इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने पूरी दुनिया में कई घातक मिशन को अंजाम दिया है। अधिकतर मिशन में खास बात यह रही है कि इनकी भनक किसी को नहीं लगी। ऐसा ही एक ऑपरेशन साल 1960 में अर्जेंटीना में घुसकर अंजाम दिया गया था, जिसका नाम ऑपरेशन फिनाले था। इस ऑपरेशन में मोसाद के एजेंट्स ने नाजी युद्ध अपराधी एडोल्फ आइकमेन को पकड़ लिया था फिर इजराइल ले आए थे।

एडोल्फ आइकमेन दूसरे विश्व युद्ध के बाद अर्जेंटीना में नाम बदलकर रह रहा था। जैसे ही 1957 में इसकी खबर मोसाद को हुई उसने योजना बनाई और इजराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियों ने इस पर मुहर लगा दी। अप्रैल 1960 में मोसाद के चार एजेंट अर्जेंटीना में चार अलग-अलग जगहों से घुसे और फिर ब्यूनस आयर्स में एक घर किराए पर लिया। योजना के अनुसार, 10 मई 1960 को आइकमेन को पकड़ लेना था और फिर 11-12 मई को उसे विमान से इजराइल ले जाना था।

इस ऑपरेशन में यह भी तय था कि आइकमेन हर शाम 7 बज कर 40 मिनट पर बस नंबर 203 से घर लौटता है। तभी इस ऑपरेशन को अंजाम देना है लेकिन अंत समय में खटाई तब पड़ गई जब अर्जेंटीना की सरकार ने आजादी की 150वीं वर्षगांठ के चलते विमान को 18 मई को आने की इजाजत दी। अब तय हुआ कि आइकमेन को अगवा 10 की जगह 11 मई को किया जाएगा। फिर किसी तरह 18 मई तक उसे छिपा कर रखना है।

एडोल्फ आइकमेन को छिपाकर रखना भी बड़ा चैलेंज था क्योंकि परिवार की शिकायत पर पुलिस एक्शन ले सकती थी। 11 मई को एडोल्फ आइकमेन 7 बज कर 40 मिनट पर बस नंबर 203 से उतरा ही नहीं। फिर 7 बज कर 50 मिनट पर दो बसें और आई लेकिन आइकमेन नहीं दिखा। मोसाद हेड का आदेश था कि यदि 8 बजे तक आइकमेन पकड़ में न आए तो मिशन वहीं खत्म कर देना है। कार में बैठे सभी मोसाद एजेंट्स निराश थे क्योंकि 8 बज चुके थे।

तभी 8 बज कर 5 मिनट पर एक और बस आई लेकिन कोई उतरा नहीं बल्कि बस के पीछे से एक व्यक्ति आता दिखाई दिया। मोसाद के एक एजेंट ने आइकमेन को शायद पहचान लिया था लेकिन वह पुष्टि के लिए नजदीक गया। उस शख्स की शक्ल आइकमेन से मिलती-जुलती से दिखाई दी। बस फिर क्या उसे कार में डाल दिया गया और फिर पेट में अपेंडिक्स ऑपरेशन के निशान और पूछताछ से उसकी पुष्टि हो गई। इसके बाद 21-22 मई को उसे विमान से इजराइल लाया गया।

फिर तत्कालीन इजराइली प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियों ने देश की संसद को संबोधित कर बताया कि इजराइल के सुरक्षा बलों ने नाजी युद्ध अपराधी एडोल्फ आइकमेन को पकड़ लिया है। अब उस पर कानूनन मुकदमा चलाया जाएगा। फिर 15 दिसंबर 1961 को आइकमेन को फांसी की सजा सुनाई गई और 31 मई, 1962 को उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया।