गुजरात उच्च अदालत ने व्यभिचार के आरोप में पुलिस सेवा से बर्खास्त किये गए पुलिसकर्मी की याचिका पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा समाज की नजरों में भले ही विवाहेत्तर संबंध (Extra-marital Relationship) अनैतिक काम हो सकता है, लेकिन इसे पुलिस सेवा नियमों के चश्मे से दुराचार का रूप नहीं माना जा सकता।

गुजरात हाई कोर्ट ने व्यभिचार के आरोप में बर्खास्त अहमदाबाद कांस्टेबल को बहाल करने का आदेश देते हुए कहा कि “याचिकाकर्ता का अपराध बर्खास्तगी योग्य नहीं है। साथ ही अदालत ने कहा कि, यह सच है कि याचिकाकर्ता एक अनुशासित बल का हिस्सा है, लेकिन अदालत के द्वारा उसके कृत्य को दुराचार के दायरे में लाना कठिन होगा।

जस्टिस संगीता विशेन ने बर्खास्तगी के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि, याचिकाकर्ता के मामले में तथ्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह उसका निजी मामला था। इसमें किसी भी तरह की जोर-जबरदस्ती या शोषण नहीं किया गया था। साथ ही अदालत ने शहर की पुलिस को एक महीने के भीतर कांस्टेबल को फिर से नियुक्त करने और 25 प्रतिशत वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया।

दरअसल, याचिकाकर्ता पुलिसकर्मी अपने परिवार के साथ शाहीबाग में पुलिस क्वार्टर में रहता था, जहां उसकी मुलाकात उसी कॉलोनी में रहने वाली एक विधवा से हुई थी। महिला के परिवार ने रिश्ते के सबूत इकट्ठा करने के लिए क्वार्टर में सीसीटीवी कैमरे लगाए, जिसके आधार पर उन्होंने 2012 में पुलिस आलाकमान से शिकायत की थी।

मामले में शिकायत के बाद दोनों ने अपने रिश्ते को स्वीकार किया, जिसके बाद पुलिस आलाकमान ने पुलिसकर्मी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इसके बाद साल 2013 में उसे “नैतिक पतन” के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया, जो कि पुलिस में जनता के विश्वास को कम करने के लिए था।

ऐसे में पुलिसकर्मी ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ अदालत का रुख करते हुए कहा कि उसे बर्खास्त करने से पहले जांच की किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। जबकि उसने यह कहा था कि दोनों में संबंध सहमति से बने थे, इसलिए उसके द्वारा महिला का शोषण करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।

न्यायमूर्ति विशेन ने कहा पुलिसकर्मी के मामले में व्यभिचार के आरोप में सरकारी कर्मचारियों पर विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया। साथ ही कहा, “आचार नियम, 1971 (Conduct Rules, 1971) के अनुसार कृत्य को ‘दुराचार’ कहना बहुत दूर की कौड़ी होगी।

वहीं अदालत ने पुलिस विभाग की भी खिंचाई की और कहा कि मामले में “शर्मिंदगी” से बचने के बहाने जांच शुरू की गई। साथ ही पुलिस आलाकमान ने बिना कानूनी कारणों के बर्खास्तगी का आदेश जारी किया और सेवा नियमों का हवाला देते हुए केवल “कट, कॉपी और पेस्ट की प्रक्रिया” को अपनाया।