आम तौर पर किसी अखाड़े का महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी सन्यासी को अखाड़े से कम से कम 10 साल तक लगातार जुड़ा होना चाहिए। उसे धर्मशास्त्र का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए और उसके दिल में सनातन धर्म के प्रति समर्पण की भावना होनी चाहिए। आज हम एक ऐसे शख्स की बात कर रहे हैं जिसपर धोखे से महामंडलेश्वर बनने का आरोप है। साल 2015 में सचिन दत्ता उर्फ बाबा सच्चिदानंद गिरी इलाहाबाद के मशहूर निरंजनी अखाड़ा परिषद के महामंडलेश्वर बने।
लेकिन उस वक्त बाबा के महामंडलेश्वर बनने के बाद से ही इसपर विवाद गहरा गया था। कई लोग उन्हें यह पद दिए जाने का विरोध करने लगे। विरोध करने वाले लोगों का उस वक्त कहना था कि गाजियाबाद के रहने वाले सचिन दत्ता इससे पहले बीयर बार और डांस बार चलाते थे। विरोधियों का यह भी कहना था कि बाबा रियल स्टेट के धंधे से भी जुड़े हुए थे। जानकारी के मुताबिक बाबा कई दिनों तक नोएडा के सेक्टर-18 में अपना बार चलाते रहे और रियल स्टेट का कारोबार भी । यह भी कहा गया था कि निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर का पद उन्होंने दौलत के दम पर हासिल किया है। सचिन दत्ता अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर कैलाशानंद से कई सालों जुड़े थे और कैलाशानंद के सानिध्य में संन्यास लेने के बाद उनका नाम सच्चिदानंद महाराज गिरि हो गया। विरोधियों का कहना था कि डांस और बीयर बार चलाने वाले शख्स को इस उपाधि से नहीं नवाजा जा सकता।
बहरहाल बता दें कि उस वक्त निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर के विवादों में गिरने के बाद परिषद् ने अपनी तरफ से इन आरोपों की जांच भी की थी। उस वक्त अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा था कि सच्चिदानंद ने संन्यास लेने के बाद घर-परिवार और बीयर बार के कारोबार से नाता तोड़ लिया था। इसलिए उनकी नियुक्ति को गलत नहीं ठहराया जा सकता। इसके बाद मामले की जांच की गई। लेकिन आरोप सिद्ध होने पर बाबा सच्चिदानंद से महामंडलेश्वर की उपाधि वापस ले ली गई थी। (और…CRIME NEWS)
