अंशुमाली रस्तोगी
इंटरनेट के जरिए खरीदारी, यानी आॅनलाइन शॉपिंग का बाजार इन दिनों चरम पर है। तर्क है- कम कीमत, समय की बचत, गुणवत्ता की गारंटी, समय-समय पर आने वाले छूट-प्रस्ताव का लाभ। दरअसल, ऑनलाइन बाजार का सारा दारोमदार ‘ऑफर्स’ पर टिका है, जो ग्राहकों को आकर्षित तो कर ही रहे हैं, साथ-साथ बाजार में ‘प्रतिस्पर्द्धा’ के बने रहने की मांग भी मजबूत कर रहे हैं। जिस वेबसाइट पर जितने ज्यादा ऑफर, उससे उतना ही लाभ। इनमें जितना फायदा ग्राहकों को मिलता है, उसे कहीं ज्यादा इ-शॉपिंग की वेबसाइट चलाने वालों को भी।
कुछ समय पहले एक बड़े ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट ‘फ्लिपकार्ट’ ने जिस तरह से ‘द बिग बिलियन डे ऑफर’ निकाला था, उसने न केवल इस कारोबार के दूसरे प्रतिद्वंद्वियों, बल्कि खुदरा बाजार की बेचैनी को भी बढ़ा दिया है। हालांकि इसी के साथ ग्राहकों की नाराजगी भी बड़े पैमाने पर सामने आई, क्योंकि उन्हें ऑफर का जो लाभ मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। इसके लिए ‘फ्लिपकार्ट’ ने बाद में माफी भी मांगी। लेकिन इसके अलावा, त्योहारों के मौसम में ‘स्नैपडील’, ‘अमेजन’, ‘होमशॉप 18’ जैसे तमाम इ-शॉपिंग पोर्टल ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह के आॅफर देते रहे।
काफी आकर्षक प्रस्ताव के चलते ग्राहकों ने भी अपनी सुविधानुसार इनसे खरीदारी की भी। यों भी, हम भारतीय ग्राहक हमेशा इस तलाश में रहते हैं कि कहां, किस बाजार में क्या सस्ता मिल रहा है। तभी तो हमारे बाजार सस्ते का प्रस्ताव देकर गांधी जयंती, वेलेंटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे या फिर दिवाली को भुनाना नहीं छोड़ते। आॅनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स भविष्य के नहीं, बल्कि वर्तमान के सफल बाजार बन कर उभर रहे हैं। खुदरा बाजार में बिकने वाला शायद ही ऐसा कोई सामान हो जो यहां न खरीदा-बेचा जाता हो। सुई से लेकर कार तक यहां मौजूद है खरीद-बिक्री के लिए।
बाजार आज जरूरत है। आप बाजार से कितनी भी असहमति क्यों न जता लें, बाजार की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। बाजार निरंतर तेज गति से हमारे आसपास फैलता जा रहा है। उसका यह फैलाव केवल बड़े शहरों तक ही नहीं, छोटे शहरों और कुछ हद तक गांवों में भी असर जमाने लगा है।
इंटरनेट ने न केवल इ-शॉपिंग, बल्कि सोशल नेटवर्किंग के सहारे भी विज्ञापन के बाजार को क्रांतिकारी रूप से बढ़ाया है। कंपनियां अब सोशल नेटवर्किंग साइटों के सहारे अपने उत्पादों का विज्ञापन कर ग्राहकों के बीच पैठ जमा रही हैं। मतलब, ग्राहक को उनकी नजरों से बच कर कहीं जाना नहीं चाहिए। वे उसे अपने तरीके से लुभा ही लेती हैं। कंपनियां भी खुश, ग्राहक भी। इ-शॉपिंग के मद्देनजर यह धारणा भी हमारे बीच बनने लगी है कि इससे खुदरा दुकानदारों का भविष्य चौपट हो जाएगा। जब सब कुछ आॅनलाइन स्टोर पर ही बिकने या खरीदा जाने लगगे तो खुदरा दुकानदारों के पास कौन आएगा? लेकिन सच यह है कि बाजार में वही टिका रह सकता है, जिसके पास गुणवत्ता हो। अपने उत्पाद को बेचने के तरीके आते हों।
एक दुकान के खुलने से दूसरी दुकान बंद नहीं होती। दुकानें सभी चलती हैं। यह बात अलग है कि कम या ज्यादा। लेकिन आज की तारीख में हाशिये पर केवल वही है, जो बाजार की परिभाषा को नहीं समझ पा रहा। या अपने आदर्शवाद के चलते बाजार को पानी पी-पीकर कोस रहा है। किसी के कोसने या ठुकराने से बाजार की सेहत पर कोई असर होने वाला नहीं। बाजार हमारे बीच अपनी जड़ों को मजबूत कर चुका है। अच्छा है कि बाजार के सहारे हम कम से कम खरीदना-बेचना और सस्ते आॅफर का लाभ उठा रहे हैं। आॅनलाइन बाजार अब हमारे समय की हकीकत बन चुका है।
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