Leap Year, Leap Day 2020 (लीप वर्ष, लीप ईयर, लीप डे) Leap Day 29 February History in Hindi, Google Doodle: आज 29 फरवरी है। आज लीप डे है, मतलब इस साल फरवरी का महीना 29 दिन का है। आज गूगल ने इस पर खास डूडल बनाया है। चलिए जानते हैं क्यों होता है लीप डे। यह सब पृथ्वी के घूमने और इस तथ्य के कारण है कि एक दिन वास्तव में 24 घंटे का नहीं होता है। स्लोह खगोलशास्त्री बॉब बर्मन के मुताबिक एक दिन-रात 23 घंटे, 56 मिनट और 4.1 सेकंड का होता है। वहीं पृथ्वी को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 45 सेकंड लगते हैं। 1583 में पोप ग्रेगोरी द्वारा ग्रेगोरियन कैलेंडर बनाया गया था। इसमें भी हर चार साल में फरवरी में एक अतिरिक्त दिन को शामिल किया गया था।
जब 04 अक्टूबर के बाद सीधे आ गया था 15 अक्टूबर, जानें लीप ईयर को लेकर अपवादों के भी अपवाद
आसान शब्दों में जानें तो जिस साल को 4 से भाग देने पर शेष जीरो आता हो, वो लीप ईयर होगा, लेकिन सिर्फ वही शताब्दी वर्ष लीप ईयर होगा, जो 400 के अंक से पूरी तरह विभाजित हो जाए। इस हिसाब से साल 2000 लीप ईयर था, लेकिन 1900 लीप ईयर नहीं था। साल 2000 और फिर उसके बाद से 21वीं सदी में हर चौथा साल लीप ईयर रहा है। साल 2020 लीप ईयर है यानि अगला लीप ईयर 2024 होगा, उसके बाद 2028।
Read | Leap Day 2020: All You Need to Know
इससे पहले 2016 में लीप इयर पड़ा था, जबकि अगला 2024 में पड़ेगा। वहीं, गूगल ने 2016 में इस दिन hopping bunnies का डूडल बनाया था, जिसे Olivia Huynh ने तैयार किया था।
अगर इन 6 घंटों को समय चक्र में काउंट न किया जाए तो दुनिया 100 वर्ष बाद 25 दिन आगे निकल जाएगी। इसके कारण वैज्ञानिक मौसम का सही अंदाजा नहीं लगा पाएंगे। साथ ही पृथ्वी से जुड़ी खगोलीय घटनाओं की भी सही जानकारी नहीं होगी।
सोलर ईयर और कैलेंडर ईयर के बीच सही तालमेल बैठाने की वजह से लीप ईयर मनाना जरूरी माना जाता है। पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने के लिए 365 दिन और करीब 6 का समय लेती है। इस तरह देखा जाए तो इन्हीं अतिरिक्त 6 घंटों को मिलाकर चार साल में 24 घंटे यानी एक दिन पूरा होता है।
साल 2024 में अगला लीप ईयरआज गूगल ने अपने डूडल में लोगो बदला है और इसमें 28, 29, और 1 अंक दिखाया गया है जो फरवरी और मार्च के बीच हर चार साल में आने वाले एक अतिरिक्त दिन यानी कि 29 फरवरी को दर्शाता है। अगला लीप ईयर अब साल 2024 और साल 2028 में होगा।
21वीं सदी में 2004 से लेकर हर चौथा साल जैसे 2008, 2012, 2016, 2020 तक सभी लीप ईयर हैं। इसके बाद 2024, 2028, 2032, 2036, 2040, 2044 और आगे यही सिलसिला चलता रहेगा। एक और बात बता दें कि अगला शताब्दी वर्ष यानि 2200 लीप ईयर नहीं होगा, क्योंकि यह साल (2200/400=5.5) 400 से पूरी तरह विभाजित नहीं होता है।
पहली बार 46 ईसा पूर्व में जूलियन कैलेंडर सिस्टम के अंतर्गत चार साल में एक लीप डे का सिद्धांत लागू किया गया। उस तरीके से हर चौथे साल में लीप डे जोड़ने पर कई शताब्दियों के दौरान कैलेंडर में विसंगति पैदा होने लगी।
