देश में 33 साल के लंबे इंतजार के बाद नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। उम्‍मीद की जा रही है इस बार की नीतियां शिक्षा के बुनियादी ढांचे की मरम्‍मत कर सकेगी जिससे देश में प्राइमरी और हॉयर एजुकेशन की स्थिति सुधरेगी। नई शिक्षा नीति का मसौदा मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा जा चुका है और जल्‍द इसपर विचार शुरू किया जाएगा। ऐसे में समय है इस ओर ध्‍यान देने का, कि ये नीति आखिर कितनी असरदार होगी? क्‍या इससे देश की लचर शिक्षा व्‍यवस्‍था को ऑक्‍सीज़न मिलेगा? पिछली शिक्षा नीतियों में जो उद्देश्‍य बनाए गए थे, क्‍या वो पूरे हुए? आइये नज़र डालते हैं कि हम शिक्षा को दुरुस्‍त करने की दिशा में कितना आगे आ चुके हैं, और अभी कितने आगे जाना और बाकी है।

इन उद्देश्‍यों को कर लिया है पूरा
शिक्षा को देश के हर बच्‍चे तक पहुंचाने के मामले में हमने 1968 के बाद से तरक्‍की की है। प्राइमरी शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाने के उद्देश्‍य को शिक्षा के अधिकार (RTE) से बल मिला और अब ‘एनुअल स्‍टेटस ऑफ एजुकेशन’ (ASER-2014) तथा uDISE की ताजा रिपोर्ट ये बताती है कि देश के 96.7% प्रतिशत बच्‍चे प्राइमरी लेवल पर स्‍कूलों में इनरोल किए जाते हैं। ये 1968 की शिक्षा नीति की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
बीते वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में पब्लिक इंवेस्‍टमेंट का शेयर बढ़ा है। हालांकि, अभी भी यह GDP के 6% से कम है। पिछले 5 सालों में ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बजट में 31,906 करोड़ से बढ़ाकर 54,735 करोड़ की वृद्धि की है। सरकार एक छात्र की शिक्षा पर हर साल औसतन 11,225 रु खर्च करती है। वर्ष 2014 से, सरकार ने प्रारंभिक शिक्षा कोष के लिए 2% सेस लगाना शुरू किया है। हालांकि, देखा गया है कि प्रारंभिक शिक्षा कोष का एक बड़ा हिस्‍सा हर साल खर्च होने से ही बच जाता है और कोष में जमा धनराशि बढ़ती जाती है, मगर ये सरकार की Education To All पॉलिसी के लिए तत्‍परता को दर्शाता है।
1968 और 1986 की नीतियों में स्‍कूलों के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को सुधारने पर जोर दिया गया था और इसमें काफी हद तक कामयाबी भी मिली है। 2001 में प्राथमिक स्‍कूलों की गिनती जहां 8,45,007 थी, वहीं अब यह संख्‍या बढ़कर 2014 में 14,48,712 हो गई है। 98% ग्रामीण इलाकों में गांव से एक किलोमीटर के दायरे में स्‍कूल पहुंच चुके हैं। SSA बजट का 18% हिस्‍सा स्‍कूलों के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर पर खर्च किया जा रहा है तथा देश के लगभग 65% स्‍कूलों के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर RTE के दिशानिर्देशों को फॉलो करते हैं और यह गिनती हर साल बढ़ती जा रही है।

ये उद्देश्‍य छूट गए हैं पीछे
2014 की MHRD की रिपोर्ट के मुताबिक, 3.2% बच्‍चे स्‍कूलों से बाहर हैं तथा इन 3.2% बच्‍चों में से 50% ऐसे हैं जिन्‍होनें कभी न कभी स्‍कूल में दाखिला लिया था मगर 8वीं तक की पढ़ाई पूरी करने से पहले स्‍कूल छोड़ दिया। समस्‍या है प्राइमरी स्‍कूलों से बच्‍चों को 5वीं के बाद सेकेण्‍डरी स्‍कूलों तक ले जाना। लड़कियों, SC, ST तथा माइनर्स के आंकड़े सबसे बुरे हैं। MHRD द्वारा जारी Out of School सर्वे की रिपोर्ट ये बताती है कि एलिमेंट्री लेवल पर स्‍कूलों में एडमिशन लेने वाले बच्‍चों में से केवल 12% ही उच्‍च शिक्षा (हॉयर एजुकेशन) तक पहुंच पाते हैं। एलिमेंट्री एजुकेशन 96.7% और सेकेण्‍डरी एजुकेशन 12% के बीच का ये गैप बहुत बड़ा है।
ASER 2014 तथा NAS 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, देशभर के सरकारी स्‍कूलों में 5वीं कक्षा में पढ़ रहे लगभग 45% बच्‍चे ऐसे हैं जो लिख नहीं सकते, पढ़ नहीं सकते और मैथमैटिक्‍स में साधारण जोड़-घटाना नहीं कर सकते। 2009 में, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश राज्‍यों ने OCED की इंटरनेशनल स्‍टूडेंट असेस्‍मेंट (PISA) में हिस्‍सा लिया था जो बच्‍चों में शिक्षा की गुणवत्‍ता की पहचान करने वाली एक अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर का असेस्‍मेंट प्रोग्राम है। हैरानी की बात है कि इसके रिजल्‍ट में दुनिया के 74 देशों के बीच भारतीय राज्‍यों की रैंक 72वीं तथा 73वीं थी। यानी नीचे दूसरी और तीसरी। हमारी किसी भी शिक्षा नीति में ‘Quality Education’ को परिभाषित नहीं किया गया है। शिक्षा में गुणवत्‍ता का बेहद जरूरी है।
देश की शिक्षा प्रणाली में प्राइवेट स्‍कूलों का क्‍या रोल है, ये कभी तय नही हो सका। देश में प्राइवेट और सरकारी स्‍कूलों के बीच के जंग सी छिड़ी हुई है। देखा जाए तो सरकारी स्‍कूलों में मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ मिड डे मील, फ्री स्‍कूल ड्रेस और किताबें दी जाती है जबकि प्राइवेट स्‍कूलों में इन्‍हीं सब के लिए मोटी फीस वसूली जाती है, फिर भी देश में बेहतर शिक्षा के लिए प्राइवेट स्‍कूलों की ओर पैरेन्‍ट्स का रुझान बढ़ा है। ASER 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 से 2014 के बीच सरकारी स्‍कूलों में बच्‍चों का इनरोलमेंट 6.2% कम हुआ है जबकि प्राइवेट स्‍कूलों में 6.5% बढ़ा है। जहां देश में सरकारी और प्राइवेट स्‍कूलों को साथ मिलकर शिक्षा में सुधार की ओर कदम बढ़ाने चाहिए, वहीं दोनो के बीच तनाव की स्थिति बनी रहती है जिसपर ध्‍यान दिया जाना जरूरी है।

उम्‍मीद करते हैं कि नीति निर्धारक देश के बेहतर भविष्‍य के लिए ऐसी नीतियां लाएंगे जिससे शिक्षा के बुझते दिए में तेल भरा जा सके। ऐसा न हो कि कई और पीढियां देश की लचर शिक्षा व्‍यवस्‍था की भेंट चढ़ जाएं।