यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के एग्जाम के लिए यूजीसी ने उनके एग्जाम्स को लेकर नई गाइडलाइन्स जारी की हैं। इसमें यूजीसी ने कहा है कि सभी यूनिवर्सिटी फाइनल ईयर के एग्जाम 30 सितंबर तक करा लें। यूजीसी के इस फैसले को लेकर कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। उनकी मांग है कि यूजीसी एग्जाम न कराए। बिना एग्जाम के ही रिजल्ट जारी कर दे। सुप्रीम कोर्ट अंतिम वर्ष की परीक्षाओं की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई 10 अगस्त 2020 तक के लिए टाल दी गयी है। सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता को कहा गया है कि गृह मंत्रालय का पक्ष स्पष्ट करें। इसके लिए 7 अगस्त तक एफिडेविट सबमिट करनी है।
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याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं। यूजीसी ने 6 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये थे। बता दें कि करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
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याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
अंतिम वर्ष की परीक्षाओं की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई 10 अगस्त 2020 तक के लिए टाल दी गयी है। सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता को कहा गया है कि गृह मंत्रालय का पक्ष स्पष्ट करें। इसके लिए 7 अगस्त तक एफिडेविट सबमिट करनी है।
पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था. UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं.
याचिकर्ताओं में COVID-19 पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है। छात्र ने कहा, 'ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID-19 पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है.'
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित न करने की अपील की गई है. युवा सेना की तरफ से कहा गया है कि देश में कोरोना के कारण स्थिति बिगड़ रही है और यह परीक्षा आयोजित करने के लिए अनुकूल नहीं है.
UGC ने कोर्ट से सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग हलफनामा में की थी. UGC ने कहा था कि टर्मिनल परीक्षा का आयोजन एक "समय-संवेदनशील" मुद्दा है और HRD के दिशा- निर्देशों का पालन करके विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के बाद ये परीक्षाएं कराने निर्णय लिया गया था.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने बीते दिन सुप्रीम कोर्ट (SC) में अपना जवाब दाखिल किया था, जिसमें कहा गया कि फ़ाइनल ईयर की परिक्षाएं (Final Year Exams) 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मक़सद छात्रों का भविष्य संभालना है, ताकि छात्रों के अगले साल की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जुलाई में जारी हुई गाइडलाइन्स अप्रैल वाली गाइडलाइन्स से भी ज्यादा सख्त हैं. उन्होंने कोर्ट में यह भी कहा कि देश में कई सारे ऐसे विश्विद्यालय हैं, जहां ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं. सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि यूजीसी की गाइडलाइन्स (UGC Guidelines) में परीक्षाएं ऑफलाइन देने का भी विकल्प है।
दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं।
गृह मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों के अनुसार, 6 जुलाई को यूजीसी द्वारा प्रदान किए गए संशोधित परीक्षा दिशानिर्देशों के अनुसार, अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाओं को ऑनलाइन, ऑफलाइन या मिश्रित मोड में पूरे भारत में सितंबर के अंत तक आयोजित करने की आवश्यकता है।
उच्चतम न्यायालय ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती देते हुए दलीलों के एक नए बैच को सुना, जिसे 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया। गुरुवार को, यूजीसी ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को अनिवार्य बनाने वाले अपने 6 जुलाई के दिशानिर्देशों को नहीं बदलेगा।
यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को बताया है कि 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश 'छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा' के लिए जारी किया गया था।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है।
इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने आज उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
आयोग ने छात्रों से कहा है कि वे इस उम्मीद में न रहें कि परीक्षाएं स्थगित ये रद्द हो जाएंगी। परीक्षा के लिए तैयारी बदस्तूर जारी रखें।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक संघवी ने तर्क दिया कि आयोग का निर्णय मनमाना था और कुछ विश्वविद्यालयों में पर्याप्त आईटी सुविधाएं नहीं हैं इसलिए वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते।
कोर्ट ने यह भी कहा कि गृह मंत्रालय इस मुद्दे पर अपनी राय स्पष्ट करे। केंद्र ने कहा कि आज वह जवाब देगा। हालाँकि, आयोग ने फिलहाल छात्रों को एक्जाम की तैयारी जारी रखने का सुझाव दिया है।
इससे पहले शुक्रवार को, यह बताया गया था कि आयोग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि सभी विश्वविद्यालयों को यूजीसी के दिशानिर्देशों का पालन करना होगा और 30 सितंबर से पहले अंतिम वर्ष या अंतिम सेमेस्टर परीक्षा आयोजित करनी होगी।
आयोग ने यह भी कहा था कि महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब और हरियाणा सहित कई राज्यों द्वारा विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने और पिछले प्रदर्शन और आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर छात्रों को ग्रेड देने का निर्णय यूजीसी के दिशा-निर्देशों के विपरीत है।
परीक्षा को रद्द करने की याचिका विभिन्न राज्यों और विश्वविद्यालयों के 31 छात्रों द्वारा प्रस्तुत की गई है। याचिका में कहा गया है कि बिगड़ती COVID-19 महामारी की स्थिति के बीच परीक्षा आयोजित करना छात्रों के लिए सुरक्षित नहीं है, और छात्रों के लिए न्याय के हित में परीक्षा को रद्द किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक संघवी ने तर्क दिया कि आयोग का निर्णय मनमाना था और कुछ विश्वविद्यालयों में पर्याप्त आईटी सुविधाएं नहीं हैं इसलिए वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते।
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया, "छात्रों को परीक्षाओं की तैयारी जारी रखनी चाहिए। छात्रों को इस धारणा में नहीं रहना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के कारण परीक्षाएं रोक दी जाएंगी।”
आयोग ने छात्रों से कहा है कि वे इस उम्मीद में न रहें कि परीक्षाएं स्थगित ये रद्द हो जाएंगी। परीक्षा के लिए तैयारी बदस्तूर जारी रखें।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
ऑनलाइन ओपन बुक फॉर्मेट में दिल्ली विश्वविद्यालय की अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 10 अगस्त से शुरू होने वाली हैं, इसलिए अदालत ने जल्द इस मामले में फैसला लेने की बात कही है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के फैसले को चुनौती देते हुए सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता UGC के लिए पेश हुए और अदालत से कहा कि जब तक मामले को 10 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में संबोधित नहीं किया जाता है, तब तक के लिए इसे टाल दिया जाए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, UGC ने स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाएं ऑनलाइन, ऑफलाइन या दोनों तरीकों से हो सकती हैं मगर समय पर होनी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय, डीयू की ओबीई परीक्षाओं को चुनौती देने वाले मामले में प्रश्नों को संबोधित करते समय यूजीसी द्वारा प्रस्तुति आधारित मूल्यांकन के विकल्प को खारिज कर दिया गया था।
इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है।
UGC ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
UGC ने कहा है कि जारी की गई गाइडलाइंस के जरिए 'देश भर के छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करना है जो कि उनके अंतिम वर्ष / टर्मिनल सेमेस्टर की परीक्षा नहीं होने पर होगी, जबकि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान भी ध्यान में रखा गया है।'
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
सिंघवी ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा। सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि ये फैसला तो छात्रों के हित में ही दिखाई दे रहा है। फाइनल ईयर की परीक्षाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए टाल दी है।