साल 1991 और महीना जनवरी। अफ्रीकी देश सोमालिया में हालात सही नहीं थे क्योंकि हथियारबंद विद्रोही गुटों ने तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद सियाद बरे को सत्ता से बेदखल कर दिया था। सभी आपस में ही गद्दी के लिए लड़ रहे थे। विद्रोही गुट खुद सत्ता की लालच में दो धड़ों में बंट गया। अब संघर्ष अली मेहंदी मोहम्मद और मोहम्मद फराह अदीदी के बीच था। आम जनता इस सत्ता युद्ध में पिसी तो यूनाइटेड नेशन्स ने ऑपरेशन इन सोमालिया शुरू किया।
यूएन के इस कदम से मोहम्मद फराह अदीदी का समूह विरोध करने लगा। फिर कई महीनों बाद साल बीता और 1992 आया। तभी तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने शांति सेना के नाम पर अमेरिकी सेना भेजी, जिसने सोमालिया को स्थिरता दी। यह हालात लगातार ऐसे ही बने रहे और फिर साल 1993 में बिल क्लिंटन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर कमान संभाली। अमेरिका को इन सालों में अपनी धौंस भा गई और शांति सेना का अभियान बढ़ा दिया गया।
इसी बीच नए राष्ट्रपति ने योजना बनाई कि क्यों न इन विद्रोही गुटों के नेताओं को पकड़ लिया जाए और फिर कुछ किया जाए। लेकिन यह कदम बहुत बड़े खतरे की ओर भी इशारा कर रहा था, जिसमें सभी को फिर से युद्ध के हालातों में झोंक देने जैसी बात थी। हालांकि, 3 अक्टूबर 1993 को योजना के अनुसार अमेरिकी दस्ता सोमालिया की राजधानी मोगादिशु की ओर बढ़ा। यहां उन्हें मोहम्मद फराह अदीदी के करीबियों को पकड़ना था।
योजना के मुताबिक पौन से एक घंटे के बीच इस काम को निपटाना था। अमेरिकी कमांडों को हेलीकॉप्टर से मोगादिशु में उतरना था और फिर पैदल चलकर जमीनी लड़ाई को अंजाम देना था। ऑपरेशन शुरू तो हुआ लेकिन अमेरिकी कमांडों बुरी तरह मोगादिशु में फंस गए। सोमालिया की सेना ने अमेरिका के दो सबसे बेहतरीन माने जाने वाले ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टरों को मार गिराया। एक पायलट बंधक बना लिया गया और 18 अमेरिकी सैनिक मारे गए।
बुरे हालातों में फंसे अमेरिकी दस्ते ने बचाव में अंधाधुंध गोलियां बरसाईं, जिसमें सैंकड़ों सोमालियाई नागरिकों की जान चली गई। इस लड़ाई में 84 अमेरिकी सैनिक घायल हो गए और फिर 11 दिन की मशक्कत के बाद पायलट को बंधक संकट से आजाद करवाया गया। इस मिशन के फेल होने के नतीजा यह रहा कि तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 6 माह के अंदर सोमालिया से अमेरिकी सेना को हटाने का निर्णय ले लिया था।