नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज रिलीज हुई है ब्लैक वारंट, इस फिल्म में जेल से जुड़ी चीजें फिल्माई गई हैं। इस सीरीज में रंगा-बिल्ला की फांसी दिखाई गई है, जब इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टर जेलर से कहती है कि मौत की सजा सुनाने के बाद जज भी अपने पेन की निब तोड़ देते हैं, सोचा है ऐसा क्यों होता है। कई लोगों के मन में भी यह सवाल आ सकता है, क्या फिल्मों में दिखाया जाने वाला यह सीन सच होता है, आखिर इसके पीछे क्या वहज होती है और इसकी पूरी सच्चाई क्या है।
दरअसल, फिल्मों में कई बार यह देखने को मिलता है कि जज किसी को फांसी की सजा सुनाने के बाद अपने पेन की निब तोड़ देते हैं। लोग सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। असल में यह कोई नियम नहीं है बल्कि एक परंपरा मानी जाती है। इस बारे में गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस (रिटायर्ड) रमेश गर्ग ने दैनिक भास्कर को खास जानकारी दी थी।
माना जाता है कि फांसी की सजा सबसे कठोरतम सजा होती है, यह एक बेहद गंभीर और ऐतिहासिक फैसला होता है। जब कोई जज मौत की सजा सुनाते हैं तो पेन की निब तोड़ देते हैं तो इसका मतलब यह है कि उन्होंने यह फैसला पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और गंभीरता से लिया है। यह संकेत माना जाता है कि अब यह आखिरी फैसला है जिसे बदला नहीं जा सकता है। यह इस बात को दर्शाता है कि ऐसे गंभीर अपराध दोबारा न हो जिससे दोबारा किसी को फांसी देनी पड़े। यह भी माना जाता है कि जिस पेन से मौत की सजा लिखी गई है, उसका दोबारा उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह सिर्फ एक विचार है, परंपरा है कोई नियम नहीं है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, यह प्रथा ब्रिटिश शासन के समय का था। उस वक्त भारत में अंग्रेजी कानून फॉलो हो रहा था, उस समय जज फंसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ देते थे। यह संकेत माना जाता था कि अब इस पेन का दोबारा इस्तेमाल नहीं होगा ताकि न्याय की पवित्रता बनी रहे। यह परंपरा इस बात का संकते है कि किसी को फांसी की सजा देना कितना गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है। यह कानून के सम्मान को दर्शाती है, यह इस बात को भी दर्शाने का संकेत माना जाता है कि बात जब न्याय की हो तब भावनाओं और व्यक्तिगत विचारों की कोई जगह नहीं होती है।
सच में तोड़ी जाती है पेन की निब?
रिाटायर्ड जस्टिस गर्ग ने भास्कर से बातचीत में बताया था कि पहले ऐसा इंग्लैंड में होता था क्योंकि फांसी की सजा को बुरा माना जाता है। इसी कारण पेन की निब तोड़ दी जाती थी कि अब इसका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। बाद में जहां-जहां अंग्रेजों ने शासन किया, उन देशों में भी इस परंपरा को फॉलो किया जाने लगा। उनका कहना था कि, इसका कोई कानून कभी नहीं बना, यह सिर्फ एक परंपरा थी। अब तो निब वाले पेन का इस्तेमाल शायद ही किया जाता है। उनका यह भी कहना था कि तब कहा जाता था कि निब तोड़ने के बाद खुद जज को भी ये अधिकार नहीं होता कि वह अपने फैसले की समीक्षा करें या उस फैसले को बदल सके या दुबारा विचार की कोशिश कर सकें।