जिस शहर में मैं रहता हूं, वहां आजकल बाकी लोगों की बात तो दूर, कुछ माफियाओं ने भी नए साल की शुभकामना वाले होर्डिंग लगा रखे थे। क्या उन शुभकामनाओं में एक भी वैसी थी, जैसी आप चाहते थे? मेरी अधिकतम जानकारी के अनुसार नीचे लिखीं शुभकामनाएं अब तक किसी ने भी किसी को नहीं दीं। अगर दी जातीं तो देने और पाने वाले के लिए भी अच्छा होता। आप किसान हैं तो इस साल झोंपड़ी झुका कर राजद्वार ऊंचे करने वाले ग्रामदेवता की आराधना आपको खूब रास आए और सारे देश को खिला कर खुद भूखे रह जाने के अभिशाप से मुक्ति की आपकी साधना सफल हो जाए। कोई कितना भी सरकाए, मगर आपके पैरों के नीचे से नहीं सरके आपकी जमीन। किसी के भी सामने आप दीन या हीन नहीं दिखें। आत्महत्याएं आपके क्या, आपके सहवासी गुबरैलों और ततैयों के भी निकट आने से घबराए। मजदूर हैं तो भी मजबूर नहीं रह जाएं। कोई सरकारी पैकेज पाएं या न पाएं, अपनी बेड़ियों पर विजय पा जाएं। आपका मेहनताना किसी की मर्जी न रहे, आपका हक बन जाए और उसे मारने की किसी की मजाल न हो। गरीब हैं तो सरकार पूरे साल में एक बार भी आपको रियायतों और सबसिडी का मोहताज न बताए।

अमीर हैं तो आप सोच सकते हैं कि बराबरी की प्रतिष्ठा के संवैधानिक संकल्प को बहुत दूर छोड़ आए इस महादेश में अब सब कुछ आपके ही नाम है। इसलिए न आपको किसी की शुभकामनाओं की जरूरत है और न ही कोई झाम है। फिर भी, इस साल आप करों में छूट, रियायतें और सबसिडी चाहे पहले से भी ज्यादा ले जाएं, भले ही गरीबों की योजनाओं, दवाओं और राशन कार्ड की लूट में शामिल होना पड़े। नेता हैं तो, खुदा करे बेहिस भाषणों का आपका व्यापार जल्दी डूब जाए और आप फौरन से पेश्तर नए विचारों का कारोबार शुरू कर पाएं। प्रदूषण पर चिंतित हों तो दूषित चेतनाओं और विचारों से हो रहे नुकसान सोच कर भी आपके माथे पर पसीना आए। सिर से पांव तक उसमें नहा कर ही सही, इस साल आपको इतनी सद्बुद्धि आए कि ऐसी चेतनाओं का लाभ लेकर जीतने के बजाय चुनाव हार जाना कबूल कर पाएं।

जवान हैं तो देश का अभिमान बदस्तूर बचाए रख पाएं और बदले में भरपूर मान-सम्मान पाएं। वैज्ञानिक हैं तो मंगल मिशन की कामयाबी के गुरूर से बचे रहें, ‘सारे जहां से अच्छे’ इस देश की धरती को आगे भी सारे इंसानों के रहने लायक बनाए रखने में लगें और सुख पाएं। नायक या महानायक हैं तो आयकर विभाग का नोटिस पाकर भी कोई बीमारी आपके पास न आए। आम आदमी हैं तो तूफान और सुनामियां चाहे सब कुछ छीन ले जाएं, मगर आपकी आशा की कलाई न मरोड़ पाएं। जो भी हो, आप रंग-रूप, भाषा या वेश से और कितने भी विपन्न हों, मगर सहज मानवीय गरिमा व आत्मसम्मान से संपन्न रहें। छोटा या बड़ा कोई भी त्योहार आपको मुंह नहीं चिढ़ाए, बाजार को आपके घर में न घुसाए। न महंगाई गर्दन मरोड़े, न आपकी कमर को झुकाए। फेसबुकियों में हैं तो इतने सोशल हो जाएं कि आभासी मित्रों में उलझे रहने के बजाय वास्तविक दोस्तों का हालचाल जानने का भी समय निकाल पाएं।

हां, सवाल खड़े करने वालों में हैं, तो कोई बुराई नहीं। इस साल आपके सवाल और बड़े हो जाएं। भले ही एक दिन यह साल भी पुराना पड़ जाए। लेकिन जब और जिसकी भी चाहें, उसकी आंख में चढ़ें और जिसकी चाहें, उसकी आंख में गड़ जाएं। नौ दिन खत्म होते-होते लौकी और सौ दिन खत्म होते होते तितलौकी बन जाए। सवालों और बवालों या समस्याओं के समाधान की उम्मीद से भरे हैं तो आपकी उम्मीदों को नए पंख लगने से कोई भी न रोक पाए। कोई किसी को भी नाउम्मीदियों के कोहरे में गुम न कर पाए।

कुछ भी नहीं हैं और कहीं भी, किसी आधारकार्ड में आपका नाम-पता दर्ज नहीं है तो मायूस न हों। देखें और देख कर खुश हों कि किस-किसका हाल खराब होता जा रहा है, किसकी खाल उधड़ती जा रही है और चाल बिगड़ती जा रही है। कौन है जो हमें हर हाल में गरीब बनाए रखने और कौन हैं जो हर हाल में अमीरी के पायजामे में पांव डालने पर तुले हैं। हां, यह साल आपको वह सब दिखाए, जो आपने अब तक नहीं देखा। भले ही इस चक्कर में न आपकी खुशियों की कोई सीमा रह जाए और न, माफ कीजिएगा, दुखों का कोई लेखा। पूरे साल आप मौसमी बीमारियों की छूत से बचे रह पाएं। लेकिन प्यार का मौसम आए तो उसकी छूत आपको सबसे पहले लग जाए। और हां, एक दिन अखबार में यह खबर भी आए कि कंबल बांटने चले नेताजी अपनी करुणा के प्रदर्शन के लिए एक भी कांपता हुआ आदमी नहीं ढूंढ़ पाएं!