कड़ी मेहनत से आईएएस बनने वाले कई शख्सियतों की चर्चा अब तक हम कर चुके हैं। आज हम राजस्थान के एक माता-पिता के त्याग और संघर्ष की बात कर रहे हैं जिन्होंने खुद गरीबी का सामना किया लेकिन अपने बेटों को कभी कोई कमी नहीं होने दी और बेटों ने भी परिवार का नाम रौशन किया। राजस्थान के एक छोटे से शहर में रहने वाले दो भाई पंकज और अमित कुमावत की कहानी सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए प्रेरणा से कम नहीं है।
अपने 2 भाइयों में बड़े पंकज ने साल 2018 में दूसरी बार सिविल सर्विस की परीक्षा दी और पास कर लिया। साल 2017 में पंकज असफल हुए थे और महज 12 नंबर कम होने की वजह से वो परीक्षा में असफल हुए थे। साल 2018 में ही पंकज के भाई अमित ने भी सिविल सर्विस की परीक्षा पास की थी। दोनों भाइयों ने आईआईटी-दिल्ली से बी.टेक किया था।
एक साक्षात्कार में पंकज ने बताया था कि उनके पिता पेशे से टेलर थे। उनकी मां सिलाई-कढ़ाई में पिता की मदद करती थी। पिता की मदद के अलावा उनकी मां घर भी संभालती थीं। अपने परिवार में ग्रेजुएशन करने वाले पंकज पहले सदस्य थे। राजस्थान के झुंझुनू में पले-बढ़े पंकज ने दसवीं कक्षा तक हिंदी मीडियम से पढा़ई की थी। इसके बाद उनका दाखिला अंग्रेजी मीडियम स्कूल में हुआ था।
पंकज ने खुद बताया था कि हिंदी मीडियम से अंग्रेजी मीडियम में जाने के बाद उन्हें दोगुनी मेहनत करनी पड़ती थी ताकि वो विषय को समझ सकें। पंकज को गणित पढ़ने में काफी रुचि थी। कई लोगों ने पंकज को सलाह दी थी कि वो अंग्रेजी के लिए अलग से कोचिंग पढ़ें। लेकिन पंकज ने शिक्षकों और अपने सीनियर्स की मदद से अंग्रेजी विषय पर अपनी कमांड बनाई। 12वीं की परीक्षा में पंकज ने 89.6 प्रतिशत मार्क्स के साथ अपने स्कूल में टॉप किया।
पंकज ने All India Engineering Entrance Examination (AIEEE) में बेहतरीन स्कोर हासिल किया था। एक मशहूर इंजीनियरिंग कॉलेज में उन्हें सीट भी मिल गई थी लेकिन उन्होंने अपना फोकस आईआईटी पर रखा था। पढ़ाई पूरी करने के बाद पंकज एक प्राइवेट नौकरी करना चाहते थे। लेकिन उनके छोटे भाई अमित ने उन्हें सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित किया। दरअसल अमित के कई दोस्त इस परीक्षा की तैयारी कर रहे थे जिसके बाद अमित ने अपने बड़े भाई को इस परीक्षा की तैयारी करने के लिए कहा।
आखिरकार बड़े बेटे पंकज कुमावत ने यूपीएससी की परीक्षा में 443वीं और अमित कुमावत ने 600वीं रैंक हासिल की। इनके परिवार में आज तक किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिली थी लेकिन इन्होंने अपने खानदान की इस विडम्बना को तोड़ दिया था। पंकज और अमित ने कहा था कि, ‘हम जानते हैं कि हमें माता-पिता ने किस तरह से पढ़ाया है…हमारे लिए पढ़ाई करना तो आसान था लेकिन उनके लिए पढ़ाना बहुत ज्यादा मुश्किल होता था…उन्होंने हमेशा हमारी फीस, कपड़े, किताबों और दूसरी सभी चीजों का पूरा इंतजाम रखा और कभी हमें एहसास नहीं होने दिया कि हमारे पास पैसे नहीं हैं।’

