भारत में मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के एजंडे को लेकर बजट की तैयारियों में जुटी है। दूसरी ओर, अमेरिका और ईरान के बीच तनाव से आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ने लगी हैं। दरअसल, हॉर्मूज जलडमरूमध्य क्षेत्र में हालात बिगड़ने का असर तेल की कीमतों पर पड़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा ईरान पर हमले का आदेश देकर पीछे हटने की खबरें सामने आने के बाद कच्चे तेल के बाजार में उछाल आ गया था।
तेल की कीमतें स्थिर रहने से सरकार के लिए स्वच्छता, सबको घर, स्वास्थ्य, बिजली, गरीबों को मुफ्त बिजली कनेक्शन जैसे सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च करने में आसानी होगी। लेकिन अगर अमेरिका और ईरान में जंग के हालात बनते हैं और तेल बाजार में खलबली मची तो कीमतें बढ़ेंगी और ऐसे में सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ेगा। इसका असर आम लोगों पर भी होगा।
दरअसल, अमेरिका और ईरान के बीच पहले से तनाव के बीच तेहरान द्वारा अमेरिकी सेना का एक ड्रोन मार गिराने की घटना के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध की आशंका प्रबल हो गई। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ड्रोन गिराने की खबर आने के तुरंत बाद कच्चे तेल की कीमत तीन फीसद से अधिक उछलकर प्रति बैरल 63 डॉलर पर पहुंच गई। ड्रोन मार गिराने के पहले तेल आपूर्ति के प्रमुख स्थल हॉर्मूज जलडमरूमध्य के निकट दो तेल टैंकरों पर हमले की घटनाएं हुईं। इससे मध्य पूर्व में तनाव सुलगने लगा। मध्य पूर्व दुनिया का 20 फीसद से अधिक कच्चे तेल का स्रोत है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें से दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और भारत इससे अछूता नहीं है।
वित्तीय मामलों के जानकारों के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतें अगर 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती हैं तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद पर इसका 0.4 फीसद असर होता है और इससे चालू खाता घाटा 12 अरब डॉलर या इससे भी ज्यादा बढ़ सकता है। कच्चा तेल महंगा होने से सरकार का आयात बिल बढ़ने लगता है, विदेशी मुद्रा भंडार घटता है और रुपए की कीमतें भी प्रभावित होती हैं।
ऐसे में भारत ने ओपेक के मुख्य सदस्य सऊदी को तेल की कीमतों को काबू में रखने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने को कहा है। हॉर्मूज जलडमरूमध्य में तनाव बढ़ने के चलते पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सऊदी अरब के अपने समकक्ष के साथ चर्चा की है। भारत को सऊदी अरब से तेल व एलपीजी की निर्बाध आपूर्ति का भी भरोसा मिला है। भारत अपनी तेल जरूरतों का 83 फीसद आयात करता है और यह पूरी तरह से ढुलाई के लिए हॉर्मूज जलडमरूमध्य के रास्ते पर निर्भर है।
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यदि अमेरिका और ईरान के बीच जंग हुई तो वह किसके साथ खड़ा हो? एक तरफ ईरान है जिससे हमारे रिश्ते ऐतिहासिक होने के साथ-साथ कच्चे तेल के लिए निर्भरता भी है। हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल नहीं खरीदने से होने वाली कमी को सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों से पूरी करने की योजना पर भारत काम कर रहा है। ईरान से आयात कम किया गया है। लेकिन यह महंगा पड़ने लगा है। दरअसल, ईरान हमें जिस प्रक्रिया के तहत तेल निर्यात करता है, उसमें 60 दिनों के भीतर भुगतान करने की सुविधा भी देता है। इसका मतलब यह है कि खरीदे गए माल को सुरक्षित भारतीय बंदरगाह तक पहुंचाने का पूरा खर्च ईरान वहन करता है और दो महीने का क्रेडिट भी देता है। दूसरी ओर अमेरिका है जिससे हमारा व्यापारिक और रणनीतिक हित जुड़ा हुआ है।
