पैसा सही जगह लगाने की सलाह के लिए ज्यादातर लोग वित्तीय सलाहकार की मदद लेते हैं। वित्तीय प्रबंधन के अंतर्गत कर बचाने, बेहतर बीमा पॉलिसी, निवेश के लिए बेहतर फंड, कौन से शेयर बेचने या खरीदने में लाभ होगा या सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाएगा आदि आते हैं। इस तरह की विभिन्न जानकारियां ग्राहक को देना ही एक वित्तीय सलाहकार का काम होता है। वित्तीय योजना का कारोबार दुनिया के सबसे तेज उभरते क्षेत्रों में से एक है। भारत समेत कई देशों में वित्तीय प्रबधंकों की मांग में तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में वित्तीय प्रबंधन में करिअर एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। इस क्षेत्र में हाथ आजमाने वाले भविष्य में कई सुनहरे अवसरों का लाभ उठा सकते हैं।

प्रमुख पाठ्यक्रम : कई संस्थानों में वित्तीय सलाहकार की पढ़ाई के लिए सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं लेकिन इसके लिए कारोबार से संबंधित ज्ञान, कराधान,अकाउंटिंग और बीमा से जुड़े विषयों की जानकारी होना आवश्यक है।
वित्तीय विशेषज्ञता के साथ एमबीए/पीजीडीएम/ पीजीडीबीए
चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सीए)
कंपनी सेक्रेटरी (सीएस)
सर्टिफिकेट फाइनेंस प्लानिंग (सीएफपी सीएम)
चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिसिस (सीएफए)
वित्तीय योजना में पीजी डिप्लोमा (पीजीडीएफ)

योग्यता: पेशेवर वित्तीय सलाहकार बनने के लिए कॉमर्स में ग्रेजुएशन के अलावा सांख्यिकी, अर्थशास्त्र और बिजनेस से जुड़े पहलुओं की अच्छी जानकारी आवश्यक है। इसके अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सीए) और कंपनी सेक्रेटरी (सीएस) करने के लिए भी विद्यार्थियों को 12वीं पास होना ही जरूरी है। कुछ संस्थान वित्तीय विशेषज्ञता के साथ एमबीए, पीडीजीएम या पीजीडीबीए आदि कराते हैं, उसके लिए छात्र के पास स्नातक डिग्री होना जरूरी है।

रोजगार के ढेरों विकल्प: एक पेशेवर वित्तीय सलाहकार को किसी कंपनी में या फिर निजी सलाहकार के रूप में काम मिल सकता है। वित्तीय नियोजक आम आदमी तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि कॉरपोरेट और म्यूचुअल फंड, बैंक-वित्तीय संस्था, सेवानिवृत्ति निधि, बीमा कंपनियों, पोर्टफोलियो प्रबंधन कंपनियों, स्टॉक एक्सचेंजों, कर सलाहकार फर्म और पेंशन प्रबंधन के क्षेत्र में भी इनकी सेवाओं की आवश्यकता होती है।

कार्य का स्वरूप: वित्तीय जानकारों की सलाह बचत और निवेश के निर्णयों में मायने रखती है। वित्तीय योजनाकारों की सलाह पर ग्राहक अपने सामाजिक और व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा कर पाने में सफल होते हैं। वित्तीय सलाहकार की सलाह दो प्रकार की होती हैं, पहली स्वतंत्र और दूसरी प्रतिबंधित सलाह। स्वतंत्र सलाह स्वतंत्र वित्तीय सलाहकार (आइएफए) की ओर से दी जाती है, जो शोध और डाटा विश्लेषण के बाद ग्राहकों को निवेश करने के लिए अप्रतिबंधित और निष्पक्ष सलाह देते हैं। दूसरी ओर, प्रतिबंधित वित्तीय सलाहकार सीमित उत्पाद और निवेश पर ही सलाह दे सकते हैं। ये किसी कंपनी या वित्तीय सलाहकार फर्म के साथ काम कर रहे होते हैं। एक वित्तीय सलाहकार का यह कर्तव्य है कि वह ग्राहकों सही राय और सूचना दे। फिर चाहे वह स्वतंत्र सलाह हो या प्रतिबंधित सलाह।

वेतन: वित्तीय सलाहकार का वेतन उसके पास मौजूद डिग्री और अनुभव पर निर्भर करता है। एक एजंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दस साल से कम अनुभव रखने वाले वित्तीय सलाहकार का वेतन औसतन 3.62 लाख रुपए सालाना होता है। इसके बाद अनुभव बढ़ने पर सलाहकार को वेतन के साथ बोनस, लाभ में शेयर, कमीशन आदि भी मिलता है। इन सभी को मिलकर वेतन का सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है।

जरूरी कौशल: ’तथ्यों को विश्लेषण करने की क्षमता
’संवाद स्थापित करने की क्षमता
’ मृदुभाषी और सौम्य व्यवहार
’रचनात्मकता और धैर्यवान
’लोगों का भरोसा जीतने की कला
’समस्या को सुलझाने का कौशल

प्रमुख जिम्मेदारियां:
’ ग्राहकों में वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना
’ ग्राहकों से संपर्क बनाए रखना और वित्तीय क्षेत्र के ताजा घटनाक्रम की जानकारी उन्हें उपलब्ध कराना
’ छात्रवृत्ति या अनुदान जैसी वित्तीय सहायता के बारे में जानकारी देते रहना
’ वित्तीय रिपोर्ट तैयार करना, वित्तीय सलाहकार नियामक के पहलुओं के बारे में ग्राहक को जानकारी देना
’ ग्राहकों को वित्तीय पहलुओं और विभिन्न दस्तावेजों की अहमियत समझाना
’ आयकर, बैंक खाता, बीमा और पेंशन आदि के रिकॉर्ड जमा करने में ग्राहकों की सहायता करना
’ वित्तीय दस्तावेज तैयार कर उनके संबंध में में ग्राहकों को विस्तृत जानकारी देना
’ ग्राहकों के लिए निवेश और बीमा कवरेज जैसे उद्देश्यों के लिए रणनीति तैयार करना
’ म्यूचुअल फंड, बॉन्ड और शेयर जैसे वित्तीय उत्पाद ग्राहकों को बेचकर बिक्री लक्ष्य का पालन करना
’ निवेश में जोखिम का विश्लेषण कर उन्हें कम करने की उपयुक्त नीतियां तैयार करना
’ ग्राहकों की शिकायतों को संभालकर रखना और उनका जल्द से जल्द निपटारा करना

विशेषज्ञ की राय : वित्त का क्षेत्र हर उद्यम, कंपनी, फर्म, संस्थान और व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है। यही वजह है कि मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) या वित्तीय सलाहकार का पद महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिए वित्त क्षेत्र में विशेषज्ञता जरूरी है। कोई भी छात्र कक्षा 12 या स्नातक करने के बाद सीए में दाखिला ले सकता है। इसके लिए विद्यार्थी को एक प्रवेश परीक्षा (सीपीटी) देनी होती है जिसका आयोजन भारतीय चार्टेड अकाउंटेट्स संस्थान साल में दो बार करता है। इसके अलावा विद्यार्थी स्नातक करने के बाद वित्त में विशेषज्ञता के साथ एमबीए कर सकते हैं। इस पाठ्यक्रम को भारतीय प्रबंधन संस्थान और दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा अन्य संस्थान व विश्वविद्यालय कराते हैं। इसके अलावा एनएसई, बीएसई, एनआइएफएम आदि तीन व छह महीने और एक साल के डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलाते हैं। -अनिल कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय