देश में दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं में हर साल करीब 50 लाख विद्यार्थी विफल हो जाते हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इसे एक गंभीर चुनौती मानते हुए इन विद्यार्थियों को दोबारा मुख्यधारा से जोड़ने की पहल की है। इसके लिए राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह इन विद्यार्थियों तक पहुंचे और उन्हें पढ़ाई बीच में न छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करे।
शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, देशभर के सभी बोर्ड में दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में हर वर्ष दो से सवा दो करोड़ विद्यार्थी शामिल होते हैं। इनमें से करीब 50 लाख विद्यार्थी सफल नहीं हो पाते हैं। इसके बाद बड़ी संख्या में विद्यार्थी बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। बोर्ड परीक्षाओं में सफल नहीं होने वाले विद्यार्थियों को आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करने का काम अब एनआईओएस को सौंपा जा रहा है।
एनआईओएस यह काम अगली परीक्षा के बाद शुरू करेगा। आंकड़ों के अनुसार, देश में आठवीं तक सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 93 प्रतिशत है, जो दसवीं में घटकर 70 प्रतिशत और बारहवीं तक आते-आते 58 प्रतिशत रह जाता है। नौवीं से बारहवीं तक देश का कुल जीईआर 68 प्रतिशत है। मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि समग्र शिक्षा के तहत दी जाने वाली राशि को एनआईओएस की फीस से जोड़ने पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि बोर्ड परीक्षाओं में सफल नहीं होने वाले विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल सके। एनआईओएस इन विद्यार्थियों को पढ़ाई बीच में ही न छोड़ने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे देश का समग्र जीईआर बढ़ाया जा सके।
हर खंड में बनेगा एक एनआईओएस केंद्र
मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि स्कूली शिक्षा के अंतर्गत सकल नामांकन अनुपात बढ़ाने के उद्देश्य से देश के हर खंड में एनआईओएस का एक केंद्र खोलने पर विचार किया जा रहा है। ये केंद्र हर खंड में खोले जाने वाले पीएम श्री विद्यालयों में शुरू किए जाएंगे। यहां से उन विद्यार्थियों तक पहुंच बनाई जाएगी, जो किसी भी कारण से पढ़ाई छोड़ने की कगार पर हैं।
वित्तीय जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई छोड़ रहे छात्र
देश में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के मामलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों की संख्या अधिक है। सूत्रों के मुताबिक, इस संबंध में किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि वित्तीय जरूरतों की वजह से सबसे अधिक लड़के पढ़ाई बीच में छोड़ते हैं।
वहीं, लड़कियों की पढ़ाई कई बार घर के कामकाज में लगाने के लिए बीच में ही बंद करा दी जाती है। लड़कों पर घर की आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ होता है, जिसकी वजह से वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं।
