मूल भारत अस्तित्व में कब आया, इसका शायद कोई एक उत्तर नहीं है। लेकिन विभाजन के पश्चात् भारत की वर्तमान भौगोलिक रेखा का निर्धारण 15 अगस्त 1947 को रात 12 बजे हुआ था। यदि इसी तारीख को वर्तमान भारत के जन्म की तारीख़ मान ली जाए तो इस लिहाज़ से भारत की राशि कर्क और लग्न वृष है। लग्न के राहु और सप्तम के केतु के मध्य समस्त ग्रहों की उपस्थिति भारत को ‘अनन्त’ नामक काल सर्प योग से ग्रसित करती है। इससे उसे संघर्ष, बेचैनी, अलगाव, अभाव, अस्थिरता और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं स्वत: ही उस पर लागू हो जाती है। यह ‘अनन्त’ कालसर्प किसी चमत्कारिक बदलाव की पटकथा भी तैयार करता है।
इस वक़्त भारत पराक्रमेश चंद्रमा की महादशा के अधीन है। जो ग्रह ढाई घड़ी में अपना घर बदल देता हो, पराक्रमेश के पद पर बैठ कर कोई बड़ा पराक्रम दिखा पायेगा, इसपर संदेह है। हालांकि कभी कभी अचानक ही भारत को लाइम लाइट में लाकर उसे अप्रासंगिक होने से बचाता रहेगा। 11 जुलाई 2016 से प्रारम्भ व्ययेश और सप्तमेश मंगल की अंतर्दशा जहाँ अंतर्राष्ट्रीय समाज में भारत को मज़बूत बना कर उसके शत्रुओं की पेशानी पर चिन्ता की लकीरें उकेरेगी। यह दशा विश्व पटल पर भारत को नये मित्र प्रदान करेगी। लेकिन देश के अन्दर अजीब सी आर्थिक बेचैनी का बीजारोपण भी करेगी।
11 फरवरी 2017 को धन और मन के स्वामी चंद्रमा की महादशा में शत्रु राहु की अंतर्दशा आरम्भ होगी। इसके बाद प्रजा असहज आर्थिक संताप के कारण छटपटा उठेगी। आर्थिक सुधारों से अनभिज्ञ, अमीर और ग़रीब एक स्वर में त्राहिमाम करेंगे और राजा को कोसेंगे। जनता ही नहीं, व्यापारियों का भी कचूमर निकल जायेगा। तब तक बचे खुचे बिल्डर या तो बेहाल हो चुके होंगे, या ज़मींदोज़। लोग आर्थिक बेहाली और सरकारी चाबुक से कराह भी न सकेंगे। सुधार की ये औषधि आसानी से हज़म नहीं होगी, पर कोई चारा भी न होगा। इस बार की दवा लोगों को चैन नहीं, दर्द देगी। 2017 में शनि का गृह परिवर्तन फ़ौरी तौर पर कुछ राहत की ख़बर ज़रूर लेकर आयेगा, जो जनता से ज़्यादा व्यापारियों और बिल्डरों को राहत पहुँचाने वाली लगती है। लेकिन जिनका दम ही निकल जायेगा, उसे बदलते ग्रह योग की संजीवनी कैसे जीवन दान दे सकेगी, ये देखने की बात होगी। आने वाले वक़्त में नये समृद्ध लोगों की जमात तैयार होगी। राजनीति अब तक के निचले पायदान पर नज़र आयेगी।