Why expense ratio is important for Mutual Fund investment: निवेश के लिए सही म्यूचुअल फंड सेलेक्ट करते समय आम तौर पर लोग स्कीम के पोर्टफोलियो, उसके पिछले प्रदर्शन और फंड को चलाने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी के प्रोफाइल पर गौर करते हैं. लेकिन म्यूचुअल फंड चुनते समय इनके अलावा एक और बात पर  ध्यान देना बेहद जरूरी है. ये जरूरी बात है फंड का एक्सपेंस रेशियो. अगर आपने किसी भी फंड में निवेश का फैसला करने से पहले उसके एक्सपेंस रेशियो पर ध्यान नहीं दिया, तो भविष्य में रिटर्न का सारा कैलकुलेशन बिगड़ सकता है. ऐसा क्यों है, ये हम आगे समझेंगे, लेकिन पहले जानते हैं कि एक्सपेंस रेशियो होता क्या है. 

क्या है एक्सपेंस रेशियो का मतलब 

एक्सपेंस रेशियो या औपचारिक भाषा में कहें तो टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) का मतलब है वो खर्च, जो आपके पैसों को सही जगह पर निवेश करने के बदले में एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) आपसे लेती है. म्यूचुअल फंड का संचालन करने वाली कंपनियों को एएमसी कहते हैं. एक्सपेंस रेशियो में एएमसी की फंड के संचालन से जुड़ी हर तरह की लागत शामिल होती है, जिसे म्यूचुअल फंड के नेट एसेट वैल्यू (NAV) के प्रतिशत के तौर पर बताया जाता है. इसे उस फंड की प्रति-यूनिट लागत (per-unit cost) भी कह सकते हैं. निवेशकों को इस लागत का भुगतान अलग से नहीं करना पड़ता. एसेट मैनेजमेंट कंपनी म्यूचुअल फंड के ग्रॉस रिटर्न से एक्सपेंस रेशियो काटने के बाद ही निवेशकों को रिटर्न का भुगतान करती है. हर म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेशियो अलग-अलग हो सकता है. आम तौर पर इक्विटी फंड की तुलना में डेट फंड का एक्सपेंस रेशियो कम होता है, जबकि एक्टिव फंड की तुलना में  इंडेक्स फंड जैसे पैसिव फंड का एक्सपेंस रेशियो कम रहता है. 

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म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर कैसे पड़ता है असर

किसी भी म्यूचुअल फंड के नेट रिटर्न पर उसके टोटल एक्सपेंस रेशियो का काफी असर पड़ता है. दो म्यूचुअल फंड भले ही मार्केट से एक जैसे रिटर्न जेनरेट कर रहे हों, लेकिन जिस फंड का एक्सपेंस रेशियो कम होगा, उसका नेट रिटर्न ज्यादा रहेगा. यानी उस फंड की NAV बेहतर होगी. सभी म्यूचुअल फंड की NAV रोज कैलकुलेट की जाती है और यह आंकड़ा एक्सपेंस रेशियो को माइनस करने के बाद ही जारी किया जाता है. दो म्यूचुअल फंड्स के एक्सपेंस रेशियो में भले ही एक-डेढ़ फीसदी का अंतर हो, लेकिन अगर उनके रिटर्न एक बराबर हैं, तो लंबी अवधि के दौरान यह अंतर रिटर्न में भारी बदलाव ला सकता है. इस बात को आगे एक उदाहरण की मदद से समझते हैं. 

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एक्सपेंस रेशियो के मामूली अंतर का बड़ा असर 

मान लीजिए आपने दो म्यूचुअल फंड – A और B में 10 साल तक 10-10 हजार रुपये के मंथली SIP के जरिये निवेश किया. इनमें फंड A का एक्सपेंस रेशियो 1 प्रतिशत और फंड B का 2 प्रतिशत है. दोनों ही फंड्स का औसत सालाना रिटर्न 13 परसेंट है. लेकिन एक्सपेंस रेशियो घटाने के बाद फंड A का नेट रिटर्न 12 प्रतिशत और फंड B का नेट रिटर्न 11 प्रतिशत होगा. ऐसे में 10 साल के निवेश के बाद दोनों फंड पर मिले रिटर्न का कैलकुलेशन कुछ इस तरह होगा : 

फंड A का कैलकुलेशन 

मंथली SIP : 10,000 रुपये

10 साल में औसत सालाना रिटर्न :  13% 

एक्सपेंस रेशियो : 1%

एक्सपेंस रेशियो घटाने के बाद नेट रिटर्न : 12% सालाना

10 साल में SIP के जरिये निवेश की गई कुल रकम  :  12 लाख रुपये 

10 साल बाद SIP की कुल वैल्यू  :  23,23,391 रुपये (23.23 लाख रुपये)

10 साल में निवेश पर कुल रिटर्न  :  11,23,391 रुपये (11.23 लाख रुपये) 

फंड B का कैलकुलेशन 

मंथली SIP : 10,000 रुपये

10 साल में औसत सालाना रिटर्न :  13% 

एक्सपेंस रेशियो : 2%

एक्सपेंस रेशियो घटाने के बाद एवरेज एनुअल नेट रिटर्न : 11% सालाना

10 साल में SIP के जरिये निवेश की गई कुल रकम  :  12 लाख रुपये 

10 साल बाद SIP की कुल वैल्यू  :  21,89,873 रुपये (21.89 लाख रुपये)

10 साल में निवेश पर कुल रिटर्न  :  9,89,873 रुपये (9.89 लाख रुपये) 

फंड A और फंड B के रिटर्न का अंतर :  11,23,391 – 9,89,873 = 1,33,518 रुपये 

ऊपर दिए गए उदाहरण से साफ है कि एक्सपेंस रेशियो में महज 1 फीसदी के अंतर की वजह से 10 साल के कुल रिटर्न में कितना फर्क आ सकता है. अगर यह अंतर 1 फीसदी से ज्यादा हो, तो कुल रिटर्न का अंतर भी बढ़ जाएगा. यही वजह है कि निवेश करते समय अगर एक जैसा रिटर्न देने वाले दो फंड्स में किसी एक का चुनाव करना हो, तो एक्सपेंस रेशियो पर गौर करना जरूरी है.