दिल्ली विश्वविद्यालय में इन दिनों शिक्षक संघ (डूटा) चुनाव की गहमा-गहमी तेज हो गई है। चुनावी बिसात बिछ चुकी है और मामला दिलचस्प होता जा रहा है। वहीं चुनावी प्रत्याशी खुद को दूसरों से बेहतर बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हर दो साल में होने वाले डूटा चुनाव में लगातार तीन बार से वामपंथी गुट डीटीएफ सत्ता में है। निवर्तमान डूटा अध्यक्ष डीटीएफ की नंदिता नारायण इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी क्योंकि वे दो बार (बीते चार सालों से) लगातार इस पद पर रह चुकी हैं। दूसरे शिक्षक संगठन इस बार बाजी पलटने की जुगत में हैं। वहीं वाम धड़ा चौथी बार जीत के लिए ताकत झोंक रहा है।
बता दें कि इस बार कांग्रेस के शिक्षक गुट इंटेक के डूटा अध्यक्ष पद पर चुनाव न लड़ने से मुकाबला मुख्य रूप से तीन शिक्षक गुटों वामपंथी, भाजपा और एएडी समर्थित यूटीएफ के बीच है। इस बार अध्यक्ष पद पर वामपंथी शिक्षक संगठन डीटीएफ से किरोड़ीमल कॉलेज के राजीब रे, भाजपा को समर्थन देने वाले डीयू के शिक्षक संगठन नेशनल डेमोके्रटिक टीचर्स फं्रट (एनडीटीएफ) से डॉ वीएस नेगी और एएडी व यूटीएफ के साझा उम्मीदवार के तौर पर एसएस राणा मैदान में डटे हैं। एनडीटीएफ के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार डॉ वीएस नेगी ने कहा कि छह साल में डूटा शिक्षकों के मसले सुलझाने में फेल रहा। डीटीएफ ने कैंपस को केवल ‘मोदी विरोध’ को समर्पित कर दिया। यह काम राजनीतिक पार्टी का है। शिक्षक संगठनों को शिक्षकों के हित की लडाई लड़नी है।
शिक्षक एनडीटीएफ को क्यों लाएं? इस सवाल पर नेगी ने कहा कि केंद्र में भाजपा की सरकार है। देश में हर जगह सुशासन और परिवर्तन की लहर है। एनडीटीएफ जीत के बाद सरकार से बेहतर तालमेल बैठा सकती है। उन्होंने कहा जीत के बाद हमारी प्राथमिकता तदर्थ शिक्षकों का स्थायी समायोजन है। उन्होंने दावा किया कि वर्क लोड कम करने का जो यूजीसी का संशोधन था उसे वापस कराने में एनडीटीएफ की ही भूमिका रही। वहीं डीटीएफ के उम्मीदवार राजीब रे नेगी के आरोपों को गलत ठहराते हैं। उन्होंने कहा कि हम सड़कों पर रहे। वर्क लोड कम करने के यूजीसी के संशोधन का वापस होना और चौथा संशोधन आना डीटीएफ की लड़ाई का नतीजा है। इसी वजह से आज 4000 तदर्थ शिक्षकों के समायोजन के लिए साक्षात्कार हो रहे हैं। डीटीएफ फिर जीता तो कौन से मुद्दे पहले और कैसे हल करेंगे। इस पर उन्होंने कहा कि हम किसी एक मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देंगे, बल्कि सबके प्रतिनिधि बनेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई ‘सभी को पेंशन’, ‘सभी का समायोजन’ और ‘सभी दावेदारों की प्रोन्नति’ की है। उन्होंने दावा किया कि वाम की ताकत है कि केंद्र डीयू में अन्य विश्वविद्यालयों की तरह मनमानी नहीं कर पा रहा है।
वहीं एएडी और यूटीएफ के साझा उम्मीदवार एसएस राणा ने अपनी जीत का भरोसा जताते हुए कहा कि कैंपस में वाम धड़े के काम को लेकर रोष है। इन्होंने किसी भी मुद्दे का हल नहीं निकाला। चाहे वेतन आयोग का मुद्दा हो, तदर्थ शिक्षकों का मसला हो या केंद्र की ओर से 30 फीसद अनुदान कम करने की नीति, सब मुद्दों पर केवल विरोध की रस्म अदायगी भर की गई। उन्होंने दावा किया कि इस बार डीटीएफ के खिलाफ एएडी और यूटीएफ एक साथ आए हैं, वे जीतेंगे और जीत के बाद तदर्थ शिक्षकों को स्थायी कराने की लड़ाई को प्राथमिकता देंगे। तीन बार डूटा उपाध्यक्ष और दो बार विद्वत परिषद के सदस्य रह चुके एसएस राणा ने कहा कि विश्वविद्यालय के कमोबेश सारे काम रुके पड़े हैं। फंड खर्च हुए और लौटाने पड़े। एसी की बैठक लंबे समय तक नहीं बुलाई जा सकी। इसका जिम्मेदार कौन है। राणा का मानना है कि इंटक का उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं होने का फायदा भी एएडी और यूटीएफ को मिल सकता है।

