सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकानॉमी (CMIE) के कन्ज़्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के मुताबिक, वर्ष 2018 में देश में नौकरियों की तादाद में 1 करोड़ की कमी आई है और फिलहाल इस स्थिति में कोई सुधार नज़र नहीं आ रहा। ये आंकड़े बेशक चिंताजनक हैं लेकिन इनसे भी चिंताजनक है, गिरती हुई क्वालिटी जॉब्स की संख्या। आंकड़ों पर ध्यान न भी दें, फिर भी चाय तम्बाकू के स्टॉल, डिलिवरी ब्वॉय, टैक्सी ड्राइवर और इसी तरह ही नौकरियों की बढ़ती संख्या पर नज़र जाती ही है। ये वे नौकरियां नहीं है जिनकी पढ़े-लिखे युवा इच्छा रखते हैं, या सपना देखते हैं। जहां एक ओर ऐसी नौकरियों की संख्या बढ़ती दिख रही है, वहीं दूसरी ओर इंजीनियर, एमबीए और दूसरे पोस्ट ग्रेजुएट्स के लिए नौकरियों की स्थिति वैसी नहीं हैं, जैसी एक दशक पहले तक थी।
आईटी कंपनियां और फाइनेंशियल मार्केट काबिल युवाओं की भर्ती में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, जितनी रीटेल व्यापारी माल लादने वाले और डिलिवरी करने वालों को नौकरी देने में। कम योग्यता वाले उम्मीदवारों के लिए बढ़ती नौकरियों के मौके ये जताते हैं कि लेबर मार्केट में शिक्षित युवाओं की डिमांड घट रही है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 से 2018 में 5वीं पास तक के लिए 3.8 करोड़ नौकरियों के मौके पैदा हुए जबकि कक्षा 6 से 9वीं पास के लिए 1.8 करोड़, कक्षा 10-12वीं पास के लिए 1.2 करोड़ और ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के लिए केवल 29 लाख।
कन्ज़्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे में यह देखा जा सकता है कि ज्यादा शिक्षित युवाओं के लिए पिछले वर्षों में नौकरियों के अवसर में बढ़ोत्तरी बेहद कम है। वहीं, कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित बेरोजगारों के लिए नौकरियों के मौके बहुत तेजी से बढ़े हैं। पिछले 3 सालों में केवल प्राइमरी शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए नौकरियों की संख्या में 45% की वृद्धि हुई है, जबकि कक्षा 6 से 9वीं पास के लिए 26%, कक्षा 10 से 12वीं पास के लिए 12% तथा ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट के लिए केवल 06%। ये आंकड़े यह बताते हैं कि सबसे कम नौकरियों के अवसर उनके लिए बढ़े हैं जो ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 2018 के अंत तक देश के 55% कामगार युवा ऐसे थे जो 10वीं पास भी नहीं थे।
2016 से 2018 के दौरान जहां नौकरियों की संख्या में कमी आई है, वहीं स्वरोजगार की संख्या में 2 करोड़ की वृद्धि हुई है, जो कि वास्तव में 71% की बढ़ोत्तरी है। आपको बता दें कि स्वरोजगार में तीन तरह के रोजगार आते हैं। पहले वे जो पान-बीड़ी का स्टॉल लगाते हैं, ढेलों पर हस्त निर्मित सामान बेचते हैं, पकौड़े-समोसे आदि बनाते हैं, इंश्योरेंस एजेंट या ब्रोकर आदि का काम करते हैं। इसके बाद आते हैं ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड आदि और अंत में आते हैं फोटोग्राफर, फ्रीलांस राइटर आदि। इनमें से कोई भी रोजगार ज्यादा भरोसेमंद या टिकाऊ नहीं है। 2018 के अंत तक देश में 4.8 करोड़ स्वरोजगार प्राप्त युवा थे। ये वे बेरोजगार थे जो लंबे समय तक कोई नौकरी नहीं पा सके और उम्र बढ़ने के कारण और कोई विकल्प नहीं बचा था।
शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में महिलाओं की स्थिति और चिंताजनक है। सितम्बर-दिसम्बर 2017 से सितम्बर-दिसम्बर 2018 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगार पुरुषों का प्रतिशत 9.3 से बढ़कर 9.9 हुआ जबकि महिलाओं का प्रतिशत 31.1 से बढ़कर 35.3 हो गया। बता दें कि सभी आंकड़े सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकानॉमी द्वारा जारी कन्ज़्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे पर आधारित हैं।

