इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद अपने खतरनाक मिशन के मशहूर है। एक ऐसा ही मिशन 2010 में दुबई में किया गया था, जिसमें मोसाद के 33 एजेंट्स ने हमास के सैन्य कमांडर महमूद अल मबूह को दुबई में मौत दी थी। इस सैन्य कमांडर को मारने के पीछे की वजह 21 साल पुरानी थी, जिसमें महमूद अल मबूह ने दो इजराइली सैनिकों को 1989 में मारा था। इसे इजराइली सरकार ने वांटेड भी घोषित किया था।
हमास का सैन्य कमांडर महमूद अल मबूह हथियार की खरीद-बिक्री का काम देखता था। उसे लगता था कि अगर सुरक्षित रहना है तो दुबई सबसे अच्छा ठिकाना है लेकिन मोसाद ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। 19 जनवरी 2010 को दुबई के होटल अल बुस्तान रोताना में एक लाश मिली, जिसने पूरी दुनिया को सन्न कर दिया। दुबई पुलिस करीबन दस दिन तक नहीं पता लगा पाई कि यह मर्डर है या दुर्घटना।
यह लाश किसी आम शख्स की नहीं थी बल्कि हमास के लिए हथियार की खरीद-बिक्री करने वाले महमूद अल मबूह की थी। जांच में पता चला कि महमूद अल मबूह को सक्सिनीकोलीन का इंजेक्शन दिया गया था। यह जहरीला इंजेक्शन शरीर को लकवाग्रस्त कर देता है। इस मामले में भी यही हुआ उसे पैर में इंजेक्शन दिया गया और फिर तकिए से सांस रोककर दम घोंट दिया गया।
इस मामले में कई कहानियां सामने आई लेकिन अधिकतर लोग मान रहे थे कि महमूद अल मबूह की हत्या मोसाद एजेंट्स ने की थी। जिन्होंने होटल में महमूद अल मबूह के कमरे के सामने ही अपना रूम बुक करवा रखा था। अल मबूह पर 1989 में दो इजराइली सैनिकों को मारने का आरोप था, यह कत्ल उसी का बदला था। मोसाद के हिट स्क्वाड ने अल मबूह के कमरे से जाने के बाद इलेक्ट्रिक डोर की सेटिंग बदल दी और जब वह लौटकर आया तो हत्या कर गायब हो गए।
मोसाद ने हिट स्क्वॉड को मिशन के लिए एक कोड दिया था, जिसका नाम “सीजेरिया” था। इस पूरे मिशन को अंजाम देने के लिए 33 एजेंट्स ने निगरानी की थी। हमास क्या खुद अल मबूह ने नहीं सोचा होगा कि उसे वहीं मौत मिलेगी, जहां वह खुद को सबसे ज्यादा सेफ समझता है। इन एजेंट्स ने अलग-अलग देशों के पासपोर्ट बनवा रखे थे लेकिन दुबई पुलिस को कुछ पता चलता तब तक यह एजेंट्स दुबई से गायब हो चुके थे।