आठवीं शताब्दी के लगभग उत्तराखंड में आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने केरल से पदयात्रा करते हुए बदरीनाथ में प्रस्थान किया था और बदरीनाथ में बद्रीनारायण भगवान की प्रतिमा की पुनर्स्थापना की। तब से बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ ,गंगोत्री, यमुनोत्री की यात्रा का शुभारंभ तेजी के साथ हुआ और जो आज तक चला आ रहा है। आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ मंदिर के बाद केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार किया और वहां पर महासमाधि ली और शिवत्व में विलीन हो गए।

जोशीमठ का धार्मिक महत्त्व है। यहां पर भगवान बदरीनाथ 6 महीने के लिए शीतकाल में प्रवास करते हैं और शीतकाल में कपाट बंद होने पर भगवान बद्रीनारायण की डोली पौराणिक मान्यताओं और स्थानीय परंपराओं के अनुसार से शीतकाल में जोशीमठ लाई जाती है।भगवान बद्री विशाल अपने दरबार के साथ 6 महीने तक यहीं पर प्रवास करते हैं और 6 महीने बाद जब ग्रीष्मकाल में वैदिक विधि विधान के साथ बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं तब जोशीमठ से धूमधाम के साथ बदरीनाथ की डोली बदरीनाथ धाम के लिए प्रवेश करती है और उसे शुभ मुहूर्त में बदरीनाथ धाम में स्थापित किया जाता है।

आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ की यात्रा शुरू करने से पहले बदरीनाथ यात्रा के अंतिम पड़ाव के रूप में जोशीमठ को चुना और और चार मठों में से उत्तर के मठ के रूप में ज्योतिष मठ को चुना और यहां पर ज्योतिष पीठ की स्थापना की और नरसिंह मंदिर स्थापित किया गया। बदरीनाथ की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री अंतिम पड़ाव के रूप में जोशीमठ मठ में ठहरते हैं और उसके बाद बदरीनाथ की यात्रा का आखिरी चरण शुरू होता है और जो बदरीनाथ मंदिर में समाप्त होता है।

जोशीमठ से ही सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह के पूर्व जन्म के तक स्थल हेमकुंड साहिब और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण फूलों की घाटी की ओर रास्ता जाता है। यहीं से चीन सीमा की ओर रास्ता जाता है। आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ को धार्मिक मान्यताओं के साथ सामरिक महत्त्व को देखते हुए ही बदरीनाथ की यात्रा को अंतिम पड़ाव के रूप में चुना था परंतु जोशीमठ आधुनिक विकास का शिकार हो गया है। यहां बड़ी-बड़ी अट्टालिका तथा आधुनिक सुविधाओं से युक्त बड़े-बड़े होटल तथा व्यावसायिक संस्थानों ने जोशीमठ के धार्मिक स्वरूप को तो नष्ट कर दिया। यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को क्षति पहुंचाई और इस शहर को समाप्ति के कगार पर लाकर खड़ा किया है।

आठवीं शताब्दी के बाद जब जगद्गुरु शंकराचार्य जोशीमठ से बदरीनाथ की आगे की यात्रा शुरू की थी तब से अब पहली बार 2023 में शुरू होने वाली बदरीनाथ यात्रा को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या बदरीनाथ का अंतिम पड़ाव जोशीमठ अब भविष्य में इस यात्रा का अंतिम पड़ाव नहीं रहेगा…? यह सवाल हर किसी के जुबान पर है। क्योंकि जोशीमठ से बदरीनाथ को जाने वाले सड़क मार्ग पर कई जगह दरारें देखने को मिल रही हैं जिसने स्थानीय प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं क्योंकि अप्रैल के आखिरी हफ्ते में बदरीनाथ यात्रा शुरू हो रही है।

यदि इसी तरह जोशीमठ राष्ट्रीय राजमार्ग पर दरार पड़ती रही तो बदरीनाथ यात्रा बाधित होने की संभावना नजर आती है। पिछले साल बद्रीनाथ में अब तक के सबसे ज्यादा तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए आए थे और जोशीमठ के बाजार तीर्थ यात्रियों की भीड़ से गुलजार रहते थे अब वह रौनक जोशीमठ में नहीं दिखाई देगी क्योंकि जोशीमठ भय और विनाश का प्रतीक बनता जा रहा है।

रुड़की आइआइटी के सिविल विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डा सत्येंद्र कुमार मित्तल का कहना है कि जोशीमठ के अस्तित्व को बचाना बहुत जोखिम भरा है। इसके जिस क्षेत्र में दरारें पड़ चुकी हैं वहां पर शहर के अस्तित्व को फिर से नहीं खड़ा किया जा सकता है। चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना का कहना है कि जोशीमठ बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग में जो नई दरारें देखने में आई हैं उसकी रिपोर्ट शासन और सरकार को भेज दी गई है।इसके साथ ही यहां पर काम करने वाली विभिन्न एजंसियों को भी इस बारे में जानकारी दी गई है जो भूगर्भ अध्ययन के बाद अपनी सलाह देंगी उसी के अनुसार कार्य किया जाएगा।