देश में चीनी कंपनियों के खिलाफ बने माहौल के बाद भी स्मार्टफोन की बिक्री में अब भी शाओमी, वीवो और ओप्पो जैसी पड़ोसी देश की कंपनियों का दबदबा कायम है। हालांकि बीती तिमाही में सैमसंग ओवरऑल सेल में नंबर वन पर आई है, लेकिन अब भी स्मार्टफोन सेगमेंट में शाओमी का दबदबा बरकरार है। इंटरनेशनल डाटा कॉरपोरेशन के मुताबिक अप्रैल-जून तिमाही में सैमसंग हैंडसेट मार्केट में पहले स्थान पर रही है। दो तिमाही बाद यह पहला मौका है, जब सैमसंग ने शाओमी को पछाड़ा है। हालांकि अब भी स्मार्टफोन की सेल में सैमसंग शाओमी के मुकाबले पीछे ही है। जून में समाप्त तिमाही में सैमसंग की स्मार्टफोन मार्केट में 26.3 पर्सेंट की हिस्सेदारी रही है, जबकि मार्च तिमाही में यह आंकड़ा 15.6 पर्सेंट ही था। शाओमी 29.4 पर्सेंट हिस्सेदारी के साथ पहले नंबर पर रही है और वीवो की भी 17.5 फीसदी की हिस्सेदारी रही है। हालांकि अब भी भारतीय कंपनियां इस मार्केट में बढ़त नहीं बना रही हैं। आइए जानते हैं, क्यों चीनी कंपनियों के मुकाबले पिछड़ गईं भारतीय कंपनियां…

4जी तकनीक पर जोर न देने से लगा झटका: स्मार्टफोन मार्केट के जानकारों के मुताबिक भारतीय कंपनियां 4जी तकनीक की मांग को समझने में असफल रही हैं। इसी के चलते हम देखते हैं कि 2012-13 तक अच्छी खासी हिस्सेदारी रखने वाली भारतीय कंपनियां जैसे लावा, माइक्रोमैक्स, इंटेक्स और कार्बन अचानक ही मार्केट में पिछड़ गईं। हालांकि रिलायंस जियो ने इस बात को समझते हुए काम किया और आज टेलिकॉम सेक्टर की एकमात्र मुनाफे वाली कंपनी के तौर पर स्थापित है। लेकिन स्मार्टफोन मेकर कंपनियां इसे समझने में असफल रहीं। यहीं से चीनी कंपनियों को बढ़त मिलनी शुरू हुई, जिन्होंने कीमत में अच्छी तकनीक के साथ स्मार्टफोन्स मुहैया कराए।

अब 5जी में होगी और मुश्किल: दरअसल भारतीय कंपनियां लंबे समय तक 3जी तकनीक के साथ ही फोन तैयार करने का काम करती रहीं, जबकि चीनी कंपनियों ने 4जी ग्रोथ को सही समय पर भांप लिया। यही नहीं अब जबकि तकनीक 4जी से भी आगे बढ़ते हुए 5जी की ओर बढ़ने वाली है, तब भारतीय कंपनियों के लिए बाजार में अपनी हिस्सेदारी को वापस पाना और मुश्किल होगा। इसके अलावा कैमरा फोन के जरिए भी ओप्पो जैसी चीनी कंपनियों ने अपनी पकड़ मजबूत की है। भारत की माइक्रोमैक्स जैसी कंपनियां इस मामले में असफल साबित हुई हैं।

तकनीक की बजाय मार्केट चेन पर दिया जोर: चीनी कंपनियों की भारत में एंट्री के वक्त माइक्रोमैक्स, इंटेल जैसी कंपनियों का कहना था कि उनकी चेन मजबूत है और वे भारत के बाजार को अच्छी तरह से समझती हैं। ऐसे में उनके लिए चीनी कंपनियां खतरा नहीं होंगी। तकनीक की बजाय मार्केट चेन पर भरोसा करना भारतीय कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ।