कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर सालों से कथक नृत्य कर रही हैं। उन्होंने लखनऊ घराने के गुरु जयकिशन महाराज और जयपुर घराने की विदुषी अदिति मंगलदास से नृत्य सीखा। उनके अंग-प्रत्यंग में नृत्य बखूबी समाया है। कथक नृत्यांगना अदिति मंगलदास के ग्रुप के साथ उन्होंने लंबा समय गुजारा, जिससे उनके नृत्य में सुघड़ता की एक अच्छी चमक पैदा हुई। यही खूबी अब उनसे सीख रही युवा नृत्यांगनाओं के नृत्य में नजर आ रही हैं। यह एक कलाकार और गुरु के लिए बहुत बड़ी उपलब्धी मानी जा सकती है।

पिछले रविवार को आजाद भवन के सभागार में नृत्य समारोह उत्सव-2016 आयोजित था। इस समारोह में गौरी दिवाकर की शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। इनकी नृत्य रचना युवा नृत्यांगना अनुकृति विश्वकर्मा ने की थी। इस प्रस्तुति में शरद, वर्षा और बसंत ऋतुओं की छटाओं को नृत्य में पेश किया गया। पहली पेशकश शरद ऋतु थी। यह शशिप्रभा और प्रीति हजेला की कविताओं पर आधारित थी। रचना-‘चांदनी से भरा चांद, धरा को संवारता चांद’ में हस्तकों से शिष्याओं ने चांद के कई रूपों को दर्शाया। वहीं, कुछ टुकड़े, गिनती की तिहाई, और उठान को प्रस्तुत किया गया। अगली रचना ‘आज शरद ऋतु आई है’ में शिष्याओं ने प्रकृति के सौंदर्य को नृत्य में दर्शाया। इसके अलावा, उठान, तिहाइयों, आरोह-अवरोह और चलन को मोहक अंदाज में पेश किया गया। इसकी संगीत परिकल्पना गायक समीउल्लाह खां ने की थी।

दूसरी प्रस्तुति परंपरागत बंदिश पर आधारित थी। इसमें वर्षा ऋतु और नायिका के सौंदर्य का वर्णन था। यह रचना ‘बदरा घिर आई चहुं दिसी’ और ‘घन घटा छाई’ में निबद्ध थी। नृत्य में आमद, परण, लयकारी, चक्रदार तिहाई, झूले की गत और तोड़े का प्रयोग शिष्याओं ने किया। प्रस्तुति में सभी शिष्याओं का आपसी तालमेल और संतुलन सुंदर था। श्रेया, अल्वी, लावण्या, श्रुति, जपनूर, त्रिशा, तिविशा, रैमा, दीया, काश्वी, आन्या, नव्या, अर्जा व अहलिया ने बेहतर तालमेल दिखाया।

अगली प्रस्तुति में कथक नृत्यांगना गौरी दिवाकर की शिष्याओं बानी, सौम्या, स्वागता, गयना, किशिका, आशिमा, बृजेश, अनुपमा और अनन्या ने शिरकत कीं। महाकवि कालिदास की रचना ऋतुसंहार के अंश को जयकिशन महाराज ने चयनित किया था। इस प्रस्तुति में शिष्याआें ने रचना ‘सरस सुगंध नई नवेली’, और ‘ऋतु बसंत को संदेश’ पर भाव दर्शाया। उन्होंने परण, टुकड़े, परमेलू और तिहाइयों को नृत्य में पिरोया। रचना ‘ता-किट-धा-न-धा’, ‘ता-किट-धा’ और ‘धिंन-धिंन-ना’ पर सुंदर तालमेल नजर आया। इसमें लड़़ी में पैरों के साथ लयात्मकता मोहक था। नृत्य में सोलह, तेईस और अड़तालीस चक्करों का प्रयोग संतुलित था। शिष्याओं ने राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ को दर्शाने के क्रम में, बांसुरी व कलाई की गत और सादी गतों का प्रयोग किया।

समारोह के अंत में कथक नृत्यांगना अनुकृति ने एकल नृत्य पेश किया। सरगम और बंदिश ‘अब काहे मारत बोल, सखी री’ पर अनुकृति विश्वकर्मा ने भाव को दर्शाया। अपने एकल नृत्य में अनुकृति मुख के भावों के साथ अांगिक चेष्टाओं को सुघड़ता से निभाया। उन्होंने नृत्य राधा-कृष्ण के छेड़छाड़ को चित्रित किया। उन्होंने कलाई की गत और कसक-मसक का अंदाज पेश किया। उन्होंने तिहाइयों और तेईस चक्कर से अपने नृत्य को सजाया। इस प्रस्तुति के संगत कलाकारों में शामिल थे-तबले पर राहुल विश्वकर्मा, पखावज पर आशीष गंगानी, सितार पर उमाशंकर, पढंत पर गौरी दिवाकर और गायन पर समीउल्लाह खां। मीता यादव ने प्रकाश प्रभाव की जिम्मेदारी को निभाया।