देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल के दाम 100 रुपए पार कर चुके हैं। जबकि डीजल भी 90 रुपए के करीब पहुंच चुका है। पेट्रोल और डीजल की कीमत में इस तेजी ने फिर से राजनीतिक गलियारों को गर्म कर दिया है। जिसकी वजह से पक्ष और विपक्षी नेताओं के बयान आने शुरू हो गए हैं। सरकार ने तो पेट्रोलियम मंत्री तक बदल दिया है। जिसका भी मुद्दा बनाया जा रहा है। नए पेट्रोलियम मंत्री की चर्चा मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया में हो रही है।
आज हम जो आपके सामने आंकड़े पेश कर रहे हैं वो बीते 17 सालों का है। जिसमें मौजूदा सरकार के 7 साल और बीती सरकार के 7 साल के आंकड़ें होंगे। वैसे देखा जाए तो यूपीए सरकार ने अप7 साल के दौरान 60 फीसदी से ज्यादा पेट्रृोल और डीजल के दाम बढ़ाए थे। जबकि बीजेपी ने इससे कम ही दाम में इजाफा किया है। लेकिन ग्लोबल आंकड़ें जिस तरह से बयां हो रहे है उससे कहानी कुछ और ही देखने को मिल रही है। आइए आपको भी बताते हैं कैसे?
दोनों सरकारों में कितनी देखने को मिली बढ़ोतरी : सत्ता में आने के बाद से सात वर्षों में, नरेंद्र मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमशः 40 और 56 फीसदी की वृद्धि की है। पेट्रोल के दाम 71.41 रुपए से 100.91 रुपए हो गए हैं। जबकि डीजल की कीमत 57.28 रुपये से 89.88 रुपए हो गए हैं। जबकि पिछली यूपीए सरकार के पहले सात वर्षों के दौरान, पेट्रोल की कीमत में 77 फीसदी और डीजल की कीमत में 66 फीसदी का इजाफा किया था। यानी पेट्रोल के दाम 36 रुपए से 63 रुपए डीजल के दाम 23 रुपए से 38 रुपए कर दिया था।
दोनों सरकारों में कीमतें क्यों बढ़ीं : 2004 और 2014 के बीच यूपीए के कार्यकाल के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में 222 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी। यानी क्रूड ऑयल के दाम 34.16 डॉलर प्रति बैरल से 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। यही वो वजह है जिसमें पेट्रोलियम उत्पादों में वृद्धि का प्राथमिक कारण था। वहीं दूसरी ओर 2014 के बाद से, कच्चे तेल की कीमतों में 28 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। क्रूड ऑयल के दाम 109 डॉलर प्रति बैरल से 78.85 डॉलर पर आ गए हैं।
टैक्स में बढ़ोतरी की वजह से बढ़े दाम : कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद मोदी सरकार के कार्यकाल में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी उच्च करों के कारण हुई है। जून 2014 में, नई सरकार के सत्ता में आने के एक महीने बाद, डीलरों से वसूला जाने वाला पेट्रोलियम मूल्य, यानी बिना किसी शुल्क के, खुदरा मूल्य का लगभग दो-तिहाई था। जुलाई 2021 में, खुदरा बिक्री मूल्य का लगभग 60 प्रतिशत टैक्स और लेवी के लिए होता है। वित्त मंत्रालय के 2020-21 के वित्त वर्ष के अप्रैल-जनवरी में संसद में जवाब के अनुसार, ईंधन की बिक्री से एकत्र उत्पाद शुल्क सरकार की कुल टैक्स रिसीव का लगभग 12 फीसदी है। यह वित्त वर्ष 2014 में संबंधित शेयर से तीन गुना ज्यादा है।
दोनों सरकारों ने बताए इस तरह के कारण : यूपीए सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में बढ़ोतरी का कारण बताते हुए कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों को भारी नुकसान से बचाने के लिए कीमतों में बढ़ोतरी जायज है। उस वक्त के तत्कालीन तेल मंत्री मुरली देवड़ा ने उस वक्त कहा था कि हमने जो किया वह केवल आवश्यकता थी। तेल सार्वजनिक उपक्रमों को 74,300 करोड़ रुपए की राजस्व हानि होने के कारण ऐसा करने को मजबूर होना पड़ा।
मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी ने बढ़ती कीमतों के लिए विभिन्न कारणों का हवाला दिया है। कुछ दिन पहले पेट्रोलियम मंत्री पद से हटाए गए धर्मेंद्र प्रधान ने पिछले महीने कहा था कि ईंधन पर उच्च कर वास्तव में सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों का समर्थन कर रहे हैं। एक हफ्ते बाद, बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि पिछली यूपीए सरकार ने खुदरा कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए 1.3 लाख करोड़ के तेल बांड जारी किए थे, जिसे वर्तमान सरकार सेवा दे रही है।
यूपीए सरकार ने इन बांडों का इस्तेमाल ओएमसी को नुकसान से बचाने और राजकोषीय घाटे को सीमित रखने के लिए किया था। चालू वित्त वर्ष के लिए तेल बांड की सेवा के लिए मोदी सरकार की देनदारी लगभग 20,000 करोड़ रुपये है।
संसद में, तत्कालिक वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने साझा किया था कि वित्त वर्ष 2021 के पहले 10 महीनों में, सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए केंद्रीय उत्पाद शुल्क से करीब 3 लाख करोड़ रुपए एकत्र किए थे। वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 2021 के बीच पेट्रोल और डीजल से एकत्र उत्पाद शुल्क लगभग छह गुना बढ़ गया, जबकि सरकार की सकल कर प्राप्तियां करीब दोगुना हो गई है।
फ्यूल की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव : फ्यूल की बढ़ती कीमतों से अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है। थोक महंगाई में पेट्रोल और डीजल का संयुक्त भार 4.7 फीसदी है। इस साल मई में थोक महंगाई अब तक के उच्चतम स्तर 10.49 फीसदी पर पहुंच गया, जिसका प्रमुख कारण फ्यूल और पॉवर इंडेक्स सूचकांक हैं, जो साल-दर-साल आधार पर 20.94 फीसदी तक उछल गया है।