पतंजलि आयुर्वेद कंपनी के मुखिया और योग गुरु के तौर पर नाम कमाने वाले बाबा रामदेव एक समय में हरिद्वार की सड़कों पर पर्चे बांटा करते थे। 1995 में कृपालु बाग आश्रम के स्वामी शंकर देव से बाबा रामदेव ने दीक्षा ली थी। इसके बाद उन्होंने देश और दुनिया में योग और आयुर्वेद के प्रचार और प्रसार का बीड़ा उठाया। हालांकि उस दौर में उनके इन प्रयासों को समाज में आज की तरह पहचान नहीं मिली थी और वे खुद हरिद्वार की गलियों में घूम-घूमकर आयुर्वेद और योग की शिक्षाओं से जुड़े पर्चे बांटा करते थे।

आचार्य बलदेव से मुलाकात के बाद बदली जिंदगी: रामदेव ने भले ही हरिद्वार में शंकर देव से दीक्षा ली थी, लेकिन उनके पहले आध्यात्मिक गुरु आचार्य बलदेव थे, जिनका हरियाणा के रेवाड़ी में ही आश्रम था। आचार्य बलदेव से मुलाकात के बाद ही स्वामी रामदेव की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया था और उनका रुख अध्यात्म की तरफ हुआ था।

योग से ठीक किया लकवा: 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में जन्मे स्वामी रामदेव का बचपन का नाम रामकृष्ण यादव था। 8वीं क्लास पास करने के बाद ही उन्हें शरीर के बाएं हिस्से में लकवा मार गया था। बाबा रामदेव के मुताबिक योग के जरिए ही उन्होंने अपने पूरे शरीर को ठीक करने का काम किया था। इसी दौरान उनके मन में आध्यात्मिक विचार आए और वह घर छोड़कर रेवाड़ी में आचार्य बलदेव के आश्रम में आ पहुंचे।

आचार्य बलदेव ने दिया वेदों का ज्ञान: अशोक राज की लिखी पुस्तक ‘द लाइफ ऐंड टाइम्स ऑफ बाबा रामदेव’ के मुताबिक यहीं पर उन्होंने अपना नाम स्वामी रामदेव रख लिया था। कहा जाता है कि आचार्य बलदेव से ही रामदेव ने पाणिनी के संस्कृत व्याकरण, वेद और उपनिषदों की शिक्षा हासिल की थी।

गांव-गांव लगाते थे योग के कैंप: बाबा रामदेव ने कुछ दिनों बाद ही हरियाणा के ही जींद जिले में स्थित गुरुकुल कालवा का रुख कर लिया था। इस गुरुकुल के मुखिया आचार्य धर्मवीर थे। बाबा रामदेव ने योग का प्रसार इस गुरुकुल में रहते हुए ही शुरू किया था। वह दिन-दिन भर घूमते थे और गांवों में योग की शिक्षाएं देते थे, ट्रेनिंग कैंप लगाया करते थे।

आचार्य बालकृष्ण से पहली मुलाकात: कहा जाता है कि यहीं पर उनकी पतंजलि के मौजूदा सीईओ और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण से पहली बार मुलाकात हुई थी। कुछ समय में इस आश्रम में बिताने के बाद स्वामी रामदेव ने हिमालय का रुख किया था और कई सालों तक भटकने के बाद उन्होंने 1995 में स्वामी शंकर देव से दीक्षा ली थी।