हाल में हुए ‘सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी’ (सीएमआइई) के ताजा सर्वेक्षण में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता मांग तेजी से बढ़ी है। यहां टीवी, फ्रिज, कूलर, पंखा, एसी आदि की मांग 2019 के कोरोना काल के बाद 25.82 फीसद बढ़ी है। अप्रैल 2020 में सिर्फ 2.03 फीसद ग्रामीण उपभोक्ता मान रहे थे कि टीवी, फ्रिज, कूलर, एसी, पंखे, ट्रैक्टर, दुपहिया वाहन आदि खरीदने का उनके लिए यह सबसे अच्छा समय है, लेकिन अब 27.85 फीसद ग्रामीण उपभोक्ता मानते हैं कि वर्तमान समय इसके लिए सबसे बेहतर है। लोकसभा चुनाव के दौर में धन के प्रवाह को भी इसकी एक वजह माना जा रहा है। इसी वर्ष जनवरी में ग्रामीण उपभोक्ता मांग का सूचकांक कम हो गया था, मगर चुनाव की घोषणा के बाद मार्च में तेजी आने लगी। रपट में यह भी कहा गया है कि ग्रामीण उपभोक्ता मानते हैं कि अगले पांच साल उनकी वित्तीय स्थिति और अच्छी बनी रहेगी।

वाहन उद्योग में भी ग्रामीण उपभोक्ता मांग में तेजी आई है

अप्रैल 2019 में 29.74 फीसद ग्रामीण मानते थे कि आर्थिक हालात बेहतर हैं, लेकिन मई 2021 में ऐसा मानने वाले सिर्फ 2.93 फीसद रह गए थे। चुनाव की तिथियां घोषित होने के बाद मार्च 2024 में बढ़कर यह संख्या 31.60 फीसद हो गई है। वाहन उद्योग में भी ग्रामीण उपभोक्ता मांग में तेजी आई है। कुछ दिनों पहले आरबीआइ के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बताया था कि वित्तवर्ष 2020-23 की दूसरी तिमाही में दुपहिया वाहनों की 30.3 फीसद और ट्रैक्टर की बिक्री 16.1 फीसद बढ़ी है। ग्रामीण वित्त विशेषज्ञों का मानना है अगले पांच वर्षों में ग्रामीण उपभोक्ता मांग में और तेजी आने की संभावना है।

ग्रामीण उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी के लिए आय है वजह

ग्रामीण उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी के कई कारक हैं, जिनमें ग्रामीण आय में वृद्धि प्रमुख है। विगत कुछ वर्षों में ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार हुआ है। सरकारों ने इसके लिए बहुत से प्रयास किए हैं। इनमें गरीबी और असमानता को कम करने, सामाजिक सुरक्षा, आय सृजन और आजीविका के विकल्प प्रदान करने और देश में आबादी के कमजोर वर्गों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने हेतु किए जाने वाले उपाय शामिल हैं। इसके लिए कई लक्षित कार्यक्रम शुरू किए गए, जिनमें प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा, दीनदयाल अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड-अप इंडिया योजना, अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर वर्गों के लिए अंब्रेला कार्यक्रम, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, पीएम-किसान के तहत फंड ट्रांसफर, पीएम फसल बीमा योजना का दावा भुगतान, उर्वरक सब्सिडी, डेयरी सहकारी समितियों और कृषि-बुनियादी ढांचे के लिए ब्याज छूट, फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए फंड उपलब्ध कराना आदि प्रमुख हैं।

ग्रामीण उपभोक्ता आय में वृद्धि की दृष्टि से डीबीटी योजना सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसमें जिन योजनाओं के अंतर्गत नकद भुगतान की व्यवस्था है, उनमें धन को सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में हस्तांतरित कर दिया जाता है। फिलहाल इस व्यवस्था में सरकार के 53 मंत्रालयों की 310 योजनाएं शामिल हैं, जिनमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, पीएम किसान, स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण, अटल पेंशन योजना, राष्ट्रीय आयुष मिशन आदि के अंतर्गत दिए जाने वाले लाभ शामिल हैं।

