ध्रुपद के दरभंगा घराने के वरिष्ठ गायक व गुरु पं. अभय नारायण मल्लिक के 79वें जन्मदिन पर उनके शिष्यों ने एक ध्रुपद उत्सव हैबिटाट सेंटर के अमलतास सभागार में आयोजित किया। दरभंगा घराने की प्रमाणिक गायकी पर केंद्रित इस समारोह में उनके शिष्यों ने पहले अपनी स्वरांजलि अर्पित की और अंत में गुरु के साथ प्रस्तुति दी।
समारोह के पहले गायक उनके शिष्य सुमीत आनंद पांडे थे। सुमीत बिहार रत्न स्व. पं. राम प्रसाद पांडे के प्रपौत्र और स्व. पं. सियाराम तिवारी के नाती हैं। पिता से शुरुआती तालीम पाने के बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातकोत्तर उपाधि ली। संगीत नाटक अकादमी की ध्रुपद प्रशिक्षण योजना के अंतर्गत सुमीत को पं. अभय नारायण मल्लिक से सीखने के लिए दो वर्ष की सीनियर फेलोशिप भी मिली। विगत दस वर्षों से वे पंडितजी के शिष्यत्व में अभ्यासरत हैं। अपने नाना की स्मृति में स्थापित पं. सियाराम मेमोरियल संगीत ट्रस्ट के तहत वे ध्रुपद सभा भी आयोजित करते रहते हैं।
इस शाम अपने ध्रुपद गायन की शुरुआत उन्होंने राग भूप-कल्याण से की जिसे आम तौर पर शुद्ध-कल्याण कहा जाता है। आलापचारी सहित चौताल में प्रस्तुत ध्रुपद के बोल थे-‘चंद्र मुख नेत्र कमल नयन…’। उनके साथ सारंगी पर रऊफ मोहम्मद और पखावज पर शुभाशीष पाठक थे। सुमीत ने अपनी एकल प्रस्तुति में ही नहीं गुरु के साथ तानपुरे पर संगति करते हुए अंतिम प्रस्तुति में भी अपनी विधिवत तालीम का अच्छा परिचय दिया। पं. अभय नारायण मल्लिक के साथ अन्य शिष्य अजय कुमार पाठक थे जिन्होंने अपनी एकल प्रस्तुति में राग आभोगी में आलाप सहित धमार ‘मान न करिए’ पेश किया। उनके साथ पखावज पर देवाशीष पाठक थे और सारंगी पर रऊफ मोहम्मद।
इसके बाद पं. अभय नारायण मल्लिक के सुपुत्र और शिष्य संजय कुमार मल्लिक ने राग बिहाग में दरभंगा घराने की बानगी पेश की। उनकी आलाप में भी मानों वीर रस के ध्रुपद ‘राजा रामचंद्र चढ्यो हैं त्रिकूट पर…’ का असर था। संगीत कुमार पाठक की पखावज के साथ ध्रुपद में उन्होंने दुगुन, तिगुन, चौगुन आदि की लयकारी दिखाई।
समारोह को चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया स्वयं पं. अभय कुमार मल्लिक ने जिनके साथ संजय मल्लिक के अलावा अन्य शिष्यों में तानपुरे की जोड़ी पर सुमीत और अजय पाठक थे। पखावज पर संगीत कुमार पाठक और हारमोनियम पर मोहम्मद रऊफ थे। राग बिहाग को जारी रखते हुए उन्होंने औचारमयी आलाप के बाद धमार शुरू किया ‘आए कहां ते हो गोपाल, गाल लगाए गुलाल. अंजन अधर पीक पलकन पर’ और शिष्यों को समझाया कि बंदिश में खंडिता नायिका का वर्णन है, जो नायक के गालों पर गुलाल, होठों पर किसी और स्त्री की आंखों का अंजन और पलकों में उसके पान की पीक देख कर सवाल करती है ‘आए कहां ते गोपाल’? बंदिश को पेश करते समय रस-भाव का भी ध्यान रहना चाहिए समझाते हुए पंडित जी ने शिष्यों के साथ श्रोताओं से भी सुरीला संपर्क साधा।
अपने प्रभावी गायन का समापन उन्होंने राग मालकौंस में सूलताल की एक ध्रुपद बंदिश से किया।