कुश्ती-पहलवानी का नाम आते ही एक नाम आता है- गामा पहलवान। दिमाग में तस्वीर बनती है तगड़े-चौड़े मुस्टंडे की। चेहरे पर तेज और रौबीली मूंछे। भीमकाय डोले और तना हुआ सीना। इन्हें पहलवानों का ‘पापा’ कहा जाए, तो बिल्कुल गलत नहीं होगा। जनाब को पहलवानी के 50 सालों में जीवित रहते कोई मात न दे सका। मशहूर मार्शल आर्टिस्ट ब्रूस ली इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इन्हें अपनी प्रेरणा मान लिया था। गामा 22 मई 1878 को अमृतसर में जन्मे थे। उनका असली नाम गुलाम मोहम्मद बक्श था। अखाड़े में सब गामा पहलवान नाम से जानते थे। 52 सालों के करियर में कभी नहीं हारे, जो एक रिकॉर्ड है। दुनिया के टॉप कुंग फू फाइटर ब्रूस ली तक गामा से प्रेरित हुए थे।
1888 में एक बार जोधपुर में दंगल हुआ। गामा भी वहां अपना हिस्सा लेने पहुंचे। राजा ने जब इनकी पटखनियां देखीं, तो वह हैरान रह गए थे। गामा पहले के 15 पहलवानों में आए थे। बेहतरीन प्रदर्शन के लिए राजा ने ईनाम दिया था। दस साल की उम्र में गामा का यह कमाल आने वाले मजबूत कल की आहट था।
ऐसा ही किस्सा है उनकी ताकत से जुड़ा। 1902 में बड़ौदा (अब वडोदरा) में 1200 किलो वजनी पत्थर उठा लिया था। जब लोगों ने उन्हें देखा, तो वह अचंभित रह गए। पहले वे सोच में पड़ गए कि कैसे वह इसे उठा सकते हैं। लेकिन बाद में उन्हें यकीन हुआ कि वह महाबली गामा का करिश्मा था। आज भी वह पत्थर यहां के सायाजीबाग स्थित म्यूजियम में रखा है, जो गामा की ताकत का परिचय देता है।
गामा जब इतने भारी पत्थर उठाते थे, तो सोचिए वह कितनी जोरदार कसरत करते होंगे। वह एक दिन में पांच हजार दंड बैठक और तीन हजार पुश अप्स करते थे। खुराक में छह देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा देसी किलो घी और खास बादाम वाले टॉनिक का सेवन करते थे। उनकी ताकत के कायल देश के ही नहीं बल्कि विदेश के पहलवान भी थे। मार्शल आर्टिस्ट ब्रूस ली भी उन्हीं में से था। वह उनके कर्रे फैन थे। उनके ट्रेनिंग रुटीन के हिसाब से अपना रुटीन बनाए हुए थे। गामा के सिखाए दंड बैठक और योगासन जीवन भर अपनाते रहे।