यूजीसी ने तय किया है कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के फाइनल ईयर के एग्जाम लिए जाएंगे, लेकिन इसे लेकर कई स्टूडेंट्स ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। आज 18 अगस्त को सुनवाई पूरी हो चुकी है। यूजीसी ने एग्जाम ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से कराने की छूट दी है। स्टूडेंट्स की मांग है कि एग्जाम न कराए जाएं। क्योंकि ऐसे में एग्जाम सेंटर पर जाने से कोरोना होने का खतरा हो सकता है। वहीं ऑनलाइन एग्जाम के लिए स्टूडेंट्स के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
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आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी। याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर ‘विशेष परीक्षा के लिए’ परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check here
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
अभिषेक मनु सिंघवी जो इस मामले में एक कानून के छात्र की भूमिका में हैं, उन्होंने SC को सुनवाई में बताया कि यह जीवन और स्वास्थ्य का मामला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है।
वहीं दूसरी ओर, श्याम दीवान, जो युवा सेना के लिए पैरवी कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि यूजीसी द्वारा पहले के दिशानिर्देशों में संवेदनशीलता और लचीलापन था।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
दिवान ने कहा, "आप यह नहीं कह सकते कि तीसरे वर्ष के छात्र का जीवन पहले वर्ष या दूसरे वर्ष के छात्र की तुलना में कम कीमती है।" उन्होंने यह भी कहा कि अगर परीक्षा अनिवार्य कर दी जाती है, तो जिन छात्रों के पास टेक्नॉलिजी तक पहुंच नहीं है, वे पीड़ित हो सकते हैं।
एसजी तुषार मेहता ने 27 जुलाई की सुनवाई में कहा था कि भारत में 818 विश्वविद्यालयों में से 209 ने पहले ही परीक्षाएं पूरी कर ली हैं जबकि 394 को परीक्षाओं को पूरा करने की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने कहा कि 35 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में नहीं पहुंचे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी प्रस्तुत किया कि यूजीसी और MHA के हलफनामों ने इस पहलू के साथ विचार नहीं किया है कि क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधान यूजीसी के दिशानिर्देशों से आगे निकल सकते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
यूजीसी के इस साल के अंत तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन के निर्देशों को लेकर कर्नाटक उच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाकर्ता बैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग स्नातक हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय में, सरकारी अधिवक्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहां तक परीक्षाओं का प्रश्न है, उसमें कोई बाधा नहीं होगी। वकील उच्च न्यायालय को बताया कि, यहां तक कि क्वारंटाइन में उन लोगों के लिए, सीईटी परीक्षा आयोजित किए जाने पर पहले से ही अनिवार्य प्रक्रियाएं हैं।
कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर 'विशेष परीक्षा के लिए' परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी है।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
छात्रों, शिक्षाविदों और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के विरोध के बावजूद, मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने पहले ट्विटर के जरिए कहा था कि, “किसी भी शिक्षा मॉडल में, मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण होता है। परीक्षा में प्रदर्शन छात्रों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है।”
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
सिंघवी बताते हैं कि परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की बहुत असमानता है। कई छात्रों को परीक्षा के लिए यात्रा करना होगा, जो महामारी की इन स्थितियों में प्रत्यक्ष जोखिम पैदा करता है।
जब कक्षाओं को बाधित किया गया तो परीक्षाएं कैसे आयोजित की जा सकती हैं? तर्कों में और योग्यता जोड़ते हुए, सिंघवी ने कहा कि कक्षाएं बाधित हो गईं - तो परीक्षाओं को कैसे आयोजित किया जा सकता है?
सिंघवी का कहना है कि गृह मंत्रालय शैक्षणिक संस्थानों के संबंध में अपने फैसले पर कायम है। कॉलेज और स्कूल 5 महीने के लिए बंद कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आप बिना सिखाए कैसे परीक्षा दे सकते हैं? इसके अलावा, यह महामारी का एक विशेष मामला और परिदृश्य है।
अभिषेक मनु सिंघवी जो इस मामले में एक कानून के छात्र की भूमिका में हैं, उन्होंने SC को सुनवाई में बताया कि यह जीवन और स्वास्थ्य का मामला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में यूजीसी के संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने या न कराने को लेकर 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें तीन जजों की बेंच ने मामले को सुना। मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की तीन जजों की बेंच ने की।
डॉ. एएम सिंघवी ने सुनवाई के दौरान जीवन के अधिकार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि, कोरोनावायरस महामारी के कारण छात्रों के स्वास्थ्य का खतरा है। क्योंकि मौजूदा हालात में एक जगह से दूसरी जगह ट्रैवल करना होगा।
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम पर, शिक्षा नीति में कहा गया है, “जहां भी संभव हो, निर्देश का माध्यम कम से कम ग्रेड 5 तक, मातृभाषा / स्थानीय भाषा / क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद, स्थानीय भाषा को जहाँ भी संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। यह नियम सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल में लागू होंगे।"
बोर्ड परीक्षा के नंबरों का महत्व अब कम होगा जबकि कॉन्सेप्ट और प्रैक्टिकल नॉलेज का महत्व ज्यादा होगा। सभी छात्रों को किसी भी स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए। छात्र दूसरी बार परीक्षा देकर अपने नंबर सुधार भी सकेंगे।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने सोमवार को कहा, केंद्र सरकार अंग्रेजी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहती है। शिक्षा मंत्री को यह बयान इसलिए देना पड़ा क्योंकि नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिलने के बाद विपक्ष के कुछ नेताओं ने सरकार पर ऐसा आरोप लगाया था।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट (SC) 18 अगस्त को यूजीसी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं अनिवार्य करने के खिलाफ याचिका पर अगली सुनवाई करेगा। आखिरी सुनवाई 14 अगस्त हो की गई थी।
अभिषेक मनु सिंघवी जो इस मामले में एक कानून के छात्र की भूमिका में हैं, उन्होंने SC को सुनवाई में बताया कि यह जीवन और स्वास्थ्य का मामला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है।
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में यूजीसी के संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने या न कराने को लेकर 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें तीन जजों की बेंच ने मामले को सुना। मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की तीन जजों की बेंच ने की।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार हैं। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूजीसी को इंटरमीडिएट परीक्षा के लिए दिशानिर्देशों में बताए गए अन्य तरीकों से परीक्षा आयोजित करने की संभावना पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। यूजीसी ने कहा कि परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में ली जा सकती हैं, मगर सिम्पल प्रजेंटेशन मोड में नहीं क्योंकि परीक्षा समयबद्ध होनी चाहिए।
दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
अंतिम सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तुत प्रश्न को संबोधित करते हुए, डॉ. एएम. सिंघवी ने कहा है कि यूजीसी दिशानिर्देश मनमानी के पहलू के तहत अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।
श्याम दीवान ने यूजीसी दिशानिर्देशों के खिलाफ फाइनल ईयर की परीक्षा के लिए युवाओं की याचिका के लिए अपना प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि जीवन के अधिकार पर सवाल उठता है। साथ ही डीएम एक्ट का हवाला दिया।