विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के प्रमुख एम जगदीश कुमार ने साफ किया है कि आरक्षित सीटों को डी-रिजर्व नहीं किया जाएगा। जनसत्ता.कॉम से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि खाली आरक्षित सीटों पर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों से भरने की फिलहाल कोई योजना नहीं है। सिर्फ एक ड्राफ्ट तैयार हुआ था जिसे लोगों की प्रतिक्रिया के बाद निष्क्रिय कर दिया गया है। दरअसल यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त आरक्षित उम्मीदवार उपलब्ध नहीं होने पर उन्हें सामान्य वर्ग के लिए खोलने के लिए मसौदा दिशा निर्देश जारी किया था। यह ड्राफ्ट 27 दिसंबर 2023 को जारी किया गया था और 28 जनवरी 2024 तक इसपर लोगों की राय मांगी गई थी।
यूजीसी ने जो ड्राफ्ट गाइडलाइन्स तैयार की थी उसमें कहा गया था कि अगर SC, ST, OBC कैटेगरी के लिए रिजर्व सीटों पर योग्य उम्मीदवार नहीं मिलेगा, तो उन सीटों को अनारक्षित कैटेगरी के उम्मीदवारों से भर लिया जाएगा। ड्राफ्ट गाइडलाइंस में यह भी साफ कहा गया था कि एससी, एसटी और ओबीसी कैटेगरी के लिए रिजर्व सीटों पर किसी दूसरी कैटेगरी के कैंडिडेट्स को भर्ती नहीं किया जा सकता, लेकिन रिजर्व वैकेंसी को डी-रिजर्व करके इसे अनरिजर्व वैकेंसी की तरह ट्रीट किया जा सकता है।
हालांकि यूजीसी ने बाद मे क्लियर कर दिया था वह सिर्फ एक मसौदा भर था। यूजीसी का रिजर्व्ड सीटों को डी-रिजर्व करने का कोई प्लान नहीं है। बता दें कि इसको लेकर शिक्षा मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया है कि हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूट्स में आरक्षण का लाभ ‘रिजर्वेशन इन टीचर्स कैडर एक्ट 2019’ के तहत मिलता रहेगा।
जनसत्ता से बात करे हुए एम जगदीश कुमार ने ये भी बताया कि विश्वविद्यालयों की ग्लोबल रैंकिंग में भारत के पिछड़ने का एक बड़ा कारण परसेप्शन का है। उन्होंने कहा कि जो लोग ये रैंकिंग देते हैं उनके कई पैमाने ऐसे हैं जिसमें परसेप्शन का बड़ा रोल है। परसेप्शन के मामले में भारत पीछे रह जाता है। यूजीसी चीफ ने साफ कहा कि अगर भारतीय यूनिवर्सिटीज में कोई कमी रहती तो यहां से पढ़े छात्र गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दुनिया की शीर्ष कंपनियों के सीईओ के पद पर नहीं होते।