इन योजनाओं से जुड़ी समस्याएं भी कम नहीं हैं। इनमें नामांकन केंद्रों का दूर-दूर होना, नामांकन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों या संचालकों का नियमित उपस्थित न होना, योजनाओं के बारे में जन साधारण को जानकारी न होना आदि शामिल हैं। अभी भी देश के कई ग्रामीण और आदिवासी दूरस्थ क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा और सड़क संपर्क नहीं है, लोगों में वित्तीय साक्षरता की भी कमी है। लाभार्थियों के नाम में वर्तनी की त्रुटियां, लंबित केवाईसी, बंद या निष्क्रिय बैंक खाते, आधार और बैंक खाते के विवरण में असमानता आदि के कारण डीबीटी में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। यद्यपि डीबीटी से सीधे लाभार्थी के खाते में पूरी धन राशि पहुंच जाती है, लेकिन खाते में डालने से पहले अपना कमीशन आदि नकद में ले लेना, कागजी कार्रवाई के दौरान ही कमीशन आदि के रूप में धन वसूल लेने जैसी जमीनी स्तर की समस्याएं बनी रहती हैं।

अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं का एक बड़ा वर्ग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ग्रामीण या शहरी परिवार को आवश्यक न्यूनतम राशि निर्धारित करने के लिए सर्वेक्षण करता और उसके आधार पर जनसंख्या को गरीबी रेखा से ऊपर और गरीबी रेखा से नीचे वर्गीकृत करता है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012 से 2020 के मध्य लगभग 7.6 करोड़ लोग गरीबी रेखा के अंदर आए। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की संख्या लगभग पांच करोड़ है। बड़ी संख्या में गरीबी की रेखा के नीचे रहने के कारणों में वर्ष 2017 से 2020 के मध्य भारतीय अर्थव्यवस्था में आई मंदी की स्थिति, वर्ष 2017-18 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार इस अवधि में गत 45 वर्षों में बेरोजगारी के उच्चतम स्तर, वास्तविक मजदूरी में कमी, कोविड महामारी जैसे कारण बताए जाते हैं।

अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग नब्बे फीसद लोगों की आजीविका का माध्यम खेती है। मछली पालन, पशु पालन, हस्तशिल्प उत्पादों का निर्माण जैसी कुछ गैर-कृषि गतिविधियों से जुड़ी सामान्य आजीविकाएं हैं, लेकिन ये सभी मौसमी हैं, जिनमें आय की अनियमितता बनी रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक वैकल्पिक रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। ये सभी कारक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता मांग को प्रभावित करते हैं।
भारत दुनिया की सबसे अधिक ग्रामीण जनसंख्या वाला देश है। इसमें 87.8 करोड़ ग्रामीण निवासी हैं जो किसी न किसी रूप में उपभोक्ता हैं। तेज शहरीकरण के बावजूद वर्ष 2040 तक देश की आधे से अधिक जनसंख्या का निवास गांवों में ही होगा। इस दृष्टि से ग्रामीण उपभोक्ता मांग बढ़ाना देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इससे उत्पादन में वृद्धि होगी, उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी। ये सब देश की जीडीपी बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करने और देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने में सहायक होंगे।

उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी के लिए जरूरी है कि ग्रामीण उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकाधिक ग्रामीण बैंकों, सहकारी समितियों और स्कूलों की स्थापना सहित सामाजिक आर्थिक बुनियादी ढांचे का विकास करना जरूरी है। साथ ही, पेयजल, बिजली, ग्रामीण सड़कें और स्वास्थ्य देखभाल जैसी सामुदायिक सेवाओं और सुविधाओं में सुधार तथा विस्तार भी जरूरी है। कृषि आय बढ़ाने, अधिकाधिक वैकल्पिक रोजगार अवसर उपलब्ध कराने, ग्रामीण हस्तशिल्प उत्पादों को प्रोत्साहित करने और उनके सुदृढ़ विपणन की व्यवस्था करने जैसे कुछ प्रभावी उपाय जरूरी हैं, तभी ग्रामीण आय और उपभोक्ता मांग में और बढ़ोतरी हो सकेगी।