यूजीसी ने पहले ही साफ कर दिया था कि फाइनल ईयर के एग्जाम कराए जाएं या नहीं कराए जाएं, यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है तो इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि एग्जाम बाद में होंगे या टाल दिए जाएंगे। अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, यूजीसी ने अदालत को यह भी बताया कि परीक्षाओं के बिना छात्रों को डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है, और इसलिए परीक्षा तो स्थगित हो सकती है, मगर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check here
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का निर्देश दिया है क्योंकि आयोग ने यह महसूस किया कि सीखना एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। उधर, नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) अगले महीने जेईई (मेन) और एनईईटी आयोजित करने पर अडिग है, जबकि राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और विवेक तन्खा ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर एग्जाम बाद में कराने की मांग की है। JEE (Main) छह दिनों से अधिक समय के लिए आयोजित किया जाना है – 1 सितंबर से 6 सितंबर तक, वहीं मेडिकल कोर्सेज के लिए NEET, 13 सितंबर को निर्धारित है।
UGC Exam Guidelines 2020 Live Updates: Check Here
श्याम दीवान ने कहा कि यह अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, खासतौर पर महाराष्ट्र में जहां कुछ कॉलेजों को कोरोनावायरस संक्रमण के लगातार सामने आ रहे मामलों के चलते क्वारनटाइंन सेंटर बना दिया गया है।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यह राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण था जिसने महामारी के बीच राज्य में परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय 13 जुलाई को लिया था।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
रेगुलेटर ने सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को "अनिवार्य रूप से" जारी करने के लिए कहा है कि रोजगार अनुबंध स्पष्ट रूप से यूजीसी और अन्य वैधानिक निकायों के निर्धारित मानदंडों के अनुसार सभी नियमों और शर्तों को निर्देशित करते हैं।
ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई), तकनीकी शिक्षा नियामक, ने भी पिछले साल इसी तरह की चेतावनी जारी की थी।
एआईसीटीई, तकनीकी शिक्षा नियामक ने कहा गया था कि, संस्थान शिक्षकों और छात्रों के प्रमाणपत्रों को बरकरार रखे हुए हैं। यह उल्लेख किया गया था कि यह मानदंडों के खिलाफ था और सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह दलील दी कि फैसला एंट्री 66 के सीमित दायरे को दर्शाता है जो परीक्षा आयोजित करने के मानकों को पूरा कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि यह यूजीसी नहीं बल्कि विश्वविद्यालय है जो परीक्षा आयोजित करेगा। दातार आगे जवाब देते हैं कि कार्यवाही में सबसे महत्वपूर्ण पहलू छात्रों का कल्याण है।
जेएनटीयू का यह कदम ऐसे समय में आया है जब इस मुद्दे से संबंधित एक याचिका उच्च न्यायालय तेलंगाना में लंबित है। एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें HC से अंडरग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षाओं को रद्द करने और इस तरह COVID-19 महामारी को देखते हुए छात्रों को प्रमोट करने का आग्रह किया गया था।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के आदेश के अनुपालन में, हैदराबाद की जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (JNTU) 16 सितंबर से तैयारी कर रही है।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
जिन छात्रों को कॉलेजों में प्रोविजनल एडमिशन मिल गया है, उन्हें कॉलेज में अपनी सीटों के लिए फर्स्ट ईयर की फीस के रूप में एक बड़ी राशि जमा करनी पड़ी है। एग्जाम में फेल होने की स्थिति में छात्रों को इस फीस का भी नुकसान होगा।
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) ने दावा किया है कि उन्होंने शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और सभी राज्यों के शिक्षा मंत्रियों को पत्र लिखकर कंपार्टमेंट परीक्षा आयोजित नहीं करने को कहा है।
