भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) रायपुर के निदेशक प्रोफेसर राम कुमार काकनी ने जुलाई 2025 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन उनके इस्तीफे से एक महीने पहले ही उन्होंने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर संस्थान की प्रशासनिक स्वायत्तता और संचालन की पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंताएं जताई थीं। यह जानकारी द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त रिकॉर्ड से सामने आई है।
मतभेद और इस्तीफा
काकनी ने अपने त्यागपत्र में लिखा कि संस्थान में प्रचलित एचआर नीतियां और 2017 के आईआईएम अधिनियम की भावना के बीच असंगति उनके पेशेवर कार्यक्षेत्र को सीमित कर रही है। उन्होंने बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया।
काकनी, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाविद हैं, पिछले चार वर्षों में तीसरे आईआईएम निदेशक हैं जिन्होंने बोर्ड अध्यक्ष के साथ मतभेद के चलते पद छोड़ा है। इससे पहले आईआईएम कोलकाता की निदेशक अंजू सेठ (2021) और उत्तम कुमार सरकार (2023) ने भी इसी कारण इस्तीफा दिया था।
वर्तमान में काकनी आरवी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के वाइस चांसलर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने पहले आईआईएम कोझिकोड, एक्सएलआरआई जमशेदपुर और एलबीएसएनएए मसूरी में भी अध्यापन किया है।
नियुक्ति और विवाद की शुरुआत
राम कुमार काकनी को 2022 में आईआईएम रायपुर का निदेशक नियुक्त किया गया था, और उन्होंने 21 जुलाई 2025 को दो वर्ष पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
इस पूरे घटनाक्रम की जड़ एक फैकल्टी सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई से जुड़ी थी। अप्रैल 2024 में एक एसोसिएट प्रोफेसर को शैक्षणिक अनियमितता (academic impropriety) के आरोप में निलंबित किया गया था। इस निलंबन को लेकर फैकल्टी सदस्य ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उन्होंने अदालत से कहा कि वह 2023 में प्रोफेसर पदोन्नति के पात्र थे लेकिन एक पत्रिका में लेख के लेखक क्रम विवाद के चलते उन्हें प्रमोशन नहीं दिया गया।
अदालत का फैसला और टकराव
फैकल्टी सदस्य ने यह भी दावा किया कि निदेशक द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई करना आईआईएम अधिनियम, 2017 का उल्लंघन है, क्योंकि नियुक्ति और अनुशासन का अधिकार बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को है। जिसके बाद संस्थान की ओर से यह दलील दी गई कि संबंधित प्रोफेसर की नियुक्ति 2013 में हुई थी, जब निदेशक ही नियुक्ति और अनुशासनिक प्राधिकारी हुआ करते थे।
24 अप्रैल 2025 को हाई कोर्ट ने अनुशासनिक कार्रवाई और चार्जशीट को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि बोर्ड, न कि निदेशक, नियुक्ति प्राधिकारी है। अदालत ने यह भी कहा कि भविष्य में कोई भी कार्रवाई बोर्ड की स्वीकृति से ही की जा सकती है।
इसके बाद 28 अप्रैल को दूसरा निलंबन आदेश जारी किया गया, जिसे अदालत ने मई 2025 में फिर से रद्द कर दिया, और निर्देश दिया कि संस्थान अधिनियम के अनुसार उचित कदम उठा सकता है।
मंत्रालय को काकनी की चिट्ठी
13 जून 2025 को काकनी ने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि अदालत की व्याख्या के बाद बोर्ड चेयरमैन ने प्रशासनिक, वित्तीय और अनुशासनात्मक मामलों पर एकतरफा नियंत्रण स्थापित करना शुरू कर दिया है, जो आईआईएम अधिनियम, 2017 और इसके 2023 संशोधन के विपरीत है।
उन्होंने लिखा कि यह स्थिति केवल एक मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे आईआईएम प्रणाली की शासन संरचना को पुनर्परिभाषित कर सकती है। उनके अनुसार, चेयरमैन द्वारा ऐसे कार्य करना “निदेशक के वैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण” है।
दूसरा पत्र और इस्तीफा
12 जुलाई 2025 को काकनी ने मंत्रालय को दूसरा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने “संस्थान की प्रशासनिक स्वायत्तता और संचालन की अखंडता” को लेकर फिर से चिंता जताई। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने पहले पत्र के जवाब में माना था कि विवाद आईआईएम अधिनियम और पुराने एचआर नियमों के टकराव से उपजा है। उन्होंने यह भी लिखा कि फैकल्टी सदस्य के खिलाफ की गई कार्रवाई को नवंबर 2023 और दिसंबर 2024 में बोर्ड ने मंजूरी दी थी, लेकिन अदालत में यह तथ्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका।
आखिरकार, 21 जुलाई 2025 को काकनी ने इस्तीफा दे दिया। अपने पत्र में उन्होंने कहा कि “आईआईएम रायपुर में प्रचलित पुरानी एचआर नीतियों और आईआईएम अधिनियम, 2017 की भावना में असंगति” के कारण उनका पेशेवर कार्यक्षेत्र बाधित हुआ, जिससे संस्थागत शासन और शैक्षणिक उत्कृष्टता पर असर पड़ रहा था।
मौन प्रतिक्रिया
इस मामले में संपर्क किए जाने पर प्रो. काकनी ने टिप्पणी करने से इनकार किया। शिक्षा मंत्रालय और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के चेयरमैन पुनीत डालमिया ने भी द इंडियन एक्सप्रेस के ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया।
व्यापक संदर्भ
आईआईएम अधिनियम, 2017 को संस्थानों को अधिक स्वायत्तता और जवाबदेही देने के लिए लागू किया गया था। लेकिन हाल के वर्षों में निदेशकों और बोर्ड अध्यक्षों के बीच प्रशासनिक अधिकारों को लेकर मतभेद बढ़े हैं। काकनी का इस्तीफा इस बढ़ते टकराव की एक और कड़ी बन गया है।