चेन्नई के रहने वाले कौस्तव बाउरी (Kaustav Bauri) पहले दलित छात्र हैं, जिन्होंने NEET परीक्षा के टॉप-3 रैंक में जगह बनाई है। वह पिछले पांच सालों में टॉप-50 में आने वाले दो एससी कैंडिडेट्स में से एक हैं।

बहरहाल जैसा उनके पिता ने परेशानियों का सामना किया था, उससे अलग बाउरी की जाति की वजह से उनकी पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आई। दूसरी पीढ़ी के छात्र बाउरी ने विषय पर अपनी मजबूत नींव के लिए अपने पिता की शुरुआती शिक्षा को श्रेय दिया है। उनके पिता रंजीत आईआईटी मद्रास में प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने बेटे से इंजीनियरिंग डिग्री पाने में बाधाओं से निपटने के अपने अनुभव शेयर किये थे।

रंजीत ने कहा, “मैं एक छोटे कस्बे के गरीब परिवार में बड़ा हुआ हूं। मेरे माता-पिता दोनों अशिक्षित थे। मैंने अपनी पूरी पढ़ाई एक सरकारी स्कूल में की थी। मैंने इंजीनियरिंग डिग्री पाने के लिए कठिन परिश्रम किया था। मुझे याद है कि आईआईएससी बेंगलुरु से पीएचडी करने से पहल प्रतिष्ठित बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज (जिसे अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलॉजी – IIETS कहा जाता) में प्रवेश के लिए मैंने कितना संघर्ष का सामना किया था। मेरे बैकग्राउंड और जहां मैं अभी हूं, उसको देखते हुए यह प्रवेश और आईआईटी मद्रास में नौकरी मेरे लिए मान्युमेंटल हैं।”

बहरहाल कौस्तव बाउरी को ऐसे संघर्षों का सामना नहीं करना पड़ा। उनके पिता ने बताया, “वह शुरू से ही काफी तेज छात्रा था, मैं कक्षा दस तक उसको पढ़ाया करता था, जिसने उसके विषय में उसकी नींव मजबूत करने में मदद की। इसलिए दलित फैक्टर उसके एकेडमिक लाइफ में कभी नहीं आया।”

बाउरी ने अपनी सफलता के लिए अपने माता-पिता के लगातार और समर्पित सहयोग को वजह बताई। 720 में से 716 के स्कोर के साथ उन्होंने अपने माता-पिता के प्रति आभार जताया और उनकी कठिनाइयों और दृढ़ता को महत्व दिया।

कौस्तव ने कहा- मैं जहां हूं, मैं माता-पिता के कठिन परिश्रम की वजह से हूं

उन्होंने कहा, “बचपन में उनके पास उतने संसाधन और एक्सपोजर नहीं थे, जितने आज हैं। उन्होंने वित्तीय संकट झेले। उसके बावजूद इसके उन्होंने कठिन परिश्रम किया, और मैं जहां हूं, मैं उनके कठिन परिश्रम की वजह से हूं।” बाउरी की मां सुष्मिता लायक चेन्नई की एक आईटी फर्म में सीनियर एचआर प्रोफेशनल हैं। रंजीत बताते हैं कि लायक पश्चिम बंगाल के उसी कस्बे आसनसोल की हैं और थोड़ा ज्यादा एजूकेटेड बैकग्राउंड से आती हैं। उन्होंने कहा, “कक्षा 12 तक एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़े। हम एक-दूसरे को जानते थे।”