देश में छात्र आत्महत्याओं का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2023 में छात्र आत्महत्याओं की संख्या 13,892 रही, जो 2013 की तुलना में लगभग 65% अधिक है और सिर्फ 2019 की तुलना में यह वृद्धि 34% दर्ज की गई है। समग्र आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो, 2013 में कुल 1.35 लाख लोग आत्महत्या के शिकार हुए थे, जबकि 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 1.71 लाख हो गया, जो 27% की वृद्धि दर्शाता है। 2023 में छात्र आत्महत्याएं कुल आत्महत्याओं का 8.1% हिस्सा रही, जो दस साल पहले के 6.2% की तुलना में अधिक है।
इस क्षेत्र के लोगों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या
व्यवसाय के हिसाब से देखें तो, दैनिक मजदूर आत्महत्याओं के मामले में सबसे आगे हैं, जिनका प्रतिशत 27.5% है। इसके बाद गृहिणियां 14% और स्वरोजगार वाले लोग 11.8% के साथ शामिल हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती शैक्षणिक दबाव, बेरोजगारी, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और पारिवारिक तनाव इस बढ़ोतरी के मुख्य कारण हैं।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आज के समय में छात्रों पर प्रतिस्पर्धा और सोशल मीडिया के दबाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। कई मामलों में छात्र अपनी समस्याओं को व्यक्त नहीं कर पाते, जिससे ये स्थिति और गंभीर हो जाती है।
छात्रों और युवाओं के लिए विशेषज्ञों का सुझाव
विशेषज्ञों का सुझाव है कि छात्रों और युवाओं के लिए समय पर मानसिक स्वास्थ्य सहायता, परामर्श और शिक्षा संस्थानों में काउंसलिंग सुविधाओं का विस्तार जरूरी है। इसके साथ ही परिवार और समाज को भी संवेदनशील बनकर बच्चों और युवाओं की मानसिक स्थिति पर ध्यान देना होगा।
सरकार और विभिन्न NGOs ने भी छात्र मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाने और हेल्पलाइन सेवाओं को सुदृढ़ करने की दिशा में कदम उठाए हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि केवल जागरूकता ही पर्याप्त नहीं है, इसके लिए हर स्तर पर ठोस रणनीति और सहायक वातावरण बनाना आवश्यक है।