मद्रास हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में मद्रास बार एसोसिएशन (MBA) पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। इस मामले में एक जूनियर वकील को एमबीए के आधिकारिक परिसर में पीने के पानी तक पहुंच से वंचित कर दिया गया था। क्योंकि वह इस संगठन का “सदस्य नहीं” था। घटना जनवरी 2012 की है। इस मामले में शिकायत करने वाले आर नील रशन और आरोपी वरिष्ठ वकील पी एच पांडियन दोनों का निधन हो चुका है।

सामाजिक बुराइयां व्यक्तियों के साथ कभी नहीं मरतीं

यह देखते हुए कि “सामाजिक बुराइयां व्यक्तियों के साथ कभी नहीं मरतीं” मद्रास हाई कोर्ट ने एमबीए को वरिष्ठ वकील एलीफेंट जी राजेंद्रन को मुआवजा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया, जिनके बेटे रशन को पांडियन ने एमबीए के कार्यालय में पानी पीने से रोका था। वकील राजेंद्रन ने कहा कि उनका बेटा मद्रास हाई कोर्ट में उनके अधीन प्रैक्टिस कर रहा था कुछ समय पहले एक सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। रशन के साथ भेदभाव करने के आरोपी पांडियन भी अब नहीं रहे।

राष्ट्र के भविष्य के हित में ऐसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हालांकि मामले में शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों की मृत्यु हो चुकी है, फिर भी “हमारे राष्ट्र के भविष्य के हित में ऐसे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और उनका समाधान किया जाना चाहिए।” कोर्ट के आदेश में कहा गया है कि अदालतों से ऐसे मुद्दों को लापरवाही से छोड़ने की उम्मीद नहीं की जाती है, क्योंकि इससे भविष्य के वकील प्रभावित होंगे जो हमारी न्याय वितरण प्रणाली की रीढ़ हैं। हाई कोर्ट को अदालत परिसर के भीतर बार एसोसिएशन के कार्यों और मामलों को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त शक्तियां मिली हुई हैं।

मद्रास बार एसोसिएशन के हॉल में क्या हुआ था

रशन ने अपनी शिकायत में कहा था, ”मैं मद्रास बार एसोसिएशन के कमरे के पास था। बीमार होने और कमजोरी महसूस होने के कारण मुझे पानी पीने की इच्छा हुई। इसलिए मैं एमबीए के हॉल में रखे पानी के फिल्टर की ओर दौड़ा। जब मैं एक गिलास में पानी भर रहा था, वरिष्ठ वकील पी एच पांडियन मेरे पास आए और जोर से मेरे हाथ से गिलास छीन लिया और चिल्लाते हुए कहा, ‘तुम यहां पानी नहीं पी सकते, बाहर जाओ।’ मैं चौंक गया और टूटे हुए दिल और आंसू के साथ एमबीए के हॉल से बाहर आ गया।”

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जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम ने आदेश में और क्या कहा

जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम ने आदेश देते हुए कहा, “हम भावी पीढ़ी के वकीलों के लिए कोई बुरी मिसाल नहीं छोड़ सकते। न्यायाधीश यह सुनिश्चित करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं कि किसी भी रूप में कोई भेदभाव न हो और न्याय वितरण प्रणाली की प्रक्रिया में वकीलों और वादियों के मन में विश्वास और आराम पैदा करने के लिए एक निष्पक्ष प्रणाली कायम रहे।” उन्होंने कहा, “अदालत परिसर में किसी भी वकील को प्रवेश के अधिकार से तब तक इनकार नहीं किया जा सकता जब तक कि यह न्यायिक प्रशासन के हित में उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित न हो।”