पंजाब राज्य भयंकर तरीके से ड्रग्स की चपेट में है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1 जनवरी 2014 से 31 दिसंबर 2014 के बीच पंजाब के 152 पुलिस थानों में ड्रग्स लेने वाले लोगों के खिलाफ 6,598 मामले दर्ज हुए। लोगों की यह ‘धरपकड़’ पंजाब सरकार पर सवाल उठने के बाद शुरू हुई थी। 2014 में ही गृह मंत्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा था, ‘हम किसी को नहीं छोड़ेंगे।’

इसके बाद ड्रग्स लेने वाले लोगों को पकड़ा तो गया, पर बड़े ही छोटे स्तर पर। असल में सरकार और प्रशासन उन लोगों तक जाने-अनजाने पहुंची ही नहीं जो इस काले कारोबार के लिए असल में जिम्मेदार हैं। इंडियन एक्सप्रेस 8 महीने की छानबीन के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है।

छानबीन में पता लगा कि 6,598 लोग जो पकड़े गए हैं उनमें से 2,555 लोग ऐसे हैं जिनके पास से बेहद ही कम मात्रा में ड्रग्स या फिर कोई नशीला पदार्थ पाया गया। इसमें से किसी के पास 5 ग्राम या फिर उससे कम कोकीन निकला, किसी के पास 100 ग्राम नशे वाला पाउडर था। पकड़े गए लोगों के पास से ज्यादा से ज्यादा मात्रा 1 किलो रही। इससे पता लगता है कि ऐसे लोगों को पुलिस प्रशासन पकड़ने में नाकाम रही है जो इस धंधे को ऊपर से बैठकर चला रहे हैं।

नशे का धंधा चलाने वाले लोगों की जगह उसका इस्तेमाल करने वाले लोगों को पकड़ने को लेकर पूर्व डीजीपी शशि कांत ने भी अपना विरोध जताया है। उन्होंने कहा, ‘किसी चीज की लत लगना एक बीमारी है ऐसे में उसे कैद कर लेना समस्या का समाधान नहीं है।’ शशिकांत फिलहाल नशा विरोधी मंच नाम का एक NGO चला रहे हैं।

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पंजाब के कई लोग इस चीज के खिलाफ हैं। सभी को यही लगता है कि सरकार और प्रशासन नशा मुक्ति के लिए जो कदम उठा रही है वह गलत हैं। शिरोमणी आकाली दल से जुड़े एक गुरुद्वारे के प्रधान ने कहा, ‘पुलिस उन युवा लोगों पर ध्यान लगाकर बैठी है जो इस नशे की चपेट में आ चुके हैं। उन लोगों को पकड़ना आसान रहता है। बड़ी मछलियां आराम से आजाद घूम रही हैं। उन्होंने इस काले कारनामे में पैसा कमाकर आलीशान मकान बना लिए हैं।’

पंजाब में ऐसे भी कई लोग हैं जिनका कहना है कि उनके बच्चे या फिर घर के किसी सदस्य को पुलिस ने सिर्फ इसलिए पकड़ लिया क्योंकि वह किसी ऐसे शख्स के साथ खड़े थे जो की नशा करता है।