UGC परीक्षा दिशानिर्देश और विश्वविद्यालय परीक्षाओं के फाइनल ईयर के एग्जाम पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। UGC के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट कर डिग्री नहीं दे सकती इसलिए UGC की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य परीक्षा रद्द कर सकते हैं मगर बगैर परीक्षा के छात्रों को प्रोमोट नहीं कर सकते।
UGC Exam Guidelines 2020 Live Updates: Check Here
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परीक्षा दिशानिर्देशों और अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाओं पर यूजीसी मामले पर निर्णय की घोषणा होने के बाद यह साफ हो गया है कि छात्रों को फाइनल ईयर के एग्जाम देने होंगे। कई विश्वविद्यालय आयोग के निर्देशों के बाद से परीक्षा की तैयारी पूरी कर चुके थे जबकि दिल्ली, महाराष्ट्र और ओडिशा जैसे राज्य अभी उच्चतम न्यायालय के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस मामले की हर ताजा अपडेट जानने के लिए हमारे साथ बने रहें।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check SC Verdict here
Highlights
UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है।
सीएम ने कहा कि छात्रों से अनुरोध पर विचार करने और उनके कल्याण पर विचार करने के बाद निर्णय लिया गया। यह फैसला एक उच्च स्तरीय समिति ने लिया है। मूल्यांकन प्रक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है और छात्रों को मूल्यांकन और पदोन्नति मानदंडों पर विश्वविद्यालयों के साथ जांच करनी चाहिए।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के यूजीसी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्विट कर कहा- 'मैं अंतिम वर्ष की परीक्षा के आयोजन के पक्ष में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं। इससे छात्रों को योग्यता के आधार पर आगे प्रवेश प्राप्त करने में मदद मिलेगी। अब, मुझे उम्मीद है, अनावश्यक विवाद खत्म हो जाएगा।'
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
31 याचिकाकर्ताओं में से एक छात्र का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है। जिसने यूजीसी से सीबीएसई मॉडल को अपनाने और मूल्यांकन के आधार पर ग्रेस मार्क्स से संतुष्ट नहीं होने वाले छात्रों के लिए बाद की तारीख में एक परीक्षा आयोजित करने की मांग की थी।
राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी, और यह कि आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी से संपर्क करना होगा।
राज्य आपदा प्रबंधन अधिकारियों द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत लिए गए निर्णय अंतिम परीक्षा आयोजित करने के लिए 30 सितंबर, 2020 की समय सीमा के संबंध में यूजीसी के दिशा-निर्देशों पर आधारित होंगे।
30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के यूजीसी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बेंगलुरु केंद्रीय सांसद पीसी मोहन की प्रतिक्रिया।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। परीक्षाएं 10 सितंबर से होनी थीं मगर परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के यूजीसी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्विट कर कहा- 'मैं अंतिम वर्ष की परीक्षा के आयोजन के पक्ष में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं। इससे छात्रों को योग्यता के आधार पर आगे प्रवेश प्राप्त करने में मदद मिलेगी। अब, मुझे उम्मीद है, अनावश्यक विवाद खत्म हो जाएगा।'
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने गुरुवार को कहा कि 17 लाख से अधिक उम्मीदवार जेईई और एनईईटी के लिए अपने एडमिट कार्ड पहले ही डाउनलोड कर चुके हैं और इससे पता चलता है कि छात्र किसी भी कीमत पर परीक्षा देना चाहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर जेईई, नीट 2020 के साथ यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में फाइनल ईयर के एग्जाम का विरोध आज भी ट्रेंडिंग में रहा। ट्रेंड हो रहे हैशटैग पर लाखों की संख्या में ट्विट्स भी हो रहे हैं।
यूजीसी ने पहले कहा था कि परीक्षाओं के बारे में स्थिति जानने के लिए विश्वविद्यालयों से संपर्क किया गया था और 818 विश्वविद्यालयों (121 डीम्ड विश्वविद्यालयों, 291 निजी विश्वविद्यालयों, 51 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और 355 राज्य विश्वविद्यालयों) से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्विटर पर ये कहा।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे।
मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने आज 28 अगस्त को मामले में फैसला सुनाया है।
अदालत द्वारा आज जारी फैसले के अनुसार, कॉलेज/यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर के एग्जाम स्थगित तो किए जा सकते हैं मगर परीक्षाएं रद्द नहीं की जा सकती और न ही छात्रों को इंटर्नल मार्क्स के आधार पर पास किया जा सकता है।
कोर्ट का फैसला आने के बाद एडवोकेट अलख अलोक श्रीवास्तव ने ट्वीट कर फैसले की मुख्य बातें बताई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि राज्य के आपदा प्रबंधन अधिकारियों द्वारा पिछले सेमेस्टर/ वर्ष के परिणामों के आधार पर अंतिम वर्ष के छात्रों को प्रोमोट करने का फैसला डीएम अधिनियम के तहत राज्यों की यूनिवर्सिटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं है और ऐसा कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ यूजीसी के पास है।
अदालत ने माना कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को UGC के दिशानिर्देशों के विपरीत जाकर परीक्षा न कराने के आदेश देने का अधिकार है, इसलिए अदालत राज्यों को यह अनुमति देती है कि वे UGC से एग्जाम कराने की डेडलाइन में छूट मांग सकते हैं।
अदालत ने कहा कि राज्य परीक्षाएं कराने के लिए UGC से और समय मांग सकते हैं मगर बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट नहीं कर सकते क्योंकि यूनिवर्सिटी को UGC के ऊपर अधिकार नहीं हैं।
UGC के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट कर डिग्री नहीं दे सकती इसलिए UGC की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य परीक्षा रद्द कर सकते हैं मगर बगैर परीक्षा के छात्रों को प्रोमोट नहीं कर सकते। UGC के दिशानिर्देश बदले नहीं जाएंगे।
उन्होनें अदालत से कहा, "यूजीसी अधिनियम अनुसूची 7 में सूची 1 के प्रविष्टि 66 के माध्यम से UGC को परीक्षा के विषय में फैसला लेने का अधिकार है। मैं आपका ध्यान धारा 12 पर आकर्षित करना चाहता हूं जो विश्वविद्यालय के अधिकार बताता है। 2003 का विनियमन 6 (1) नियम डिग्री देने के लिए न्यूनतम मानक के बारे में है जिसके अनुसार बगैर परीक्षा के आयोग किसी भी छात्र को डिग्री नहीं दे सकता।"
यूजीसी दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाले एडवोकेट जयदीप गुप्ता ने पश्चिम बंगाल के शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि बंगाल में परीक्षा आयोजित करना असंभव है। यूजीसी ने ग्राउंड रियलिटीज पर कतई ध्यान ही नहीं दिया।
बिहार, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्य इस समय बाढ़ से भी जूझ रहे हैं। ऐसे में कईयों को शहर से बाहर पलायन करना पड़ गया है। इन राज्यों में एग्जाम कराना बहुत बड़ी चुनौती होगा। राज्य सरकारें परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं UGC ने परीक्षाओं को अनिवार्य बताया है।
TOI द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
फैसला आज अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा दिया जाएगा। महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित चार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि यूजीसी द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर लाखों छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा देने का दबाव न बनाया जाए।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में यूजीसी केस पर फैसला देगी। अदालत को यह फैसला सुनाना है कि क्या परीक्षाओं को रद्द करने अधिकार राज्य के पास है अथवा नहीं। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।