कल्पना कीजिए- एक गुरु हैं, शिष्य उनके चरणों में बैठा है। मन में संशय है, मार्ग धुंधला है। गुरु मुस्कुराते हुए अपने करकमलों को उसके सिर पर रख देते हैं। बस इतना सा स्पर्श… और भीतर जैसे उजाला भर जाता है। यही तो है करकमल। सिर्फ हाथ नहीं- आशीर्वाद का माध्यम, स्नेह का प्रतीक, करुणा का विस्तार।

जब हम कहते हैं- गुरुदेव के करकमलों से आशीर्वाद मिला, तो यह वाक्य केवल शब्दों का मेल नहीं होता, बल्कि श्रद्धा और समर्पण की भावना होती है। ‘कर’ यानी हाथ, ‘कमल’ यानी कोमलता और पवित्रता। दोनों मिलकर सत्कर्म का प्रतीक बन जाता है।

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किसी मां के करकमलों से दिया गया भोजन हो या किसी संत के करकमलों से मिला आशीर्वाद- हर बार यह शब्द एक अदृश्य ऊष्मा लेकर आता है। यह उन हाथों की बात करता है जो देते हैं, सहलाते हैं, थामते हैं और कभी कुछ नहीं मांगते। अर्थात करकमल सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि भाव है, जहां स्पर्श से शांति और आशीर्वाद से विश्वास आता है।

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आज का शब्द: ‘करकमल’

जनसत्ता.कॉम की ‘सही हिंदी’ मुहिम का उद्देश्य है सही, सटीक और भावपूर्ण हिंदी को प्रोत्साहित करना। इस शृंखला में हम ऐसे शब्दों को समझते हैं जो हिंदी की सुंदरता और अभिव्यक्ति की शक्ति को दर्शाते हैं, ताकि पाठक न केवल शब्दों का अर्थ जानें बल्कि उनका सही और समृद्ध प्रयोग भी कर सकें। सही हिंदी में आज की कड़ी का शब्द ‘करकमल’ है।

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शब्द-व्युत्पत्ति

  • ‘करकमल’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है।
  • कर: हाथ
  • कमल: पद्म अर्थात कमल का फूल
  • दोनों के संयोग से बना ‘करकमल’ का शाब्दिक अर्थ हुआ- कमल के समान कोमल हाथ।

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अर्थ

‘करकमल’ का प्रयोग केवल भौतिक कोमलता के अर्थ में नहीं किया जाता, बल्कि यह सम्मान और आदर व्यक्त करने का भी माध्यम है। किसी महापुरुष, गुरु या पूजनीय व्यक्ति के हाथों के लिए इसे प्रयोग करते हुए यह दर्शाया जाता है कि उनके हाथ पवित्र, दयालु और सृजनशील हैं।

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उदाहरण

गुरुदेव के करकमलों से विद्यार्थियों को आशीर्वाद मिला।
यहां ‘करकमल’ शब्द केवल हाथ नहीं बल्कि ‘गुरु के आशीर्वादमय पवित्र हाथ’ का भाव व्यक्त करता है।

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व्याकरणिक पहचान

  • शब्द-रूप: करकमल (पुल्लिंग)
  • वचन: एकवचन/बहुवचन दोनों रूपों में प्रयुक्त
  • समास विग्रह: कमल के समान कर।
  • समास: कर्मधारय समास

साहित्यिक प्रयोग

‘करकमल’ शब्द का प्रयोग संस्कृत, प्राचीन हिंदी और आधुनिक काव्य सभी में मिलता है। संस्कृत साहित्य में कालिदास, भवभूति जैसे कवियों ने देवी-देवताओं या राजाओं के हाथों की सुंदरता का वर्णन करते हुए बार बार ‘करकमल’ शब्द का प्रयोग किया है।

हिंदी साहित्य में भक्ति और रीति काल के कवियों ने इसे भक्ति-भावना और श्रृंगार दोनों में अपनाया है। श्यामसुंदर के करकमल में बंसी शोभित। सीता ने करकमल जोड़ प्रभु से वर मांगा।

सांस्कृतिक महत्व

भारतीय परंपरा में हाथ को कर्म और आशीर्वाद का प्रतीक माना गया है। जब इन हाथों को ‘कमल’ के समान कहा जाता है, तो उसमें कोमलता (भावनात्मक संवेदनशीलता), पवित्रता (शुद्ध कर्म का प्रतीक) और सौंदर्य (शुभ और सौभाग्य का प्रतीक) तीनों का अद्भुत संगम होता है। इसी कारण ‘करकमल’ शब्द का प्रयोग हमेशा श्रद्धा और सम्मान के भाव से किया जाता है, कभी सामान्य संदर्भ में नहीं।

आज भी पत्र लेखन, धार्मिक भाषण, सम्मान समारोहों और औपचारिक लेखन में यह शब्द प्रचलित है। उदाहरण: आपके करकमलों से इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया जाए। यहां ‘करकमल’ शब्द औपचारिक और आदरसूचक भाषा का संकेत देता है।