जर्मनी के म्यूनिख में साल 1972 में ओलंपिक का आयोजन हुआ। दुनियाभर से खिलाड़ी इकट्ठा हुए और खेलगांव में ठहरे। इसी दौरान दो आतंकवादी संगठनों ब्लैक सेप्टेम्बर और फिलिस्तीन लिबरेशन के आतंकियों ने इजराइल के 11 खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। फिर कुछ चूकों के चलते इन आतंकियों ने सभी 11 खिलाड़ियों की 5 सितंबर 1972 में हत्या कर दी। इजराइल बौखला गया और फिर मोसाद ने ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड यानी खुदा का कहर लांच किया।

इजराइली खिलाड़ियों को निर्मम मौत देने वालों की सूची मोसाद द्वारा तैयार की गई। फिर तय हुआ कि हर एक को किसी भी हाल में मारना है, चाहे किसी भी तरह का जोखिम क्यों न उठाना पड़े। मोसाद ने अपने जासूस तैयार किए, इनमें कुछ महिलाएं भी थी। फिर साल 1972 के अक्टूबर में ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड शुरू किया गया। मोसाद की इस हिट लिस्ट में 11 लोग शामिल थे।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मोसाद ने पहला निशाना रोम में रह रहे एक फिलिस्तीनी को बनाया जिसकी भूमिका म्यूनिख बंधक संकट में थी। फिर दुनिया के विभिन्न देशों में अगले 20 सालों तक मोसाद ने कहर बरपाया। बताया जाता है कि मोसाद ने इस ऑपरेशन में फोन बम, जहरीली सुई, नकली पासपोर्ट और न जाने किन-किन तरीकों से हिट लिस्ट में शामिल लोगों को मारा।

इस ऑपरेशन को अंजाम देते वक्त मोसाद के जासूसों ने किसी भी देश के प्रोटोकॉल की कोई परवाह नहीं की। कई जासूसों ने आरोपियों को मारने के लिए सुरक्षा एजेंसियों में भी काम किया। इस दौरान इन सबका एक ही मकसद रहा कि सभी को मौत के घाट उतारना है। कहा गया कि हर व्यक्ति को खिलाड़ियों की संख्या बराबर यानी 11 गोलियां मारी गईं थी। हालांकि, इस मिशन में नार्वे के एक बेकसूर वेटर की भी मौत हो गई थी।

नार्वे में वेटर की मौत के बाद मोसाद को खूब निंदा हुई जिसके चलते ऑपरेशन काफी समय तक रुका रहा। हालांकि, मोसाद ने कई साल खामोश रहने के बाद यूरोप और मिडिल ईस्ट में छिपे कई लोगों को और मारा। कहा जाता है कि मोसाद के जासूस हर शिकार को मारने से पहले एक चिट्ठी भेजते, जिस पर लिखा होता कि ये याद दिलाने के लिये कि हम ना तो भूलते हैं, ना ही माफ करते हैं।