निखिल आनंद गिरि
जनसत्ता 10 अक्तूबर, 2014: पत्रकार और लेखक अनिल यादव पूर्वोत्तर पर लिखे गए अपने यात्रा संस्मरण ‘वह भी कोई देस है महराज’ में असम के एक आदिवासी समुदाय का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि सन 2000 के दौरान जब ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी तो उसमें शामिल होने के लिए वहां के टेलीफोन बूथ पर लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं। उन लाइनों में गांव-बूढ़ा (आदिवासी गांव का मुखिया) से लेकर पीठ पर बस्ते लटकाए स्कूली बच्चे भी किस्मत आजमाने के लिए शामिल रहते थे। उन्हीं में अपने बेटे को खोजते साइकिल पर बांस की लंबी टहनियां (कईन) लादे एक आदिवासी ने अपने बेटे को वहां पाकर विलाप किया- ‘जो अपने घर में लगी आग बुझाने के बजाय उस ‘घोड़मुंहे अजनबी’ के साथ जुआ खेलने जा रहा हो, उसके बाल-बच्चों के मुंह में तो भगवान भी दाना नहीं डालेगा।’ उस आदिवासी व्यक्ति का गुस्सा सिर्फ अपने बेटे पर नहीं था बल्कि उस ‘घोड़मुंहे अजनबी’ पर भी था जो अपने जादुई आकर्षण के नाम पर सुदूर असम के गरीब नौजवानों को भी भरमाए जा रहा था।
यह सिलसिला आज भी जारी है। एक करोड़ की इनाम राशि से शुरू हुआ यह कार्यक्रम अब सात करोड़ का ‘महाकरोड़पति’ बना रहा है। बीसवीं सदी का महानायक अब इक्कीसवीं सदी में भी उसी तमगे को ढो रहा है और उन पर दांव खेलने वालों को अरबपति बनाए जा रहा है! ठीक से याद नहीं कि कब दीमापुर के किसी आदिवासी ने इस खेल से अपनी किस्मत संवारी हो। इस कार्यक्रम के चौदह सवालों के खेल में ऐसे सवाल भी शामिल होते हैं कि ‘आलिया भट्ट को इन विकल्पों में किसने चुंबन लिया!’ अमिताभ बच्चन अपनी अदायगी, अपनी चुप्पी में इतने एकरस होते और बंधते जा रहे हैं कि उनका हर अंदाज एक दोहराव जैसा लगता है। हर हफ्ते इस शो का एक एपिसोड किसी नई रिलीज होने वाली फिल्म से लेकर कॉमेडी शो, कपिल शर्मा, हनी सिंह जैसों के लिए प्रचार का काम भी करता है, जिसमें महानायक इनके साथ ठुमके लगाते हैं, टीवी देखने वाली आबादी का एक घंटे तक ‘रसरंजन’ करते हैं और खूब पैसे कमाते हैं।
मीडिया और बाजार ने महानायकों की परिभाषा इतनी विकृत और आसान कर दी है कि राह चलता कोई भी महानायक बन सकता है! इन छवियों को वे गले में लटकाए घूमते हैं और हम उन पर आंख मूंदे अपना भरोसा करते हैं। छवियों का यही खेल राजनीति से लेकर मीडिया, यहां तक कि अपराध जगत में भी ‘महानायक’ बनाता है, जिससे समाज का फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है। अमिताभ बच्चन की अभिनय क्षमता पर शायद ही किसी को शक हो, मगर इतने लंबे सामाजिक जीवन के बाद उम्र के सातवें दशक में उन्हें इस बात का हिसाब जरूर करना चाहिए कि उन्होंने अपनी आड़ में कितने अघोषित ‘अपराध’ किए हैं! एक जिम्मेदार वरिष्ठ नागरिक के तौर पर उन्हें उन सभी दुष्प्रचारों के लिए माफी मांगनी चाहिए, जिनसे जनता दिग्भ्रमित होती रही है। देश उनके लिए दुआएं करता है तो देश के लोगों के प्रति उनकी इतनी जिम्मेदारी तो बनती ही है। ऐसा किसी किताब में लिखा भी नहीं कि महानायकों का आत्मचिंतन करना मना हो।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta