दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में दाखिले के आखिरी दौर में फर्जीवाड़े के मामले सामने आ रहे हैं। बीते दिनों अरबिंदो कॉलेज में चार छात्रों के फर्जी दस्तावेज पकड़े जाने के बाद प्रशासन के कान खड़े हो गए। दाखिले से पहले कॉलेज के कर्मचारी जाति प्रमाणपत्र की सत्यता जांचने में असमर्थ हैं। खासकर ऐसे समय में जब विश्वविद्यालय आरक्षित कोटे की सीटों को भरने के लिए विशेष अभियान चला रहा है, फर्जी जाति प्रमाणपत्र से दाखिले के मामले बढ़ सकते हैं। अरबिंदो कॉलेज में फर्जी दस्तावेज पेश करने के आरोपी छात्र फरार हैं। हालाकि इस बाबत मालवीय नगर थाने में शिकायत दर्ज की गई है और जांच जारी है।

विश्वविद्यालय प्रशासन को भी फर्जीवाड़े की आशंका है। इसे लेकर डीयू ने विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। डिप्टी डीन छात्र कल्याण डॉ जीएस टुटेजा का कहना है कि एक-एक प्रमाणपत्रकी की जांच होनी है। उन्होंने छात्र अभिभावकों से किसी भी तरह के झांसे में न आने की अपील की है। उन्होंने साफ किया कि डीयू के कॉलेजों में किसी तरह का मैनेजमेंट कोटा नहीं है। अगर कोई इस आधार पर दाखिला दिलाने की बात कर रहा है तो सतर्क रहें और इसकी सूचना डीयू को दें।

जाति प्रमाणपत्र से होने वाले दाखिले में फर्जीवाड़ा रोकने में कॉलेज बेबस है। कॉलेजों में दाखिले की खिड़कियों पर बैठे अधिकारी पशोपेश में हैं कि वे जाति प्रमाणपत्र की जांच कैसे करें? बता दें कि ज्यादातर बोर्ड आॅनलाइन हैं। इसके अलावा राज्य व केंद्रीय बोर्डों की ओर से जारी 12वीं परीक्षा के नतीजे की सीडी डीयू के पास है, लेकिन जाति प्रमाणपत्र जारी होने का कोई डाटा उसके पास नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि तय समय में दाखिला लेने के निर्देश हैं, लिहाजा वे इतने कम समय में जाति प्रमाणपत्रों का सत्यापन कैसे कराएं?
पुलिस सूत्रों की मानें तो कॉलेज की टीम ने चार ऐसे विद्यार्थियों के मामले पकड़े जो फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर बीए हिंदी (आॅनर्स) में दाखिला लेने का प्रयास कर रहे थे। एक छात्र का ‘माइग्रेशन’ भी संदेहास्पद था। अंकपत्र का रोल नंबर भी फर्जी पाया गया। अंकपत्र पर ‘केबीपीएस इंटरमीडिएट कॉलेज फरीदपुर परवार सरिमसहा तिलई अमेठी (यूपी)’ लिखा है। जो संदेहास्पद है। माना जा रहा है कि इस मामले में दलाल सक्रिय हैं।

डीयू के ओबीसी-एससी-एसटी फोरम का कहना है कि कॉलेज जाति प्रमाणपत्र की जांच को लेकर ढिलाई बरत रहे हैं। फोरम के अध्यक्ष प्रो हंसराज सुमन ने कहा कि इसकी शिकायत प्रशासन से की गई है। कॉलेज एसोसिएशनों के हवाले से उन्होंने कहा कि छात्र दो दिन में ‘जाति प्रमाणपत्र’ कहां से और कैसे लेकर आ रहे हैं, जबकि जाति प्रमाणपत्र बनवाने में सात से 21 दिन का समय लगता है। उन्होंने दावा किया कि कई छात्रों ने जाति प्रमाणपत्र एक से दो दिन के भीतर लाकर दाखिला लिया। चूंकि दाखिले से पहले सत्यापन का समय नहीं है, लिहाजा कॉलेज मजबूर हैं। उन्होंने जाति प्रमाणपत्र का दाखिला पूर्व सत्यापन कराने के लिए और समय दिए जाने की मांग की, ताकि आरक्षित श्रेणी के जरूरतमंद छात्रों के साथ न्याय हो सके। कॉलेज के एक अन्य शिक्षक ने कहा कि पहले ऐसा नहीं था। जाति प्रमाणपत्र की जांच के लिए एक समय निर्धारित होता था।