी, जिसके लिए लक्ष्य और समयसीमा के साथ एक स्पष्ट कार्य योजना विकसित की जाएगी।
राजनीतिक दलों द्वारा विरोध के बाद, थ्री-लैंग्वेज फार्मूले के बारे में NEP के मसौदे में हिंदी और अंग्रेजी के संदर्भ को अंतिम नीति दस्तावेज से हटा दिया गया है। नीति में कहा गया है, "बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद होंगी, इसके लिए तीन में से कम से कम दो भाषाएं भारतीय मूल की होनी चाहिए।"
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम पर, शिक्षा नीति में कहा गया है, “जहां भी संभव हो, निर्देश का माध्यम कम से कम ग्रेड 5 तक, मातृभाषा / स्थानीय भाषा / क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद, स्थानीय भाषा को जहाँ भी संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। यह नियम सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल में लागू होंगे।"
बोर्ड परीक्षा के नंबरों का महत्व अब कम होगा जबकि कॉन्सेप्ट और प्रैक्टिकल नॉलेज का महत्व ज्यादा होगा। सभी छात्रों को किसी भी स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए। छात्र दूसरी बार परीक्षा देकर अपने नंबर सुधार भी सकेंगे।
UGC ने कहा है कि जारी की गई गाइडलाइंस के जरिए 'देश भर के छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करना है जो कि उनके अंतिम वर्ष / टर्मिनल सेमेस्टर की परीक्षा नहीं होने पर होगी, जबकि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान भी ध्यान में रखा गया है।'
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में यूजीसी के संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने या न कराने को लेकर 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें तीन जजों की बेंच ने मामले को सुना। मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की तीन जजों की बेंच ने की।
डॉ. एएम सिंघवी ने सुनवाई के दौरान जीवन के अधिकार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि, कोरोनावायरस महामारी के कारण छात्रों के स्वास्थ्य का खतरा है। क्योंकि मौजूदा हालात में एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल करना होगा।
राज्यों ने कहा कि UGC ने फैसला लेने से पहले राज्य सरकारों से बात नहीं की और निर्देश जारी कर दिए। राज्यों के पास स्वास्थ्य संबंधी मामलों में खुद से निर्णय लेने की भी स्वतंत्रता है इसलिए वह परीक्षा रद्द करने के पक्ष में हैं।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होनें शुरूआत में अदालत से कहा कि मनीष सिसोदिया ने घोषणा की थी कि परीक्षा आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालयों को आजादी नहीं दी जा सकती है।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया जाए कि वह चल रहे महामारी के दौरान लाखों विश्वविद्यालय के छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा का दबाव न बनाए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, UGC ने स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएं ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों तरीकों से हो सकती हैं मगर समय पर होनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय, डीयू की ओबीई परीक्षाओं को चुनौती देने वाले मामले में प्रश्नों को संबोधित करते समय यूजीसी द्वारा प्रस्तुति आधारित मूल्यांकन के विकल्प को खारिज कर दिया गया था।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
UGC ने कॉलेजों को यह सुविधा दी है कि जो छात्र परीक्षा में शामिल न हो सकें उनके लिए स्पेशल एग्जाम आयोजित किए जाएं। इसे लेकर भी छात्रों में असंतोष है। छात्रों का कहना है कि परीक्षाएं पूरी तरह रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर रिजल्ट तैयार किया जाए।
पश्चिम बंगाल के लिए एडवोकेट जनरल किशोर दत्ता अपना तर्क शुरू करते हैं। उनका कहना है कि उन्हें संदेह है कि अगर किसी भी राज्य के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने परीक्षा आयोजित करने के निर्णय में योगदान दिया है। जिस पर जस्टिस भूषण का कहना है कि यूजीसी ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी सभी दिशानिर्देशों को लागू कर दिया है। "आप यह नहीं कह सकते कि उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विचार नहीं किया है, दिशानिर्देश इसका उल्लेख करते हैं।"
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होनें शुरूआत में अदालत से कहा कि मनीष सिसोदिया ने घोषणा की थी कि परीक्षा आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालयों को आजादी नहीं दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में आज मामले की सुनवाई पूरी हुई है। पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है और सभी पक्षों से 3 दिन की अवधि के भीतर अपनी लिखित याचिका दाखिल करने को कहा है।
एसजी मेहता ने बताया कि महाराष्ट्र राज्य के उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री ने 6 मई को एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया था। गठित समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि परीक्षा आयोजित की जाए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
यूजीसी के इस साल के अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन के निर्देशों को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ता बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग स्नातक हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय में, सरकारी अधिवक्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहां तक परीक्षाओं का प्रश्न है, उसमें कोई बाधा नहीं होगी। वकील उच्च न्यायालय को बताया कि, यहां तक कि क्वारंटाइन में उन लोगों के लिए, सीईटी परीक्षा आयोजित किए जाने पर पहले से ही अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं।
कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
केंद्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि विश्वविद्यालयों में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सितंबर में होंगी। जिसे 13 राज्यों और यूटी के 31 याचिकाकर्ताओं ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
आयोग का कहना है कि फाइनल ईयर के एग्जाम बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। कॉलेज या यूनिवर्सिटी अपनी सुविधा के आधार पर ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी माध्यम में परीक्षा आयोजित कर सकते हैं।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और पंजाब इन चार राज्यों ने यूजीसी के इन दिशानिर्देशों का विरोध करते हुए इनका पालन नहीं करने में असमर्थता जताई थी।