धरती 365 दिन और 6 घंटे में सूरज का एक चक्कर पूरा करती है। ऐसे में कैलेंडर सिस्टम का बैलेंस न बिगड़े और गर्मी-सर्दी के महीने आगे पीछे न हो जाएं, इसके लिए चौथे साल में एक एक्स्ट्रा दिन जोड़ा जाता है, ताकि कैलेंडर वर्ष और खगोलीय वर्ष समान रूप से चलें।
लीप ईयर 366 दिन का होने के कारण किसी सामान्य वर्ष की तुलना में 1 दिन यानि 24 घंटे लंबा होता है। हम सभी यह जानते और मानते हैं कि धरती सूर्य का पूरा चक्कर 365 दिन में लगती है, लेकिन सच यह है कि धरती का खगोलीय वर्ष 365.25 दिन का होता है।
लीप डे 29 फरवरी को सेलिब्रेट करने के लिए गूगल ने खास डूडल तैयार किया है।
जैसा कि आप जान ही गए हैं कि सामान्य तौर पर चार-चार वर्षों के अंतर पर लीप ईयर आता है। अगला लीप ईयर सन् 2024 होगा जिसमें फरवरी में 29 दिन होंगे। इसका अर्थ है कि अब 29 फरवरी 2024 को ही आएगी।
हम चाहे कितनी भी कोशिश कर लें पर इस गड़बड़ी को पूरी तरह ठीक नहीं कर सकते। हमारे सालाना कैलेंडर 24 घण्टे के दिनों से मिलकर बना है जबकि पृथ्वी की कक्षीय अवधि सेकेण्ड्स में गिनी जाती है। यह 26 सेकंड की गड़बड़ी हर 3,320 वर्षों में एक पूरा दिन जोड़ देगा।
भविष्य में लीप ईयर की गणना में किसी भी तरह की गलती से बचने के लिए यह नियम बनाया गया है कि प्रत्येक 4000 वर्षों में एक लीप वर्ष हटा दिया जाए। इससे वर्षों तक मिनट-मिनट कर इकट्ठा हुए एक अतिरिक्त दिन को कैलेंडर वर्ष से हटाया जा सकेगा।
नियम और अपवाद समझने के लिए इस फॉर्मुले को याद करें
कोई भी वर्ष लीप ईयर होगा जबकि:
- वह 4 से पूरी तरह विभाज्य हो, मगर
- जिस वर्ष के अंत में 00 आता हो, मगर
- 00 से पहले की संख्या 4 से विभाज्य होनी चाहिए। जैसे 1600, 2000, 2400 आदि
लीप ईयर हमेशा चार से विभाज्य संख्या वाले वर्ष होते हैं जैसे- 2016, 2020, 2024। लेकिन ऐसा वर्ष जो चार से विभाज्य हो, वह हमेशा एक लीप वर्ष हो, ऐसा नहीं है। इस नियम में अपवाद हैं, जैसे कि 1900 और 2100, दोनों चार से विभाज्य है, फिर भी लीप वर्ष नहीं हैं। लीप वर्ष के नियमों को लेकर अपवादों की पूरी जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
लीप ईयर प्रत्येक 4 साल बाद मनाया जाता है। वे सभी सन् जो 4 से विभाज्य हैं वे लीप ईयर के रूप में मनाए जाते हैं। हालांकि, इस नियम में भी अपवाद हैं।
पृथ्वी 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड में एक कक्षा पूरी करती है। हालांकि, 365 दिनों के तीन साल और 366 दिनों के एक लीप वर्ष के साथ, जूलियन कैलेंडर में एक वर्ष की औसत लंबाई 365 दिन और 6 घंटे थी। लेकिन लगभग 12 मिनट का अतिरिक्त समय हर 4 सालों में जुड़ जाता है।
वैसे तो लीप ईयर प्रत्येक 4 साल बाद मनाया जाता है। वे सभी सन् जो 4 से विभाज्य हैं वे लीप ईयर के रूप में मनाए जाते हैं मगर कभी कभी अपवादों में भी अपवाद होते हैं। सन् 1900 को नियम के अनुसार तो लीप ईयर होना चाहिए था, मगर उस वर्ष फरवरी में 28 दिन ही थे। ऐसा ही सन् 2100 में होने वाला है।
गूगल ने हरे और पीले रंग का इस्तेमाल करते हुए इस डूडल को बनाया है। गूगल ने पहले O में 28 लिखा है, दूसरे O में 29 और उसके बाद G में 1 लिखा है। आपको बता दें कि पिछला लीप डे 2016 में था। आज के बाद अब यह दिन साल 2024 में आएगा।
