ओलंपिक को हम खेलों का महाकुम्भ भी कहते हैं। 1972 में ओलंपिक मशाल 26 अगस्त को जर्मनी के म्यूनिख पहुंची। जर्मनी के लोग मेजबानी करने के चलते खुश थे और म्यूनिख शहर सैकड़ों देशों के झंडों से पटा पड़ा था। हालांकि, इस ओलंपिक में जो कुछ भी हुआ वह दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था। 5 सितंबर 1972 को म्यूनिख का खेलगांव गोलियों की आवाज से गूंज उठा और फिर जो हुआ वह सालों तक लोगों के दिलों में जिंदा रहा।
5 सितंबर 1972 को सुबह म्यूनिख का खेलगांव खामोश था लेकिन अचानक एक तरफ से गोलीबारी की आवाज सुनाई दी। थोड़ी देर में पता चला कि कुछ आतंकियों ने हमला किया है। शुरुआत में कुछ स्पष्ट नहीं था लेकिन जब सामने आया कि 8 आतंकवादियों ने इजराइल के 11 खिलाड़ियों को बंधक बना लिया है तो सभी के होश उड़ गए। इस खबर ने पूरी दुनिया में हड़कंप मचा दिया।
ऐसा पहली बार था कि ओलंपिक कवर करने पहुंचे टीवी कैमरे किसी खेल के बजाय एक बंधक संकट को दिखा रहे थे। हालांकि, इस बंधक संकट की योजना को एक दिन पहले यानी 4 सितंबर की रात को ही अंजाम दे दिया था। यह आतंकी केवल इजराइल के खिलाड़ियों को निशाने पर लेने पहुंचे थे। इस मौत के खेल में 11 खिलाड़ियों में से 2 खिलाड़ी भागने की नाकाम कोशिश में अपनी जान गवां बैठे।
इन आतंकियों ने 24 घंटे का समय देते हुए मांग रखी कि इजराइली जेलों में बंद 234 फिलीस्तीनी कैदियों को रिहा किया जाए। उस वक्त इजराइल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर हुआ करती थी। सरकार पर दबाव और खौफ बनाने के लिए इन आतंकियों ने एक खिलाड़ी की लाश अपार्टमेंट से नीचे फेंक दी। इधर जर्मनी सरकार ने भी आतंकियों को सुरक्षित पैसेज का प्रस्ताव दिया पर वह नहीं माने।
फिर लंबी बातचीत में तय हुआ कि आतंकी बंधको के साथ काहिरा जाना चाहते हैं। बसों में बंधक के साथ आतंकियों ने एयरपोर्ट पहुंचकर उड़ान भरने वाले विमान को चेक किया कि तभी एयर पोर्ट पर मौजूद जर्मन स्नाइपर्स की तरफ से गोली चली। मिशन फेल हो चुका था और जवाबी कार्रवाई में आतंकियों ने हेलीकॉप्टर में बैठे 9 इजराइली खिलाड़ियों को गोलियों से भून दिया। फिर एक आतंकी ने मरने से पहले हेलीकॉप्टर की ओर एक ग्रेनेड भी फेंक दिया।
इस कार्रवाई में तीन आतंकी जिंदा पकड़े गए लेकिन सभी बंधक बनाए गए इजराइली खिलाड़ी मारे गए। यह आतंकी फिलीस्तीनी आतंकवादी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर से जुड़े थे। फिर कई सालों बाद मोसाद ने इस घटना के बदले की पूरी योजना बनाई। इसे ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड का नाम दिया गया और कहा जाता है कि मोसाद ने इस घटना से जुड़े अलग-अलग देशों में छिपे लगभग सभी आतंकियों को चुन-चुनकर मौत दी थी।