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये हैं।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी स्थापना की जाएगी।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो कि सितंबर तक परीक्षाओं को अनिवार्य रूप से आयोजित करने के लिए कहते हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा है कि छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि यह राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण था जिसने महामारी के बीच राज्य में परीक्षा आयोजित नहीं करने का निर्णय 13 जुलाई को लिया था।
सुनवाई के दौरान, यूजीसी ने अदालत को यह भी बताया कि परीक्षाओं के बिना छात्रों को डिग्री प्रदान नहीं की जा सकती है, और इसलिए परीक्षा तो स्थगित हो सकती है, मगर उन्हें रद्द नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को अपनी अंतिम दलीलें प्रस्तुत करने के लिए तीन दिनों का समय दिया था। शीर्ष अदालत से अब कल यानी 24 अगस्त को अपना अंतिम फैसला सुनाने की उम्मीद की जा रही है।
राज्यों ने कहा कि UGC ने फैसला लेने से पहले राज्य सरकारों से बात नहीं की और निर्देश जारी कर दिए। राज्यों के पास स्वास्थ्य संबंधी मामलों में खुद से निर्णय लेने की भी स्वतंत्रता है इसलिए वह परीक्षा रद्द करने के पक्ष में हैं।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कोविड -19 महामारी के बीच विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुसार आयोजित परीक्षाओं को रद्द करने की मांग करते हुए विभिन्न राज्यों के छात्रों के एक समूह द्वारा दायर याचिका के बारे में सुनवाई की।
यूजीसी के दिशा-निर्देशों और अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षाओं के आयोजन के बारे में अदालत ने फैसले के लिए तीन दिन का समय दिया था। फाइनल ईयर के छात्रों के लिए यह फैसले के घड़ी है जिसके कल खत्म होने की संभावना जताई जा रही है।
एसजी मेहता ने तर्कों का निष्कर्ष निकाला और कहा कि विश्वविद्यालय परीक्षा की समय सीमा में देरी या स्थगित कर सकते हैं, लेकिन यह तर्क नहीं दे सकते कि परीक्षा आयोजित किए बिना डिग्री प्रदान की जाए।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोट इस मामले की सुनवाई कर रहा है।
अब यह सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
पश्चिम बंगाल के लिए एडवोकेट जनरल किशोर दत्ता अपना तर्क शुरू करते हैं। उनका कहना है कि उन्हें संदेह है कि अगर किसी भी राज्य के स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने परीक्षा आयोजित करने के निर्णय में योगदान दिया है। जिस पर जस्टिस भूषण का कहना है कि यूजीसी ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी सभी दिशानिर्देशों को लागू कर दिया है। "आप यह नहीं कह सकते कि उन्होंने सार्वजनिक स्वास्थ्य पर विचार नहीं किया है, दिशानिर्देश इसका उल्लेख करते हैं।"
दिल्ली सरकार के वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने अदालत में अपना पक्ष रखा। उन्होनें शुरूआत में अदालत से कहा कि मनीष सिसोदिया ने घोषणा की थी कि परीक्षा आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालयों को आजादी नहीं दी जा सकती है।
पीठ ने राज्यों और यूजीसी को अपनी अंतिम लिखित दलीलें पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया है। अदालत यह भी तय करेगी कि यूजीसी के दिशानिर्देशों के विपरीत, स्थिति सामान्य होने तक अंतिम परीक्षा को स्थगित करने के लिए राज्यों के पास आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्ति है या नहीं।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की तीन जजों की बेंच ने सभी पक्षों को चार घंटे तक सुना। इसके बाद अदालत ने अपना फैसला फिलहाल के लिए सुरक्षित रखा।
अगले दशक में वोकेशनल एजुकेशन को चरणबद्ध तरीके से सभी स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में इंटीग्रेट किया जाएगा। 2025 तक, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% शिक्षार्थियों की वोकेशनल एजुकेशन तक पहुंच होगी, जिसके लिए लक्ष्य और समयसीमा के साथ एक स्पष्ट कार्य योजना विकसित की जाएगी।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।