1288 में स्कॉटलैंड की क्वीन मार्गरेट ने एक कानून पास किया था, जिसके अनुसार अगर 29 फरवरी को कोई शख्स किसी महिला का प्रपोजल ठुकराता है तो उसे जुर्माना चुकाना होगा। जुर्माने में उसे एक किस, एक सिल्क का गाउन, महंगे ग्लव्स या फिर पैसे चुकाने होते थे। हालांकि, अब ये कहानियां तो कोई नहीं मानता, लेकिन 29 फरवरी के दिन आज भी महिलाओं का प्रपोज डे मनाया जाता है, जिस दिन वह किसी को भी प्रपोज कर सकती हैं।
अब तक आप लीप डे यानी 29 फरवरी और लीप ईयर के बारे में तो सब समझ चुके होंगे, लेकिन क्या आप एक्स्ट्रा लीप डे के बारे में जानते हैं। एक्स्ट्रा लीप डे का मतलब है 30 फरवरी। भारत में तो 30 फरवरी कभी नहीं आती, लेकिन स्वीडन और फिनलैंड में 1712 में एक्स्ट्रा लीप डे हुआ था। दरअसल, ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि उनका जूलियन कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर यानी हमारे सामान्य कैलेंड से मेल खा सके। हालांकि, वहां अभी भी एक जाति (Hobbits) के लोग हैं जो हर साल 30 फरवरी मनाते हैं।
इससे जुड़ी दो कहानियां खूब चर्चा में रहती हैं। पहली ये कि आयरलैंड की सैंट ब्रिजिड इस बात से बहुत ही परेशान थीं कि 5वीं शताब्दी में महिलाओं को शादी के प्रस्तावों के लिए इंतजार करना पड़ता था, जो कई बार कभी नहीं आते थे। उन्होंने सैंट पैट्रिक से इसकी शिकायत की, जिन्होंने ये तय किया कि हर चार साल में एक बार आने वाले लीप ईयर में लीप डे यानी 29 फरवरी को महिलाएं किसी को भी प्रपोज कर सकेंगी।
वैसे तो बहुत से लोग हैं, जो लीप डे पर पैदा हुए, लेकिन क्या आप किसी ऐसे शख्स के बारे में जानते हैं तो लीप डे के दिन ही मरा भी हो। World Heritage Encyclopedia के अनुसार ब्रिटेन में लीप डे के दिन पैदा हुए जेम्स मिल्ने विल्सन 1880 में लीप डे के दिन यानी 29 फरवरी को ही मरे भी थे। बता दें कि जेम्स तस्मानिया के 8वें प्रीमियर बने थे। 68 साल के जेम्स की मौत उनके '17वें जन्मदिन' यानी उनके जन्म के बाद 17वीं बार आई 29 फरवरी को हुई।
बचपन से ही हमें यह पढ़ाया गया है कि धरती 365 दिन में सूर्य का पूरा चक्कर लगाती है। लेकिन सच यह नहीं है। दरअसल, धरती का खगोलीय वर्ष 365.25 दिन का होता है। इसका सीधा मतलब यह कि धरती 365 दिन और 6 घंटे में सूरज का एक चक्कर लगा पाती है। इसी के लिए Leap Day की जरूरत अहम हो जाती है।
इससे पहले 2016 में लीप इयर पड़ा था, जबकि अगला 2024 में पड़ेगा। वहीं, गूगल ने 2016 में इस दिन hopping bunnies का डूडल बनाया था, जिसे Olivia Huynh ने तैयार किया था।
अगर इन 6 घंटों को समय चक्र में काउंट न किया जाए तो दुनिया 100 वर्ष बाद 25 दिन आगे निकल जाएगी। इसके कारण वैज्ञानिक मौसम का सही अंदाजा नहीं लगा पाएंगे। साथ ही पृथ्वी से जुड़ी खगोलीय घटनाओं की भी सही जानकारी नहीं होगी।
