शुरू में शिवम प्रताप ने इसी सोच के साथ अपने एकेडमिक करियर में आगे बढ़ रहे थे कि उन्हें एक चिकित्सक बनना है। बायोलॉजी विषय के साथ उन्होंने बारहवीं पास की। इसके बाद उन्हें महसूस हुआ कि डॉक्टर के बजाए इंजीनियर बनना चाहिए। इसके बाद उन्होंने गणित विषय को चुना और कॉलेज से इंजीनियरिंग की। लेकिन शिवम प्रताप के करियर को यहां ब्रेक नहीं लगना था। शिवम प्रताप आगे चलकर एक आईएएस अफसर बने। आज हम जिस होनहार शख्सियत की चर्चा कर रहे हैं वो युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। एक साक्षात्कार में शिवम प्रताप ने कहा था कि कभी-कभी आप सोचते कुछ हैं और होता कुछ अलग ही है। उत्तराखंड के काशीपुर में एक गांव है मावाडाबरा। शिवम प्रताप इसी गांव से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से सेवानिवृत हुए थे। उनकी मां एक प्राइमरी स्कूल टीचर थीं।

शिवम प्रताप की की बड़ी बहन शिवाली प्रताप एक एमबीबीएस डॉक्टर थीं और वो एमडी की तैयारी कर रही थीं। इसी दौरान एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई। बहन की मौत से घरवालों को सदमा लगा।

शिवम प्रताप ने डॉक्टर बनने की ख्वाहिश से काशीपुर स्थित आर्मी स्कूल से बारहवीं बायोलॉजी में पास की। इसके बाद उन्होंने अपना विचार बदल लिया। साल 2013 में उन्होंने पंतनगर यूनिवर्सिटी से Electronics and Communication Engineering की पढ़ाई गणित विषय के साथ पूरी की।

इंजीनियरिंग करने के दौरान शिवम प्रताप छात्र राजनीति से जुड़े। जल्दी ही वो छात्र संगठन के जनरल सेक्रेट्री बन गए और फिर साल 2012 में वो छात्र संगठन के अध्यक्ष भी बने। यहीं से शिवम प्रताप की जिंदगी और करियर बदल गई। उन्हें यह महसूस होने लगा कि वो इंजीनियरिंग करने के लिए नहीं बने हैं। उन्हें ऐसा लगा कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा में बैठने का फैसला किया। साल 2013 में उनका चयन टीएसीएस में हुआ लेकिन उन्होंने ज्वॉयन नहीं किया।

साल 2013 से शिवम प्रताप ने खुद से पढ़कर इंजीनियरिंग की तैयारी शुरू की। साल 2014 में पहली बार उन्होंने इस परीक्षा को पास करने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हुए। साल 2015 में उन्होंने दूसरी बार कोशिश की और वो साक्षात्कार तक पहुंचे लेकिन उनका चयन नहीं हो सका। साल 2017 में उन्होंने फिर से कोशिश की। इस बात शिवम प्रताप ने इस परीक्षा को पास कर लिया। इस परीक्षा को पास करने के बाद शिवम ने अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता और भाई को दिया था।