आज बात रॉ यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के सबसे कठिन और जोखिम भरे ऑपरेशन कहुटा की जो एक चूक के चलते फेल हो गया था। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की स्थापना साल 1968 में हुई थी। हालांकि, देश के पास इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी जैसी शानदार खुफिया एजेंसी थी लेकिन साल 1962 में भारत-चीन युद्ध और साल 1965 में भारत-पाक युद्ध में आईबी के दौरान कुछ खास कामयाबी नहीं मिली।
साल 1968 में रामेश्वर नाथ काओ की पहल पर रॉ का गठन हुआ जिसका काम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुफिया जानकारी एकत्र करना रहा। इन सबके बीच मुख्य फोकस पाकिस्तान और चीन पर रहा। क्योंकि चीन लगातार भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सामरिक दृष्टि से मदद दे रहा था। भारत ने साल 1956 में ही पहला परमाणु रिएक्टर बना लिया था और साल 1964 आते-आते प्लूटोनियम संवर्धन की काबिलियत भी हासिल कर ली थी। इससे पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ था।
70 के दशक में रॉ ने अपना पूरा नेटवर्क पाकिस्तान में फैला दिया था। इसी दौरान पता चला कि चीन और फ्रांस की मदद से पाकिस्तान ने भी रावलपिंडी के कहुटा में खुफिया परमाणु संयंत्र शुरू किया है। इसके पीछे पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के पितामह वैज्ञानिक ए क्यू खान का दिमाग था। अभी तक यह केवल अफवाह मात्र थी लेकिन भारत की रॉ और इजराइल की मोसाद एजेंसी इस परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित थे। अमेरिका ने दबाव डाला तो फ्रांस ने भी पाक के मदद से अपने हाथ पीछे खींच लिए।
अब समस्या यह थी कि आखिर इस अफवाह को स्पष्ट कैसे किया जाए। फिर रॉ ने एक नायाब तरकीब निकाली, उन्हें पता चला कि परमाणु संयत्र में काम करने वाले लोगों के शरीर पर भी परमाणु विकिरण का असर पड़ता है। इसी क्रम में उन्होंने निगरानी कर एक नाई की दुकान से पाकिस्तानी वैज्ञानिकों के कटे हुए बालों को चुराया। वैज्ञानिकों के चुराए गए बालों के सैंपल में परमाणु विकिरण की पुष्टि होते ही स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने का काम कर रहा था।
फिर रॉ ने एक शख्स के माध्यम से पूरे संयंत्र का ब्लू प्रिंट भी हासिल कर लिया लेकिन वह इसके बदले 10 लाख डॉलर की मांग कर रहा था। लेकिन 1977 में आपातकाल के बाद भारत के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बन चुके थे। उन्होंने रॉ के निदेशक आर. एन. काओ से कहा कि वह पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल न दें। साथ ही ब्लू प्रिंट के बदले राशि देने से भी सैंक्शन करने से मना कर दिया। साथ ही पीएम देसाई ने इसकी जानकारी पाक जनरल जिया उल हक़ से भी साझा कर दी।
इसके बाद पाकिस्तान ने आईएसआई की मदद से रॉ के पूरे नेटवर्क को ढूंढ निकाला और फिर नेटवर्क को ख़त्म कर दिया। इस मिशन के असफल होने के बाद रॉ के निदेशक रामेश्वर नाथ काओ (आर.एन. काओ) ने भी पद से इस्तीफ़ा दे दिया। हालांकि, साल 1981 में इंदिरा गांधी पीएम बनी तो इजरायल सीधे तौर पर कहुटा संयत्र को बम से उड़ाना चाहता था लेकिन सीआईए को इसकी भनक लग गई, जिसके बाद यह मिशन अपने काम को अंजाम नहीं दे पाया।