मैकलोडगंज की गलियों में घूमते हुए एक साधारण-सी दिखने वाली महिला पर नजर ठहरी, एक मित्र ने बताया कि वे आमा आद्धे हैं। झुका हुआ कंधा, पीठ पर कूबड़ निकला हुआ, सरकते हुए पैर में क्षीणता। वे शायद कुछ सुन और समझ पाने में बहुत कमजोर हो गई थीं। उनसे बात करने की इच्छा जताने के बावजूद हम उन्हें यह अहसास करा पाने में असमर्थ रहे। जबकि हम सब बाजार में स्थित एक दवाखाने में थे, जहां दो और लोग मौजूद थे। उन्हें मैंने इस तरह दो-तीन बार देखा होगा। यह साफ लगा कि यह आम शारीरिक दुर्बलता या मात्र बढ़ती उम्र का असर नहीं है। आमा आद्धे एक ऐसी तिब्बती महिला हैं जो वर्षों से चीन और तिब्बत के बीच चली आ रही ‘जंग’ को जी चुकी हैं! वे करीब बीस साल नजरबंद और जेल में रहीं। यह कहना कि उन्होंने काफी तकलीफें झेलीं, शायद उनके अनुभव को बेहद सीमित और नजरअंदाज करना होगा। मैंने इसीलिए कहा कि वे ‘जंग’ को जी चुकी हैं। इस पूरे अनुभव का असर उनकी काया और इंद्रियों पर भी दिखता है। उसी क्षण यह अहसास हुआ कि हमारी देह भौतिक संरचना मात्र नहीं है। समाज के सत्ता विमर्श में देह का भी अपना एक विमर्श होना चाहिए। इस विश्लेषण में हमें ऐतिहासिक और सामाजिक प्रारूप देखने को मिलता है।
ऐतिहासिकता से मेरा अभिप्राय न सिर्फ अनुवांशिकी विषयों से है, बल्कि मनुष्य और व्यक्ति विशेष के जीवन काल से भी है। देह काफी हद तक व्यक्ति के जीवन काल में रहे संघर्ष, सुविधाओं, सामाजिक परिसीमाओं की प्रतिबिंब होती है। अक्सर पुरुषों और स्त्रियों के अंतर को स्थापित करने के लिए तर्क दिया जाता है कि स्त्रियां दैहिक तौर पर कमजोर होती हैं। इसे प्रकृति के नियम के रूप में स्वीकृति और प्रमाण के तौर पर मान्यता दी जाती है। रोजल्दो और लाम्फेर (1974) इसका ऐतिहासिक विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि इसे कालावधि के संदर्भ में रख कर समझना जरूरी है।
डॉर्विन ने ‘सर्वश्रेष्ठ की उत्तरजीविता’ का सिद्धांत दिया, जिसे आमतौर पर ‘सर्वाइवल आॅफ द फिटेस्ट’ कहा जाता है। आदि मानव के रहन-सहन को देखा जाए तो उन स्त्रियों के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती थी जो अपना और अपने बच्चों का निर्वाह न्यूनतम उपलब्ध संसाधनों में कर पाने में समर्थ थीं। इसके उलट उन पुरुषों के जीने की संभावना बढ़ जाती थी जो शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट और मजबूत होते थे। वे अपने परिवार की रक्षा और खानपान के लिए व्यवस्था कर पाने में ज्यादा समर्थ हो पाते थे। आगे चल कर ये खूबसूरती और स्वीकृति के आयाम बनते चले गए।
बहुत-सी जगहों और परिवारों में स्त्रियों को पतली, दुबली और क्षीण रखने की पुरजोर कोशिश की जाती है, जिसे आकर्षण का पैमाना माना जाता है। आकर्षक बनाए रखने के लिए देह को क्षति तक पहुंचाने के परंपरागत तरीके रहे हैं। चीनी सभ्यता में पांव को जकड़ कर बांधने की प्रथा हो, यूरोपीय महिलाओं के पहनावे का अभिन्न अंग रहे कॉर्सेट या फिर भारतीय संस्कृति में कुछ जेवर का प्रयोग। ये सभी देह को एक रूप और आकृति देते हैं और उस पर कुछ परिसीमाएं अलंकृत कर देते हैं। मसलन, ‘चूड़ी बाजार में लड़की’ किताब में कृष्ण कुमार कहते हैं कि चूड़ी कलाई को नाजुक बनाती है। चूड़ी को नुकसान पहुंचाए बिना बहुत से काम करना कठिन है, जैसे- दीवार पर चढ़ना, हाथ पटकना आदि। धीरे-धीरे इस नजाकत का अंत:करण होता चला जाता है। इसे सशक्त करने के लिए बहुत से प्रसिद्ध जुमले और मान्यताएं मददगार रहती हैं। इंसान के अपने जीवन में रहे संघर्ष, चुनाव, स्थितियों के प्रारूप भी देह में काफी हद तक देखे जा सकते हैं। अम्मा आद्धे के संघर्ष और यातनापूर्ण जीवन को उनकी इंद्रियों की अत्यधिक क्षीणता, कद-काठी और अंगों के इस्तमाल में देखा जा सकता है।
किसी दिन कोशिश करें कि सामने एक व्यक्ति को देख कर कोई अनुमान या मत नहीं बनाएंगे। यह उतना ही कठिन होगा जितना कि कोई बंद कोठरी में समय और वक्त की चेतना को बनाए रखे। क्षण भर के अवलोकन से हम किसी के व्यक्तित्व का बहुत हद तक विश्लेषण कर चुके होते हैं, चाहे वह व्यक्ति कुछ बोले भी नहीं। इसमें सिर्फ देह की भूमिका नहीं होती, बल्कि बहुत से और कारक, जैसे कि पहनावा, बोलचाल का तरीका, व्यवहार में विचित्रता आदि। लेकिन देह का महत्त्वपूर्ण स्थान रहता है। हम व्यक्ति को देखने भर से अनुमान लगाने लगते हैं कि वह किस उम्र, स्थान, परिवार से होगा और कितना शिक्षित होगा। कुछ हद तक हम उसके व्यक्तित्व यानी उसके दब्बू या चालाक होने का भी अनुमान लगा पाते हैं।
आजकल देह को लेकर इतनी जागरूकता है कि इस घर कर लेने वाली मनोस्थिति से खुद को बचाना भी बेहद मुश्किल, और कई बार असंभव-सा होता जा रहा है। फिर चाहे वह रंग हो, आकृति या वजन। जिस तरह अक्सर संस्थानों में अपना रोब बनाए रखने और दमन करने के लिए गुणवत्ता की आड़ में दूसरे के ज्ञान को सीमित साबित करने की राजनीति चलती रहती है, उसी प्रकार तंदुरुस्ती की आड़ में शरीर के जरिए व्यक्तित्व के दमन की भी पुरजोर राजनीति होती है।