समय चक्र के बीच सही तालमेल बैठाने की वजह से लीप ईयर मनाना जरूरी माना जाता है। पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने के लिए 365 दिन और करीब 6 का समय लेती है। इस तरह देखा जाए तो इन्हीं अतिरिक्त 6 घंटों को मिलाकर चार साल में 24 घंटे यानी एक दिन पूरा होता है।
ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार ग्रोगोरियन कैलेंडर के शुरू होने के बाद से ही लीप ईयर को काउंट किया जा रहा है। प्रभु यीशु के जन्म से ही ग्रोगोरियन कैलेंडर को सार्वजनिक रूप से अपनाया गया है।
साल 2024 में अगला लीप ईयरआज गूगल ने अपने डूडल में लोगो बदला है और इसमें 28, 29, और 1 अंक दिखाया गया है जो फरवरी और मार्च के बीच हर चार साल में आने वाले एक अतिरिक्त दिन यानी कि 29 फरवरी को दर्शाता है। अगला लीप ईयर अब साल 2024 और साल 2028 में होगा।
आमतौर पर यह माना जाता है कि धरती सूर्य का पूरा चक्कर 365 दिन में लगाती है, लेकिन सच यह है कि धरती का खगोलीय वर्ष 365.25 दिन का होता है, यानि धरती 365 दिन और 6 घंटे में सूरज का एक चक्कर पूरा करती है।
लीप ईयर वह साल होता है जिसमें 366 दिन होते हैं। लीप डे के कारण ही फरवरी को साल का सबसे छोटा महीना कहा जाता है। गूगल ने समझाते हुए कहा, 'हमें लीप ईयर की जूरूरत इसलिए ताकि कैलेंडर का संतुलन पृथ्वी द्वारा सूर्य का चक्कर लगाने पर बना रहे। ऐसा न होने पर हर साल इसमें 6 घंटे का फर्क आ जाएगा'।
अपने कैलेंडर सिस्टम को बदलने के लिए उस साल सितंबर महीने में 11 दिन कम कर दिए गए थे, जिन्हें lost 11 days of September के नाम से जाना जाता है। वैसे लीप ईयर पहली बार 46 ईसा पूर्व में जूलियन कैलेंडर सिस्टम के अंतर्गत लागू हुआ माना जाता है। हालांकि दुनिया भर में लागू कई अन्य कैलेंडर जैसे इस्लामिक और इजिप्शियन कैलेंडर में भी लीप डे होता है।
historic-uk.com के मुताबिक आधुनिक काल में पहला लीप ईयर 1752 में हुआ था, जब ब्रिटेन और उसके उपनिवेशों द्वारा जूलियन केलेंडर को त्यागकर ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया गया।
21वीं सदी में 2004 से लेकर हर चौथा साल जैसे 2008, 2012, 2016, 2020 तक सभी लीप ईयर हैं। इसके बाद 2024, 2028, 2032, 2036, 2040, 2044 और आगे यही सिलसिला चलता रहेगा। एक और बात बता दें कि अगला शताब्दी वर्ष यानि 2200 लीप ईयर नहीं होगा, क्योंकि यह साल (2200/400=5.5) 400 से पूरी तरह विभाजित नहीं होता है।
पहली बार 46 ईसा पूर्व में जूलियन कैलेंडर सिस्टम के अंतर्गत चार साल में एक लीप डे का सिद्धांत लागू किया गया। उस तरीके से हर चौथे साल में लीप डे जोड़ने पर कई शताब्दियों के दौरान कैलेंडर में विसंगति पैदा होने लगी।
धरती 365 दिन और 6 घंटे में सूरज का एक चक्कर पूरा करती है। ऐसे में कैलेंडर सिस्टम का बैलेंस न बिगड़े और गर्मी-सर्दी के महीने आगे पीछे न हो जाएं, इसके लिए चौथे साल में एक एक्स्ट्रा दिन जोड़ा जाता है, ताकि कैलेंडर वर्ष और खगोलीय वर्ष समान रूप से चलें।
लीप ईयर 366 दिन का होने के कारण किसी सामान्य वर्ष की तुलना में 1 दिन यानि 24 घंटे लंबा होता है। हम सभी यह जानते और मानते हैं कि धरती सूर्य का पूरा चक्कर 365 दिन में लगती है, लेकिन सच यह है कि धरती का खगोलीय वर्ष 365.25 दिन का होता है।