अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकवादी हमले को आज 20 साल पूरे गए हैं। इस हमले में हजारों को लोगों की मौत हुई थी और 40 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था। आतंकियों द्वारा किए गए इस अटैक में न्यूयॉर्क शहर में स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (WTC) की दो गगनचुंबी इमारतें पूरी तरह ध्वस्त हो गई थी। इमारत के गिरने बाद उसके मलबे को ”फ्रेश किल्स” नाम की एक लैंडफिल साइट पर ले जाया गया था। कई दिनों तक मलबे में शवों की छानबीन की गई। लेकिन इस दौरान कई लोग इससे निकले जहरीले चीजों की चपेट में आकर कई तरह बीमारियों के शिकार हो गए थे।

इमारत के ध्वस्त होने के बाद वॉलिंटियर्स, फायर ब्रिगेड, पुलिस और खोजी कुत्तों की एक टीम ने पहले दिन 21 जिंदा लोगों को मलबे से बाहर निकाला, इसके बाद कोई व्यक्ति जिंदा नहीं निकला। इसके अलावा मलबे में बिखरे हुए शवों के 21,900 टुकड़ों को एकत्रित किया गया था। लैंडफिल साइट जल्द ही अमेरिकी इतिहास में सबसे महंगी फोरेंसिक इंवेस्टिगेशन का एक सेंटर बन गया। यहां पर क्षतिग्रस्त हड्डियों की DNA पहचान और आंशिक प्रोफाइल का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया। हालांकि जानकार, मलबे से सही तरीके से इंसानी अवशेषों की पहचान कर उन्हें अलग करने में नाकाम रहे थे।

”फ्रेश किल्स” लैंडफिल साइट अज्ञात शवों की कब्रगाह बन गई। इस मलबे से पैदा हुई परेशानियां काबू से बाहर हो गईं। इससे निकली जहरीली गैसें वहां काम करने वालो लोगों के लिये हानिकारक बन गईं। इस दौरान जहरीली चीजों के संपर्क में आकर बीमार हुए कई लोगों की जान चली गई, जिनमें कंस्ट्रक्शन वर्कर्स, डॉक्टर्स और अन्य लोग शामिल हैं। मलबे से उपजी गैसों और दूषित पदार्थों ने लीवर, हार्ट, किडनी से जुड़ी बीमारियों और ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को बढ़ा दिया, जिसका दंश कई साल तक लोगों ने झेला।

9/11 हमले के कई महीनों बाद तक सफाई का काम जारी रहा था। (एपी फोटो/रिचर्ड ड्रू, फाइल)

पीड़ितों का दर्द, मुनाफा कमाने की होड़: अगले एक दशक के दौरान, इस दंश को झेलने वाले कर्मियों ने मुआवजे का दावा किया। साथ ही ग्राउंड जीरो (घटनास्थल) पर पर्याप्त सुरक्षा उपकरण मुहैया नहीं कराने को लेकर न्यूयॉर्क शहर के प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दाखिल किया। इसके बाद 9/11 स्वास्थ्य और मुआवजा एक्ट पारित किया गया। इस एक्ट के तहत उन्हें स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा प्रदान करने के लिये एक कानून बनाया गया।

एक ओर जहां इस लैंडफिल साइट को हेल्थ के लिए खतरनाक माना गया, तो दूसरी ओर, ध्वस्त इमारत के मलबे से निकले स्टील को चीन और भारत के कबाड़ बाजारों में बेचकर मुनाफा कमाने का सिलसिला भी जारी रहा। एक कबाड़ प्रोसेसर ने न्यूयॉर्क सिटी डिपार्टमेंट ऑफ़ सैनिटेशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट के तहत मलबे से निकले स्टील को खरीद लिया। एक अन्य कंपनी, शंघाई बायोस्टील ग्रुप ने NYC द्वारा नीलाम किए गए अतिरिक्त 50,000 टन बड़े स्ट्रक्चरल स्टील को 120 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के हिसाब से खरीद लिया।

मलबे से निकले स्टील को घटना के छह महीने बाद भारत ले जाया गया। इससे भारत के कई शहरों में विभिन्न भवनों का निर्माण किया गया। इनमें एक कॉलेज, एक कार रिपेयरिंग साइट और बिजनेस सेंटर का निर्माण शामिल है। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज को जल्द से जल्द फिर से खोलने के लिए, डिजाइन और निर्माण विभाग ने WTC के मलबे को साफ करने लिए 5 निर्माण कंपनियों के साथ अनुबंध किया।

पीड़ितों के परिवारों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि अधिकारियों ने शवों को निकालने में लापरवाही बरती। उनका तर्क था कि मलबे से ऑर्गेनिक और नॉन ऑर्गेनिक कचरे के ढेर को जल्दबाजी में हटाकर जल्दबाजी में बचे हुए मलबे को दफन कर दिया गया।

”फ्रेश किल्स” लैंडफिल साइट को साल 2001 की शुरुआत में बंद कर दिया गया था, लेकिन 11 सितंबर के हमले के बाद इसे फिर से खोला गया। बताया जाता है कि लगभग 1,600 लोग उस समय इस साइट से प्रभावित हुए थे। हमले के बाद लगभग 1.6 लाख मिलियन टन मलबा यहां लाया गया था। इस मबले से हजारों मानव अवशेष निकाले गए लेकिन केवल 300 लोगों की ही पहचान हो पाई।

साल 2011 में यहां एक मेमोरियल बनाया गया। इमारत के मलबे को लैंडफिल साइट के 40 एकड़ जमीन में दफन कर दिया गया। इस तरह हमले के बाद अमेरिकी लोगों के लिये मुसीबत का सबब बने इस मलबे का हमेशा के लिये खात्मा हो पाया था।

(माइकल पिकार्ड, लेक्चरर, इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल लॉ, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग द्वारा वर्ल्ड टेड्र टावर के अवशेषों के बारे में विवादास्पद गाथा)